लोग कहते हैं की होस्टल लाइफ के अपने आनंद होते हैं...और सही भी है अगर कॉलेज का होस्टल हो और दोस्त यारों के साथ जीवन के वो हसीन साल गुजारे जाएँ तो वे पल अविस्मरनीय बन जाते हैं!हमारे लिए भी अविस्मरनीय ही हैं वो तीन दिन!
पहला अनुभव- एम.ए. करने के बाद पी.एस.सी. परीक्षा का जब प्रीलिम्स निकाल लिया तो हम दोनों बहनों को मेन्स की तयारी के लिए पहली बार घर से दूर इंदौर कोचिंग के लिए भेजा गया! इसके पहले हम कभी अकेले नहीं रहे थे! तय हुआ की वहाँ गर्ल्स होस्टल में रखा जायेगा...हम दोनों भारी प्रसन्न क्योकी बचपन से ही न जाने क्यों होस्टल में रहने की बड़ी लालसा थी! अब पूरी होने जा रही थी!इंदौर में बड़े गणपति मंदिर के पास गंगवाल होस्टल है...वहीं हम दोनों रहने पहुंचे! दूसरी मंजिल पर एक कमरा हमें प्रदान किया गया जिसमे पहले से ही दो लडकियां और मौजूद थीं! दोनों पी.एम.टी. की तैयारी कर रही थीं...उम्र में काफी छोटी थीं हमसे ! एक कमरे में चार चार लडकियां...कैसे पढ़ेंगी? और उनमे से भी हम दो भयंकर बातूनी...हम सोच रहे थे की ये दोनों थोड़े शांत स्वभाव की निकल आयें तो पार पड़े वरना तो चारों का भविष्य हमें साफ़ नज़र आ रहा था! हमने डिसाइड किया की हम इन्हें ज्यादा भाव नहीं देंगे! पहला दिन तो कुछ यूं निकला कि हम लोग आपस में एक दूसरे को देखकर फर्जी स्माइल पास करते रहे! वो बड़ा समझ के आप आप करें और हम भी सभ्यता के मारे आप आप करें! अपने आप को ज्यादा सभ्य दिखाने के चक्कर में पूरा दिन खुल के हंस भी नहीं पाए! वहाँ की वार्डन बहुत तोप चीज़ थी!घर में होते तो अब तक दस बार नक़ल उतर गयी होती! पर वहाँ गंभीरता का चोल ओढे ओढे घबराहट सी होने लगी! जब शाम को दोनों लडकियां मार्केट तक गयीं तब हम दोनों ने आधा घंटा जम के ठहाके लगाये! उनके वापस आते ही फिर से घुन्ने बन गए! ठीक आठ बजे एक जोरदार किर्र की आवाज हुई और दोनों लड़कियों ने एक एक डिब्बी अपने हाथ में उठा ली और चलने लगीं...जाते जाते मुड़कर बोलीं " डिनर टाइम हो गया है..आप लोग भी आ जाइये नीचे डायनिंग हॉल में"
" अच्छा..आते हैं"
हम भी पहुंचे डिनर के लिए...देखा तो सभी लड़कियों के पास दो दो डिब्बियां थीं!मैंने बहन से कहा " अपन भी कल प्लास्टिक की डिब्बियां खरीद लायेंगे"
" पहले देख तो ले..क्या है इनमे" बहन ने फुसफुसा कर कहा!
खाना आया...डिब्बियां खुलीं! एक डिब्बी में घी,एक डिब्बी में अचार! देखते ही देखते अचार के आदान प्रदान होने लगा! और गप्पों और ठहाकों से हॉल गूँज उठा! मोटी मोटी रोटियाँ ,आलू की रसेदार सब्जी जिसमे किसी किसी की कटोरी में दो से ज्यादा आलू के टुकड़े भी थे! देखकर प्लास्टिक की डिब्बियों की उपयोगिता समझ में आ गयी! खैर खाना खाकर ऊपर अपने रूम में पहुंचे! बारह बजे तक पढाई की...दोनों लडकियां भी पढ़ रही थीं! बीच बीच में खुस फुसा कर बात करतीं! हमें लगा हमारे बारे में बात कर रही हैं!बड़ा बुरा लगा...अरे इतना भी सबर नहीं है जब हम कोचिंग जाएँ तब बुराई कर लें!बुराई करने की तमीज भी नहीं है!हमने खुसफुसा कर ही निश्चय किया की अगर ये ऐसा करेंगी तो हम भी इन्हें देखकर ऐसे ही फुसफुसायेंगे! अब अगली मुसीबत एक और आई...हमें आये जोर की नींद और हमारी दोनों रूम पार्टनर रात भर पढाई करने वालों में से थीं! एक बोली " हम सुबह चार बजे सोयेंगे तब लाईट बंद कर देंगे"
" रहने देना जी..हमने अपनी घडी में चार बजे का अलार्म लगाया है...हम चार बजे उठकर पढ़ते हैं" बहन ने जवाब दिया!
