Thursday, November 6, 2008

कुत्ता कुर्सी पर


ये कुत्ते लोगों को इतने प्रिय क्यों होते हैं...समझ में ही नही आता! खासकर देसी काले भूरे खजैले कुत्ते से लोग इतनी प्रीति रखते हैं की उनके बच्चे जल भुन जाएँ!सुबह सुबह अखबार पढ़ते हुए अगर बच्चा आकर लटक जाए तो उसकी ऐसी तैसी कर देंगे लेकिन अगर गली में घूमता फिरता कुकुर आकर तलवे चाटने लगे तो जमाने भर का सुकून फेस पर दिखाई देने लगेगा! शायद असली वजह तलवे चाटना है, मुझे लगता है! इन कुत्तों से ही शायद लोगों ने तलवे चाटकर बौस को खुश रखने की कला सीखी है!


खैर ...बचपन में एक बार एक देसी कुत्ते ने मुझे काट खाया था..तब से मुझे तो उनसे नफरत सी हो गई है लेकिन आज सुबह से मन में सिर्फ़ कुत्तों का ही ख़याल आ रहा है! उसकी भी एक स्टोरी है...मन में रखी रही तो पेट फूलने लगेगा! कल बड़े हैपी मूड में एक थाने के काम काज की समीक्षा करने पहुँची! जाकर थाना प्रभारी की कुर्सी पर विराजमान हुई....कार्य शुरू हुआ!थोड़ा मन लगा ही था की अचानक पैरों पर अजीब सी गुदगुदी हुई , नीचे नज़र डाली तो चीख निकल गई!एक काले रंग का मरियल कुत्ता मेरे पैरों को लौलिपोप समझ कर चाटने में व्यस्त था! ये साला कहाँ से घुस आया....पूरी नफरत से हमने उसे फटकार कर भगाया! कें कें करता अपनी पुँछ समेटता निकल लिया कमरे के बाहर!

" क्या तुम लोग....ध्यान भी नही रखते, कुत्ते घुस आते हैं कमरे में?" मैंने स्टाफ को हड़काया ! सब लोग सहमकर पहले से ही भाग चुके कुत्ते को भागने का नाटक करने लगे!चलो हमने भी सोचा...कभी कभी ऐसा हो जाता है!वापस अपने लुप्त होते हुए हैपी मूड को पकड़ा और रजिस्टर में अपनी आँख गडा दी! पाँच मिनिट ही हुए होंगे की अचानक टेबल के नीचे किसी के ज़ोर ज़ोर से साँस लेने की आवाज़ आई....जी हाँ. कुत्ता ही साँसे भर रहा था मगर ये वो काला कुत्ता नही था! इस बार भूरे रंग का था और...ये भी शायद अनेरेक्जिया का मरीज़ था! परफेक्ट जीरो साइज़ फिगर!

एक पल को हँसी भी छूटने को हुई...मगर कंट्रोल कर गये, कहीं नफरत प्रेम में न बदलने लग जाए! जैसे तैसे इन भूरासिंह महाशय को भी लतिया कर बाहर का रास्ता दिखाया गया! इसके बाद हमने पूरे कमरे में बारीकी से नज़र दौडाई...कहीं कोई और कालिया या चितकबरा तो नही घुसा हुआ है!संतोष होने पर दुबारा काम में मन लगाने की कोशिश की...पर ये कुत्ते भी अजब चेंट हैं, कमरे से तो निकल गए मगर दिमाग से न निकले!

दिमाग भी कभी कभी अपनी ही चलाता है...पूछना चाहते थे कि कितने अपराध पेंडिंग हैं इस महीने में मगर पूछ बैठे " ये कुत्ते रोज़ आते हैं क्या?" मुंशी ने हाँ में सर हिलाया और कहा " यहीं बैठे रहते हैं दिनभर"
अच्छा...
" और इतना ही नही...कभी कभी तो साहब की कुर्सी पर भी बैठ जाते हैं" मुंशी ने हमारी बढती हुई दिलचस्पी को देखकर एक जानकारी और प्रदान की!और हमारी कुर्सी की और इशारा भी कर दिया!
" अरे बाप रे...मतलब जिस कुर्सी पर हम बैठे हैं यहाँ ये कुत्ते भी सुशोभित हो चुके हैं!हमारा दिमाग सुन्न सा हो गया! कौन ज्यादा अच्छा लगता होगा इस कुर्सी पर...हम या ...? ! जोर से सर को झटका हमने...ना जाने कैसे कैसे ख़याल आने लग पड़े हैं!
अब तक मुंशी पूरी रौ में आ गया था....उसे ना जाने कैसे लग गया कि हम इन कुत्तों के बारे में सारी बातें जान लेना चाहते हैं ,जबकि इस बात के बाद तो हम इन नामुरादों के बारे में कुछ नही जानना चाहते थे!मगर मुंशी महोदय को कहाँ चैन था...बोल ही पड़े " साहब...कल तो कुर्सी गन्दी भी कर गया था...आज ही धुली है!"

