बहुत दिनों से ब्लॉग से दूर थी....आज कुछ नया तो नहीं एक पुरानी ग़ज़ल ही पोस्ट कर रही हूँ!बहुत दिनों से कुछ नया नहीं लिखा!शायद एक दो दिन में कुछ लिखूं...
जब से तकदीर कुछ खफा सी है
जीस्त भी मिलती है गैरों की तरह
शब के साथ ही गुम होते हैं
वफ़ा करते हैं वो सायों की तरह
बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह
कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह
बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
जब से तकदीर कुछ खफा सी है
जीस्त भी मिलती है गैरों की तरह
शब के साथ ही गुम होते हैं
वफ़ा करते हैं वो सायों की तरह
बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह
कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह
बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
32 comments:
"बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह"
बहुत खूब. शानदार.
एक-एक शेर गजब का है.
अच्छा लिखा आपने.
पढ़ कर अच्छा लगा.
कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह
बहुत खूब ..सुंदर लिखा है आपने
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
बहुत ही उम्दा, भावपूर्ण
वाह!!! बहुत खूब.
सभी शेर अच्छे हैं,
मगर
बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह
बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
बहुत खूब...पल्लवी .......कहा थी इतने दिनों ?
स्वागत है आपका.. काफ़ी धमाकेदार एंट्री की है आपने..
kahkahe lutata hai sare mehfil tanha rota hai deewano ki tarah. bahut khoob, har sher shaandar jaandar.
बहुत सुंदर...
कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह
बहुत बढ़िया है. बहुत खूब पल्लवी जी.
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
सुन्दरतम भावाभिव्यक्ति !
शुभकामनाएं !
बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह।
दिल को छू जाने वाला शेर, बधाई।
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
सुन्दर गज़ल लिखी है। हर एक शेर सुन्दर बन पड़ा है। बधाई स्वीकारें।
शानदार गजल एक एक कीमती शेर है, एक की तारीफ करो तो दूसरा नाराज हो जाए।
बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
बहुत अच्छी लगीं पंक्तियां...
बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह
........
bahut sundar ghazal....
matla aur ye do she'r khoob hain.
khyaal to naya nahin, par andaaz mein nayapan zaroor hai.
बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
wah!waaah!
zabardasti karne ki apan ki aadat nahin.blog mein hindi ki laghu-patrikaon wali dharrebaazi se bachna zaruri hai.
wah! ke layaq hai to ye wah! beshakhta nikal jayega lab se bahar.
aur gar kahin kuch kami hai to us taraf bhi dhyaan dilaya jaana chahiye.
gar meri gustaakhi galat ho, to kshama kijiyega.
aur haan aap
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
aur
http://hamzabaan.blogspot.com/
ki taraf kabhi aayin hain.lekin ik naya aashiyaana bhi hai ham-aap jaise logon ka
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/
aapse zabardasti kar raha hun k is taraf zaroor jayen aur kul teen hi post hai, use padhen dekhen nahin aur apna comment den.comment wahwah
aur aap bhyankar bada kam kar rahe hai aadi-aad- se alag ho.
yadi sarokaar apna sa lage to sahyog ki dar kaar hai.
बहुत अच्छी रचना
उम्दा रचना
शब के साथ ही गुम होते हैं
वफ़ा करते हैं वो सायों की तरह
wah !achcha laga ye sher
aur ye bhi sahi kaha aapne ki..
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
बहुत बढ़िया ।
अच्छी गजल ।
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
वाह !
मुझे लगा की मैं ही ब्लॉग जगत से दूर हूँ, पर पता लग रहा है की बहुत लोग आजकल अवकाश पर हैं. गजल अच्छी लगी.
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
--बहुत खूब, पल्लवी. व्यस्त रहो मगर सूचित करती रहो कि सब ठीक ठाक है.
इस पोस्ट के फूल और तुम्हारी फोटो, मैचिंग-वाह वाह!! :)
पल्लवी जी ,
अगर देश की सुरक्षा जिनके हाथोँ मेँ है वे आपकी तरह एक मासूम सा दील भी सीने मेँ रखने लगेँगेँ तब
सच मेँ वीराना भी गुलशन हो जायेगा जहाँ हर फूल मुस्कुराने लगेगा :)
- बहुत अच्छा लिखतीँ हैँ आप -
गध्य भी और पध्य भी !
क्या बात है !!
जियो ...जियो !!
स्नेह,
- लावण्या
बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह
वाह वाह! क्या बात है!!
बेताब तमन्नाओं को हकीकत से क्या
उड़ती फिरती हैं परिंदों की तरह
उम्दा!
कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह
बंद कमरे बताएँगे हकीकत उनकी
जो हैं दुनिया में फरिश्तों की तरह
bahot umdda rachna hai bahot sundar .......badhai ho har sher kabil ke layak hai ........
regards
Arsh
आपकी ग़ज़ल पढ़ी , कथ्य तो अच्छे लगे मगर ग़ज़ल में बुनावट की कमियां अखरती रहीं !एक तो ग़ज़ल सीधे मतले ( पहला शेर )से ही शुरू होती है ,उसका मुखडा (दो पंक्तियाँ जिनमें दोनों में ही रदीफ़ मिलता है ) गायब है !
यदि हम अपनी रचना को ग़ज़ल कहते हैं तो ग़ज़ल की सभी शर्तें भी पूरी होनी चाहिए जैसे रदीफ़ ,काफिया .अरकान और वज़न !आपके रदीफ़ ,काफिया सही हैं ,यदि अरकान और वज़न को भी balanced कर सकें तो कथ्य की क्षमता बहुत बढ़ जाएगी !ग़ज़ल को गुनगुनाकर देखलें वज़न का आभास हो जाएगा !जब आपकी सभी रचनाओं में perfaction है तो ग़ज़ल ही क्यों बाकी रहे !
@ललित मोहन त्रिवेदी जी,
आपकी टिप्पणी आपकी जिम्मेदारी बढ़ाने वाली है। ग़जल का खाका (बुनावट) क्या हो,यह बहुत दिनों से जानने की इच्छा थी। मुखड़ा, मतला, रदीफ़, काफिया, अरकान और वज़न... इन सबका मतलब थोड़ा-थोड़ा अनुमान कर पा रहा हूँ। किसी ने कभी बताया नहीं। यहाँ कुछ खटक तो रहा है। आप इसे ठीक से समझा दें तो हम जैसे नौसिखिये कुछ अच्छा कर सकते हैं।
कहकहे लुटाता है सरे महफ़िल
तनहा रोता है दीवानों की तरह
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ऐसे तन्हा दर्द से ही
सृजन का रास्ता सुगम बनता है.
सधी हुई श्रेष्ठ रचना. बधाई.
ऐसी रचनाओं की पुनर्प्रस्तुति जारी रखिए.
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शुभकामनाओं सहित
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
शुक्रिया एक बढ़िया रचना पढ़वाने के लिए!
पल में ग़म भूल खिलखिलाते हैं
खुदा,कर दो मुझे बच्चों की तरह
BEHTAREEN...
NEERAJ
Aapki ghazal bahut achhi lagi...zoron ka dhakka halke se laga gaye.
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