" क्यों रे...अपन कब चार बजे उठकर पढ़ते हैं" मैं बहन के कान मैं फुसफुसाई!
" अरे...जब इनकी नींद हराम होगी तब अकल ठिकाने आएगी इनकी!"
जैसे तैसे चादर आँखों पर डालकर सोने की कोशिश की! मगर दोनों लड़कियों की खुसुर फुसुर बदस्तूर जारी थी!
" देख तो...ये कितनी बुराई कर रही हैं अपनी" बहन ने कान में कहा!
" कुत्ता कुता भौंक रहे ,राजा राजा सुन रहे" हमने बहन को सांत्वना दी!
जैसे तैसे रात कटी....सुबह से एक नयी मुसीबत! बाथरूम जाने के लिए लम्बी कतार लगी थी!बाहर एक एक वाश बेसिन पर चार चार लडकियां ब्रश कर रही थीं!बुरे फंसे.....हम दोनों ने एक दूसरे को देखा!
" अपन रात को ही ब्रश कर लिया करें तो?" मैंने प्रस्ताव रखा!
" बकवास बंद कर...अपनी बारी का इंतज़ार कर चुपचाप" बहन ने आँख दिखाई!
एक घंटे में हम नहा धोकर फुर्सत हुए! शाम को कोचिंग से वापस लौटे! अब तक उन दोनों लड़कियों से थोडी दोस्ती हो गयी थी! हम लोगों ने आपस में करीब एक घंटा बातें कीं! रात होते ही फिर कल वाला नाटक..." हम तो चार बजे तक पढेंगे"
हम फिर से आँखों पर चादर डाल कर सो गए! बीच बीच में उनकी लगातार खुसुर फुसुर सुनाई देती रही! इस बार बहन ने सोने का नाटक करते हुए ही कान लगाकर सुना...और खुश होकर बोली " अपन खामखाँ इन पर शक कर रहे थे...ये अपनी बुराई नहीं करती हैं.., इनके बॉय फ्रेंड हैं उनकी बातें करती हैं!"
आहा...बड़ी तसल्ली मिली वरना कब तक " कुत्ता कुत्ता भौंक रहे राजा राजा सुन रहे" कहकर खुद को बहलाते! मन हुआ की इनसे कह दें " देवियों..अपने राजकुमारों की बातें करने के लिए तुम्हे लाईट जलाने की क्या ज़रुरत है! और पढाई का ड्रामा करने की भी आवश्यकता नहीं...हम तुम्हारी माएं नहीं हैं!तुम पी.एम.टी. में पास नहीं होगी तो हमारी सेहत में आधे ग्राम की भी कमी नहीं होगी!"मगर सोचा की थोडी और बेतकल्लुफी हो जाये तब कहेंगे वरना बुरा वुरा मान बैठें बेकार में!
इसी प्रकार तीन दिन गुज़र गए...हम आँख पर चादर डालकर सोते रहे...उनकी पी.एम.टी. की पढाई भी खुसफुसा कर चलती रही, हम भी डिनर पर जाते समय दोनों डिब्बियां ले जाने लगे!
चौथे दिन मम्मी आयीं..और हमने फैसला सुना दिया की अब हम होस्टल में नहीं रहेंगे! अलग रूम लेकर रहेंगे! मम्मी मान गयीं...हमने कोचिंग की ही एक लड़की के साथ रूम शेयर कर लिया! तो ये थे हमारे तीन दिन होस्टल के! कमरा लेकर रहने के अपने अलग किस्से हैं! फिलहाल ये हुआ होस्टल का पहला अनुभव! दूसरा अनुभव अगली पोस्ट में...