मर गये...कमबख्त अपने मुंह बंद नही रख सकता था! अब हालत इतनी ख़राब , ना कुर्सी से उठते बने और ना ही बैठते बने! हाथ का बिस्किट छूटकर प्लेट में गिर गया...कहीं इसे भी तो...! उफ़, इससे ज्यादा सोचते भी नही बना ! अगले दो मिनिट में ही दूसरे ज़रूरी काम का बहाना बनाकर बढ़ लिए हम भी! बाहर निकले तो देखा भूरा और कालिया दोनों गेट के पास बैठे थे...शायद हमारे जाने का इंतज़ार कर रहे थे!पता नही हमें भ्रम हुआ या दोनों सचमुच हमें देखकर मुस्कुराए!

पर अभी तक यही सोच रहे हैं कि इन कुत्तों में ऐसी क्या बात है जो इनकी पहुँच थानेदार की कुर्सी तक हो गई है...बन्दर हो तो फ़िर भी समझ में आता है की और कुछ नही तो खाली बैठे सर ही खुजा देगा मगर ये कुत्ते ऐसा क्या काम करते हैं थानेदार का? दिमाग ज्यादा तो कुछ नही सोच पा रहा है....बस वही तलवे चाटने पर जाकर अटक रहा है! सचमुच तलवे चाटने की महिमा ही न्यारी है!आप क्या कहते हैं...?

53 comments:

P.N. Subramanian said...

आपके घर में कुत्ता होता तो समझ में आ जाता. आभार.
http://mallar.wordpress.com

!!अक्षय-मन!! said...

bahut accha laga padna::))
kahin sach bayan karta hai aapka ye lekh ....

Abhishek Ojha said...

'ये कुत्ते लोगों को इतने प्रिय क्यों होते हैं.'

लोगों को होते होंगे... मुझे नहीं :-)

नेता और पुलिस की कुर्सी पर आजकल अक्सर कुत्ते और गदहे ही तो बैठते हैं. और हाँ बिस्किट भी खाते हैं... मैंने तो बस सुना है. :-)

ताऊ रामपुरिया said...

म्हारी ताऊ बुद्धि म्ह तो ये बात आवै सै की -- आपके थानेवाले मुंशीजी ने आपको सारी कुकुर महिमा इस लिए सुनाई की आप वहां से बिना इंस्पेक्शन करे निकल लो ! और वो इसमे सफल भी रहे ! आप दुबारा वहाँ इंस्पेक्शन करिए -- उस थाने में जरुर कोई गड़ बड़ है ! जरुर कोई षडयंत्र है मुंशी जी का ! :)

Anonymous said...

सुन्दर व्यंग्य है ..

Gyan Dutt Pandey said...

मैं तो पोस्ट की स्पिरिट के मोड में आ ही नहीं पा रहा।
मुझे तो अपना गोलू पाण्डेय याद आ रहा है। :(

कुश said...

वाह जी क्या कुत्ती पोस्ट लिखी है.. भौ! भौ!

Dr. Nazar Mahmood said...

good one

प्रेमलता पांडे said...

हम आपकी पोस्ट पढ़कर हंस रहे हैं तो हमारी मेड जो सामने बैठी चाय पी रही है हमसे बार-बार पूछ रही है कि आप क्यों हंस रही हैं।
अक्सर बचा-कुचा खाने के चक्कर में कुत्ते-बिल्ली सरकारी दफ्तरों में अड्डा जमाए रहते हैं:-)
pasand.wordpress.com

Udan Tashtari said...

