उमस भरी तपती दोपहरी में
खाली बैठे बैठे ,सोचा...
एक आध नज्म ही लिख दूं
मगर ख़याल कहीं सुस्ता रहे थे
एहसास भी अलसाये से पड़े थे
जेहन के किसी कोने मे
बस, पसीना ही पोंछती रही
कागज़ कोरा ही रहा
ओह...बिजली आ गयी
ए.सी. भी चल गया
नज्म पूरी हो गयी
मुए ख्यालों को भी
ए.सी. और कूलर चाहिए
आरामतलब कहीं के....
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
11 comments:
पल्लवी जी,
सोच का यह बेहद अनूठा आयम है जिसे आपने कलम दी है, बेहतरीन रचना..
***राजीव रंजन प्रसाद
ओह...बिजली आ गयी
ए.सी. भी चल गया
नज्म पूरी हो गयी
बिजली आगई ये ठीक है गिरि तो नहीं? ः)
aachi kavita hai
अच्छी लाइने हैं पर जो नज्म गर्मी में लिखी जा सकती है वो एसी और कूलर में कहाँ !
bahut khub likha,apne jaise hum sab par lanat di hai, aur yeh bhi sach hai pallavi ji ki hum AC cooler me baithne wale kalam ke sipahi gareebon aur Lacharon ki sthti par khub likh sakte hai, magar unke hisse ki ek saans bhi jeena pad jaye to sari zindagi bemani lagti hai, kavitayen kafoor ho jati hai..
बड़े आरामतलब ख्याल है आपके......
वाकई, हम लोगों के साथ हमारे ख्यालात भी आरामतलब हो गये हैं. सुविधाओं के आसरे. इसीलिए, कौन जूझे सोचकर, क्रांतिकारी ख्यालों का आकाल पड़ने लगा है. हा हा!!:)
बढ़िया है.
Good one
kitni acchi tarah se aapne creative process ka varnan kiya...truly a pleasure to read..waah..kya kehne..!!
अच्छा है।
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