पहला अनुभव- एम.ए. करने के बाद पी.एस.सी. परीक्षा का जब प्रीलिम्स निकाल लिया तो हम दोनों बहनों को मेन्स की तयारी के लिए पहली बार घर से दूर इंदौर कोचिंग के लिए भेजा गया! इसके पहले हम कभी अकेले नहीं रहे थे! तय हुआ की वहाँ गर्ल्स होस्टल में रखा जायेगा...हम दोनों भारी प्रसन्न क्योकी बचपन से ही न जाने क्यों होस्टल में रहने की बड़ी लालसा थी! अब पूरी होने जा रही थी!इंदौर में बड़े गणपति मंदिर के पास गंगवाल होस्टल है...वहीं हम दोनों रहने पहुंचे! दूसरी मंजिल पर एक कमरा हमें प्रदान किया गया जिसमे पहले से ही दो लडकियां और मौजूद थीं! दोनों पी.एम.टी. की तैयारी कर रही थीं...उम्र में काफी छोटी थीं हमसे ! एक कमरे में चार चार लडकियां...कैसे पढ़ेंगी? और उनमे से भी हम दो भयंकर बातूनी...हम सोच रहे थे की ये दोनों थोड़े शांत स्वभाव की निकल आयें तो पार पड़े वरना तो चारों का भविष्य हमें साफ़ नज़र आ रहा था! हमने डिसाइड किया की हम इन्हें ज्यादा भाव नहीं देंगे! पहला दिन तो कुछ यूं निकला कि हम लोग आपस में एक दूसरे को देखकर फर्जी स्माइल पास करते रहे! वो बड़ा समझ के आप आप करें और हम भी सभ्यता के मारे आप आप करें! अपने आप को ज्यादा सभ्य दिखाने के चक्कर में पूरा दिन खुल के हंस भी नहीं पाए! वहाँ की वार्डन बहुत तोप चीज़ थी!घर में होते तो अब तक दस बार नक़ल उतर गयी होती! पर वहाँ गंभीरता का चोल ओढे ओढे घबराहट सी होने लगी! जब शाम को दोनों लडकियां मार्केट तक गयीं तब हम दोनों ने आधा घंटा जम के ठहाके लगाये! उनके वापस आते ही फिर से घुन्ने बन गए! ठीक आठ बजे एक जोरदार किर्र की आवाज हुई और दोनों लड़कियों ने एक एक डिब्बी अपने हाथ में उठा ली और चलने लगीं...जाते जाते मुड़कर बोलीं " डिनर टाइम हो गया है..आप लोग भी आ जाइये नीचे डायनिंग हॉल में"
" अच्छा..आते हैं"
हम भी पहुंचे डिनर के लिए...देखा तो सभी लड़कियों के पास दो दो डिब्बियां थीं!मैंने बहन से कहा " अपन भी कल प्लास्टिक की डिब्बियां खरीद लायेंगे"
" पहले देख तो ले..क्या है इनमे" बहन ने फुसफुसा कर कहा!
खाना आया...डिब्बियां खुलीं! एक डिब्बी में घी,एक डिब्बी में अचार! देखते ही देखते अचार के आदान प्रदान होने लगा! और गप्पों और ठहाकों से हॉल गूँज उठा! मोटी मोटी रोटियाँ ,आलू की रसेदार सब्जी जिसमे किसी किसी की कटोरी में दो से ज्यादा आलू के टुकड़े भी थे! देखकर प्लास्टिक की डिब्बियों की उपयोगिता समझ में आ गयी! खैर खाना खाकर ऊपर अपने रूम में पहुंचे! बारह बजे तक पढाई की...दोनों लडकियां भी पढ़ रही थीं! बीच बीच में खुस फुसा कर बात करतीं! हमें लगा हमारे बारे में बात कर रही हैं!बड़ा बुरा लगा...अरे इतना भी सबर नहीं है जब हम कोचिंग जाएँ तब बुराई कर लें!बुराई करने की तमीज भी नहीं है!हमने खुसफुसा कर ही निश्चय किया की अगर ये ऐसा करेंगी तो हम भी इन्हें देखकर ऐसे ही फुसफुसायेंगे! अब अगली मुसीबत एक और आई...हमें आये जोर की नींद और हमारी दोनों रूम पार्टनर रात भर पढाई करने वालों में से थीं! एक बोली " हम सुबह चार बजे सोयेंगे तब लाईट बंद कर देंगे"
" रहने देना जी..हमने अपनी घडी में चार बजे का अलार्म लगाया है...हम चार बजे उठकर पढ़ते हैं" बहन ने जवाब दिया!