ये तलवा चाटू प्रवृति ने उसे इतना प्यारा बना दिया कि थानेदार की कुर्सी नसीब हुई. :)

बहुत करारा कटाक्ष है..वाह वाह!!!

परफेक्ट जीरो साइज़ फिगर सुनकर तो आनन्द आ गया. :)

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत अच्छी तहरीर है...

रंजू भाटिया said...

बढ़िया व्यंग लिखा है आपने ..इस लिए तो राजनीति हमको समझ नही आती ..और कुते हमको पसंद नही :)

सुशील छौक्कर said...

एक अच्छा व्यंग्य। पढ़कर अच्छा लगा।

Barack Obama said...
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दिनेशराय द्विवेदी said...

इन की पहुँच बहुत ऊँची है।

Unknown said...
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Unknown said...

ओल्डर पोस्ट ...ओल्डर पोस्ट ... क्लिक करते हुए इस ब्लॉग की बहुत सारी पोस्ट मैं पढ़ चुका हूँ पल्लवी....

वाकई कमाल है भाई....आप नज़्म लिखती हो ......आप कविता लिखती हो.......आप व्यंग्य लिखती हो.... आप ग़ज़ल लिखती हो....आप क्या क्या लिखती हो भाई.....


मुझे सबसे शानदार आपका नज़्म और व्यंग्य लेखन लगा.... उसमे भी व्यंग्य !

आप व्यंग्य में बेहद एफर्त्लेस (प्रयासहीन) नज़र आती हो....

जब वक्त इजाज़त दे आपको सटायर लिखने चाहिए...... जिंदगी में सबसे नायाब चीज होती है प्रतिभा. हमें इसका इस्तेमाल करना ही चाहिए......

अब देखो न ढेर सारी ज़रूरी-गैरज़रूरी बातें कह गया
वो भी सिर्फ़ इसलिए की मुझमे और आपमें कुछ समानताएं हैं...
वो ये की ---

मैं व्यंग्य से जुड़ा हूँ ------ और आप भी.
मैं ब्लॉग का दीवाना हूँ ------ और आप भी.
मैं ग्वालियर से हूँ ------ और आप भी.
मैं व्यावसायिक राजधानी इंदौर में हूँ ------- और आप राजधानी भोपाल.
मेरा मोबाइल न है ९३२९२ ३१९०९ ------- और आपका... .... ..... ...



बहुत बहुत शुभकामनाएँ....

अवधेश सिंह
इंदौर

समीर यादव said...

आपके स्टाइल का व्यंग्य.....बढ़िया.

रवि रतलामी said...

आपके अगले इंस्पेक्शन के अनुभव का इंतजार है... :)

डॉ .अनुराग said...

..वैसा कुत्ता एक वफादार प्राणी है....कभी रोटी डालकर देखिये .....

सागर नाहर said...

मजेदार संस्मरण...
अपनी अपनी रुचियाँ है। मैने कईयों को देखा है जो अपने कुत्ते की जितनी सेवा करते हैं उतनी तो अपने माँ-बाप की भी नहीं करते।
कुत्ते को हाथ से खिलाना, घर में उसकी गंदगी साफ करना, सुबह सुबह उसको घुमाने (सूसू और छी कराने) ले जाना.. पर अपने बुजुर्गों को अस्पताल ले जाने का समय उन के पास नहीं होता।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया व्यंग्यात्मक लेख. तलुआ चाटने की प्रवृति ने लोगो को जमीन से आसमान पर पहुँचा दिया है. आपने तो थाने में कुत्तो को देखा है पर यहाँ नयागांव की पहाडियो में सांप गुहेरे सरकारी कार्यालयों में इंस्पेक्शन करने आ जाते है साहब तो क्या स्टाफ की हवा ख़राब हो जाती है . आपका लेख पढ़कर आनंद आ गया . धन्यवाद.

सतीश पंचम said...

क्या किया जाय, सारे कुत्ते अपने नेताओं को फॉलो करना चाहते हैं....कम्बख्त वह भी ठीक से नहीं कर पा रहे, और जो फॉलो करना चाहते भी हैं, उन्हें आप लोग करने ही नहीं दे रहे,मारकर भगा देते हैं :) अच्छी पोस्ट।

"अर्श" said...

bahot hi byngyatamak lekh magar kisi ki pravriti ko nahi badala ja sakta ,upay hai rasta badal le ... dhero sadhuvad...

