Saturday, May 3, 2008




मोहब्बत में जब चोट खाते हैं लोग
बज्मों में ग़म गुनगुनाते हैं लोग

किस्मत हुई बेवफा गर, तो क्या
जुनूं से भी तो जीत जाते हैं लोग

मतलब परस्ती के इस दौर में
ज़हर दोस्तों को पिलाते हैं लोग

सरायों से किसको मोहब्बत हुई
आते हैं,रुकते हैं,जाते हैं लोग

खुदा भी कहाँ बच सका दोस्तों
मंदिर से जेवर चुराते हैं लोग

गैरों पे कब बस किसी का चला
अपनों का ही दिल दुखाते हैं लोग

हमारी तुम्हारी तो हस्ती ही क्या
माँ बाप को भूल जाते हैं लोग

8 comments:

कुश said...

tay nahi kar pa raha hu.. ki kaunsa sher jyada achha tha.. bahut badhiya gazal kahi aapne.. badhai..

कुमार मुकुल said...

किस्मत हुई बेवफा गर, तो क्या
जुनूं से भी तो जीत जाते हैं लोग

-अच्‍छे हैं ये शेर

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

सरायों से किसको मोहब्बत हुई
आते हैं,रुकते हैं,जाते हैं लोग
Kya khoob likhti hain aap !
Har she'r saadgi ke saath chott karta hai. Aapko bahut badhaayee and ...
Thanks for visiting my blog and liking my ghazal..
-- P K Kush 'tanha'

डॉ .अनुराग said...

सरायों से किसको मोहब्बत हुई
आते हैं,रुकते हैं,जाते हैं लोग
अच्छा लगा...आखिरी शेर को थोड़ा तवज्जो दो......

Abhishek Ojha said...

यथार्थ !

Anonymous said...

हमारी तुम्हारी तो औकात क्या
माँ बाप को भूल जाते हैं लोग

sahi kaha

Unknown said...

nice one , like it

संत शर्मा said...

Bahut Behtar, Bahut Sahi