" क्यों रे...अपन कब चार बजे उठकर पढ़ते हैं" मैं बहन के कान मैं फुसफुसाई!
" अरे...जब इनकी नींद हराम होगी तब अकल ठिकाने आएगी इनकी!"
जैसे तैसे चादर आँखों पर डालकर सोने की कोशिश की! मगर दोनों लड़कियों की खुसुर फुसुर बदस्तूर जारी थी!
" देख तो...ये कितनी बुराई कर रही हैं अपनी" बहन ने कान में कहा!
" कुत्ता कुता भौंक रहे ,राजा राजा सुन रहे" हमने बहन को सांत्वना दी!
जैसे तैसे रात कटी....सुबह से एक नयी मुसीबत! बाथरूम जाने के लिए लम्बी कतार लगी थी!बाहर एक एक वाश बेसिन पर चार चार लडकियां ब्रश कर रही थीं!बुरे फंसे.....हम दोनों ने एक दूसरे को देखा!
" अपन रात को ही ब्रश कर लिया करें तो?" मैंने प्रस्ताव रखा!
" बकवास बंद कर...अपनी बारी का इंतज़ार कर चुपचाप" बहन ने आँख दिखाई!
एक घंटे में हम नहा धोकर फुर्सत हुए! शाम को कोचिंग से वापस लौटे! अब तक उन दोनों लड़कियों से थोडी दोस्ती हो गयी थी! हम लोगों ने आपस में करीब एक घंटा बातें कीं! रात होते ही फिर कल वाला नाटक..." हम तो चार बजे तक पढेंगे"
हम फिर से आँखों पर चादर डाल कर सो गए! बीच बीच में उनकी लगातार खुसुर फुसुर सुनाई देती रही! इस बार बहन ने सोने का नाटक करते हुए ही कान लगाकर सुना...और खुश होकर बोली " अपन खामखाँ इन पर शक कर रहे थे...ये अपनी बुराई नहीं करती हैं.., इनके बॉय फ्रेंड हैं उनकी बातें करती हैं!"
आहा...बड़ी तसल्ली मिली वरना कब तक " कुत्ता कुत्ता भौंक रहे राजा राजा सुन रहे" कहकर खुद को बहलाते! मन हुआ की इनसे कह दें " देवियों..अपने राजकुमारों की बातें करने के लिए तुम्हे लाईट जलाने की क्या ज़रुरत है! और पढाई का ड्रामा करने की भी आवश्यकता नहीं...हम तुम्हारी माएं नहीं हैं!तुम पी.एम.टी. में पास नहीं होगी तो हमारी सेहत में आधे ग्राम की भी कमी नहीं होगी!"मगर सोचा की थोडी और बेतकल्लुफी हो जाये तब कहेंगे वरना बुरा वुरा मान बैठें बेकार में!
इसी प्रकार तीन दिन गुज़र गए...हम आँख पर चादर डालकर सोते रहे...उनकी पी.एम.टी. की पढाई भी खुसफुसा कर चलती रही, हम भी डिनर पर जाते समय दोनों डिब्बियां ले जाने लगे!
चौथे दिन मम्मी आयीं..और हमने फैसला सुना दिया की अब हम होस्टल में नहीं रहेंगे! अलग रूम लेकर रहेंगे! मम्मी मान गयीं...हमने कोचिंग की ही एक लड़की के साथ रूम शेयर कर लिया! तो ये थे हमारे तीन दिन होस्टल के! कमरा लेकर रहने के अपने अलग किस्से हैं! फिलहाल ये हुआ होस्टल का पहला अनुभव! दूसरा अनुभव अगली पोस्ट में...