नीरज गोस्वामी said...

वाह पल्लवी जी वाह...आप जिस विषय पर भी कलम चलाती हैं कमाल कर देती हैं...कुत्ता पुराण पढ़ कर मन भों भों करने का हो रहा है...कर लूँ क्या? भों भों...
नीरज

अनुपम अग्रवाल said...

gazab aur achha likha gaya hai.
jara sochiye ki itne achhe kutte
aur kahan ho sakte hain

राज भाटिय़ा said...

अजी कुता तो वफ़ा दार ही होता है..... वाकी बाते आप ने बता दी... धन्यवाद इस कुते व्यंग के लिये

bhuvnesh sharma said...

बहुत सही लिक्‍खा जी...मजा आ गया

Kumar Mukul said...

वाह अच्‍छा लगा पढकर, यहां दिल्‍ली में देखता हूं कि कुत्‍तों को दूध में बदाम , मूंगफली नहीं पहलवान जो बादम खाते हैं वह, पीसकर पिलाया जाता है

Shiv said...

गजब का लेखन है आपका.

कुत्ते भी आजकल जीरो साइज़ फिगर लिए रहते हैं! थानेदार की कुर्सी के आस-पास इतने कुत्ते! अब साहब की कुर्सी के आस-पास रहेगा तो कभी-कभी कुर्सी पर बैठने का मन तो करेगा ही. कुत्तों को कुर्सी से लगाव होता ही है.

makrand said...

bahut khub
kuttoan pr humne bhi likha he
old post mein
dum hilane wale
khabi humari dustbin me jhanke
aap to aap he
regards

Puja Upadhyay said...

बेहतरीन कटाक्ष किया है आपने तलवे चाटने वालों पर. शैली भी कमाल की, मज़ा आ गया पढ़ कर.

Smart Indian said...

काटता चाटुकारिता में
आदमी के कान है
चरण-चुम्बन चिन्ह है
इसको बड़ा अभिमान है
नेता नहीं, चमचा नही,
कुर्सी पे हाज़िर श्वान है.

विष्णु बैरागी said...

अभी थोडी ही देर पहले 'शब्‍दों का सफर' पर आपके बारे में पहली बार पढा और 'विशफुल थाट' किया था कि जल्‍दी ही आपके 'पुलिसिया' संस्‍मरण पढने को मिलेंगे । पह लिखने के ठीक बाद आपका ब्‍लाग क्लिक किया तो आपकी यह पोस्‍ट पढने को मिली । 'विशफुल थाट' यहां पहले से ही विराजमान था ।
पुलिसवालों को मनुष्‍य जीवन के सर्वाधिक (लगभग सारे के सारे) पक्षों का परिचय हो जाता है । सो, आपके पास तो संस्‍मरणों का ढेर होगा ही । उनमें से कुछ 'मानव कथाएं' न केवल सार्व‍जनिक कीजिएगा बल्कि कुछ इस तरह से संयोजित कीजिएगा कि उन्‍हें पुस्‍तकाकार दिया जा सके । मैं साहित्‍य के बारे में कुछ भी नहीं जानता किन्‍तु आपकी यह पोस्‍ट पढ कर सहसा ही कहना पड रहा है कि आपमें अपार सम्‍भावनाएं हैं । अपनी नौकरी और नौकरी में अपने भविष्‍य को सुरक्षित रखते हुए आप जितना अधिक बांट सकें, बांटिएगा अवश्‍य । चूंकि आपकी नौकरी चौबीस घण्‍टों की होती है सो आपको समय निकालने में तनिक कठिनाई होगी । लेकिन यह कठिनाई झेलकर, इस 'नेक काम' को अपनी सर्वोच्‍च प्राथमिकताओं में सम्मिलित कर लें ।
आत्‍मीय शुभ-कामनाएं ा

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

are bhai hamse behtar rahe hain kutte hamesha se.....ha..ha..ha..ha...!!

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाहवा... बहुत खूब..
मान्यवरा....
डबल बधाई

दीपक said...

