Tuesday, August 19, 2008

एक पुरानी ग़ज़ल

बहुत दिनों से ब्लॉग से दूर थी....आज कुछ नया तो नहीं एक पुरानी ग़ज़ल ही पोस्ट कर रही हूँ!बहुत दिनों से कुछ नया नहीं लिखा!शायद एक दो दिन में कुछ लिखूं...

जब से तकदीर कुछ खफा सी है
जीस्त भी मिलती है गैरों की तरह

शब के साथ ही गुम होते हैं
वफ़ा करते हैं वो सायों की तरह

बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह

कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह

बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह

32 comments:

बालकिशन said...

"बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह"

बहुत खूब. शानदार.
एक-एक शेर गजब का है.
अच्छा लिखा आपने.
पढ़ कर अच्छा लगा.

रंजू भाटिया said...

कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह

बहुत खूब ..सुंदर लिखा है आपने

Rajesh Roshan said...

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह

बहुत ही उम्दा, भावपूर्ण

nadeem said...

वाह!!! बहुत खूब.
सभी शेर अच्छे हैं,
मगर


बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह

बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह

डॉ .अनुराग said...

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह

बहुत खूब...पल्लवी .......कहा थी इतने दिनों ?

कुश said...

स्वागत है आपका.. काफ़ी धमाकेदार एंट्री की है आपने..

Anil Pusadkar said...

kahkahe lutata hai sare mehfil tanha rota hai deewano ki tarah. bahut khoob, har sher shaandar jaandar.

Shiv said...

बहुत सुंदर...

अमिताभ मीत said...

कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह

बहुत बढ़िया है. बहुत खूब पल्लवी जी.

ताऊ रामपुरिया said...

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह


सुन्दरतम भावाभिव्यक्ति !
शुभकामनाएं !

admin said...

बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह।


दिल को छू जाने वाला शेर, बधाई।

शोभा said...

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
सुन्दर गज़ल लिखी है। हर एक शेर सुन्दर बन पड़ा है। बधाई स्वीकारें।

दिनेशराय द्विवेदी said...

शानदार गजल एक एक कीमती शेर है, एक की तारीफ करो तो दूसरा नाराज हो जाए।

कुमार मुकुल said...

बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह

बहुत अच्‍छी लगीं पंक्तियां...

रश्मि प्रभा... said...

बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह
........
bahut sundar ghazal....

شہروز said...

matla aur ye do she'r khoob hain.
khyaal to naya nahin, par andaaz mein nayapan zaroor hai.

बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह

wah!waaah!
zabardasti karne ki apan ki aadat nahin.blog mein hindi ki laghu-patrikaon wali dharrebaazi se bachna zaruri hai.
wah! ke layaq hai to ye wah! beshakhta nikal jayega lab se bahar.
aur gar kahin kuch kami hai to us taraf bhi dhyaan dilaya jaana chahiye.
gar meri gustaakhi galat ho, to kshama kijiyega.

aur haan aap
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
aur
http://hamzabaan.blogspot.com/
ki taraf kabhi aayin hain.lekin ik naya aashiyaana bhi hai ham-aap jaise logon ka
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

aapse zabardasti kar raha hun k is taraf zaroor jayen aur kul teen hi post hai, use padhen dekhen nahin aur apna comment den.comment wahwah
aur aap bhyankar bada kam kar rahe hai aadi-aad- se alag ho.
yadi sarokaar apna sa lage to sahyog ki dar kaar hai.

vipinkizindagi said...

बहुत अच्छी रचना
उम्दा रचना

Manish Kumar said...

शब के साथ ही गुम होते हैं
वफ़ा करते हैं वो सायों की तरह

wah !achcha laga ye sher


aur ye bhi sahi kaha aapne ki..

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह

Unknown said...

बहुत बढ़िया ।
अच्छी गजल ।

Arvind Mishra said...

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
वाह !

Abhishek Ojha said...

मुझे लगा की मैं ही ब्लॉग जगत से दूर हूँ, पर पता लग रहा है की बहुत लोग आजकल अवकाश पर हैं. गजल अच्छी लगी.

Udan Tashtari said...

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह


--बहुत खूब, पल्लवी. व्यस्त रहो मगर सूचित करती रहो कि सब ठीक ठाक है.

इस पोस्ट के फूल और तुम्हारी फोटो, मैचिंग-वाह वाह!! :)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

पल्लवी जी ,
अगर देश की सुरक्षा जिनके हाथोँ मेँ है वे आपकी तरह एक मासूम सा दील भी सीने मेँ रखने लगेँगेँ तब
सच मेँ वीराना भी गुलशन हो जायेगा जहाँ हर फूल मुस्कुराने लगेगा :)
- बहुत अच्छा लिखतीँ हैँ आप -
गध्य भी और पध्य भी !
क्या बात है !!
जियो ...जियो !!
स्नेह,
- लावण्या

रंजन गोरखपुरी said...

बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह

वाह वाह! क्या बात है!!

Anonymous said...

बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह

उम्दा!

"अर्श" said...

कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह

बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह

bahot umdda rachna hai bahot sundar .......badhai ho har sher kabil ke layak hai ........


regards
Arsh

ललितमोहन त्रिवेदी said...

आपकी ग़ज़ल पढ़ी , कथ्य तो अच्छे लगे मगर ग़ज़ल में बुनावट की कमियां अखरती रहीं !एक तो ग़ज़ल सीधे मतले ( पहला शेर )से ही शुरू होती है ,उसका मुखडा (दो पंक्तियाँ जिनमें दोनों में ही रदीफ़ मिलता है ) गायब है !
यदि हम अपनी रचना को ग़ज़ल कहते हैं तो ग़ज़ल की सभी शर्तें भी पूरी होनी चाहिए जैसे रदीफ़ ,काफिया .अरकान और वज़न !आपके रदीफ़ ,काफिया सही हैं ,यदि अरकान और वज़न को भी balanced कर सकें तो कथ्य की क्षमता बहुत बढ़ जाएगी !ग़ज़ल को गुनगुनाकर देखलें वज़न का आभास हो जाएगा !जब आपकी सभी रचनाओं में perfaction है तो ग़ज़ल ही क्यों बाकी रहे !

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

@ललित मोहन त्रिवेदी जी,
आपकी टिप्पणी आपकी जिम्मेदारी बढ़ाने वाली है। ग़जल का खाका (बुनावट) क्या हो,यह बहुत दिनों से जानने की इच्छा थी। मुखड़ा, मतला, रदीफ़, काफिया, अरकान और वज़न... इन सबका मतलब थोड़ा-थोड़ा अनुमान कर पा रहा हूँ। किसी ने कभी बताया नहीं। यहाँ कुछ खटक तो रहा है। आप इसे ठीक से समझा दें तो हम जैसे नौसिखिये कुछ अच्छा कर सकते हैं।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह
===============================
ऐसे तन्हा दर्द से ही
सृजन का रास्ता सुगम बनता है.
सधी हुई श्रेष्ठ रचना. बधाई.
ऐसी रचनाओं की पुनर्प्रस्तुति जारी रखिए.
================================
शुभकामनाओं सहित
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया एक बढ़िया रचना पढ़वाने के लिए!

नीरज गोस्वामी said...

पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
BEHTAREEN...
NEERAJ

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

Aapki ghazal bahut achhi lagi...zoron ka dhakka halke se laga gaye.