Tuesday, May 20, 2008

बेखयाली के आलम में लिखी कुछ लाइनें....

उमस भरी तपती दोपहरी में
खाली बैठे बैठे ,सोचा...
एक आध नज्म ही लिख दूं
मगर ख़याल कहीं सुस्ता रहे थे
एहसास भी अलसाये से पड़े थे
जेहन के किसी कोने मे
बस, पसीना ही पोंछती रही
कागज़ कोरा ही रहा

ओह...बिजली आ गयी
ए.सी. भी चल गया
नज्म पूरी हो गयी

मुए ख्यालों को भी
ए.सी. और कूलर चाहिए
आरामतलब कहीं के....

11 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

पल्लवी जी,

सोच का यह बेहद अनूठा आयम है जिसे आपने कलम दी है, बेहतरीन रचना..

***राजीव रंजन प्रसाद

शोभा said...

ओह...बिजली आ गयी
ए.सी. भी चल गया
नज्म पूरी हो गयी
बिजली आगई ये ठीक है गिरि तो नहीं? ः)

Anonymous said...

aachi kavita hai

Abhishek Ojha said...

अच्छी लाइने हैं पर जो नज्म गर्मी में लिखी जा सकती है वो एसी और कूलर में कहाँ !

राकेश जैन said...

bahut khub likha,apne jaise hum sab par lanat di hai, aur yeh bhi sach hai pallavi ji ki hum AC cooler me baithne wale kalam ke sipahi gareebon aur Lacharon ki sthti par khub likh sakte hai, magar unke hisse ki ek saans bhi jeena pad jaye to sari zindagi bemani lagti hai, kavitayen kafoor ho jati hai..

डॉ .अनुराग said...

बड़े आरामतलब ख्याल है आपके......

Udan Tashtari said...

वाकई, हम लोगों के साथ हमारे ख्यालात भी आरामतलब हो गये हैं. सुविधाओं के आसरे. इसीलिए, कौन जूझे सोचकर, क्रांतिकारी ख्यालों का आकाल पड़ने लगा है. हा हा!!:)

Ghost Buster said...

बढ़िया है.

Richa Sharma said...

Good one

rush said...

kitni acchi tarah se aapne creative process ka varnan kiya...truly a pleasure to read..waah..kya kehne..!!

samagam rangmandal said...

अच्छा है।