भई जहा दाना-पानी मिलेगा कुत्ते वहा ही जायेंगे !!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

रोचक और अच्छा लगा, आपको पढ़ना।

प्रवीण त्रिवेदी said...

थानेदार की कुर्सी!!!!!!!!!!!!!1

सुन्दर व्यंग्य है!!!!!1

मीत said...

bahut maja aaya
humse bantane ke liye bahut shukriya

कंचन सिंह चौहान said...

:) :) :) .......... aur ab LOL

अभिषेक मिश्र said...

कौन ज्यादा अच्छा लगता होगा इस कुर्सी पर...हम या ...? !
अच्छा व्यंग्य किया है आपने इस विसंगति पर. कभी visit पर निकलें तो मेरे ब्लॉग की तरफ़ भी आयें. यहाँ कुत्ते नही मिलेंगे. स्वागत.

सचिन मिश्रा said...

Bahut badiya.

Alpana Verma said...

:D--wah pallavi..khuub likha hai----:D

Shishir Shah said...

kuttagiri ya chamchagir...kar sakte to baat hi kuchh aur thi...par dikkat wo hi hain...nahi hota...

Pawan Kumar said...

पल्लवी जी
कुत्तों पर आपकी थीसिस कमाल की है....मगर एक बात है की कुत्ता वफादारी में अब तने meआदमी से आगे हो गया है...और आदमी तलवे चाटने में ...आगे भी ऐसे ही लिखती रहें.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

हमेँ सारे जानवरोँ के प्रति श्रध्धा व आदर है परँतु दूर से :)
- स स्नेह,
लावण्या

sandhyagupta said...

Kai rang hain aapke blog par.Badhai.

guptasandhya.blogspot.com

rush said...

soo soo funny..laughing n laughing...kya doggy tha!!

BrijmohanShrivastava said...

कभी कभी व्यंग्य सरकार तक की समझ में नहीं आपाते है -इसलिए एक एक लाइन बहुत सोच सोच कर -कोई अन्य अर्थ न लगाले -ब्लॉग तो ठीक है पत्रिका या समाचार पत्र में लिखने में साबधानी जरूरी है -अभी हमें कंडक्ट रूल की पूरी जानकारी नहीं है कि कैसे लेख हम प्रकाशित करवा सकते हैं कैसे नहीं =ब्लॉग तो खैर अपनी पर्सनल डायरी टाईप है किंतु लोग पढ़ते तो हैं ""जिस कुर्सी पर हम बैठते हैं उसको ये कुत्ते भी सुशोभित कर रहे है "" कौन किस बात को कहाँ ले जाए समय बहुत ख़राब है /

Hari Joshi said...

मेरा नया घर वीराने में है। कई दोस्‍तों ने सलाह दी कि एक कुत्‍ता पाल लो। हमें लगा कि चोरी-चकारी से निजात मिल जाएगी क्‍योंकि हम दोनों ही आवारा हैं। दिन भर घर बंद कर रात को ही लौटते हैं। लिहाजा हमने अपने गृह मंत्रालय में प्रस्‍ताव रखा कि एक बुलडोग या लेब्रा ले आते हैं लेकिन हमें निराशा ही मिली। जबाव मिला-तय कर लो घर में एक ही रह सकता! लिहाजा तय किया कि तलुवे चाटने का काम हम छिनने नहीं देंगे।

Unknown said...

बहुत बढ़िया। यह तलवे चाटने वाली बात बिल्कुल स‌च है। ज्यादातर लोग चापलूसी पसंद होते हैं। बहुत स‌े तो ऎसे भी जिन्हें मालूम होता है कि स‌ामने वाला उनकी चापलूसी कर रहा है फिर भी उसे न स‌िर्फ बढ़ावा देते हैं बल्कि आनंद की अनुभूति करते हैं। आजकल का जमाना ही चापलूसी का है। बिना लाग-लपेट के बात कहने वाले को लोग पसंद ही नहीं करते। ऎसा मेरा अनुभव है।

Ravi Rajbhar said...

Hahahahhahahha.......

Filhal to mujhe abhi-2 mommy se jor ki dant padi hai....chup ho gya warna tamache bhi padte....magar pyar se.


aap itani achchhi comedy likhati hai.
fir aap pulisiya rob kaise banati hongi.
waise ye kuctte bhi na..............!
ab jaane dijiye..!