आज सुबह शताब्दी से ग्वालियर से भोपाल लौट रही थी!कल सुबह अचानक जाना पड़ा ग्वालियर...गुर्जरों ने ग्वालियर बंद करवाया था कल तो उसी सिलसिले में गयी थी!आज वापस आई...आम तौर पर शताब्दी से भोपाल तक का सफर साड़े चार घंटे का होता है..और पुराने फिल्मी गीतों के instrumental म्यूजिक के साथ कोई एक किताब पढ़ते हुए सफर आसानी से कट जाता है! आज भी चेतन भगत की 'the three mistakes of my life' मेरे हाथ में थी और खासी interesting भी लग रही थी पर मन बार बार भटक कर बलवीर पर जा रहा था...
बलवीर कांस्टेबल है ग्वालियर में और मेरे ग्वालियर के कार्यकाल के दौरान मेरे ऑफिस में मेरे रीडर का सहायक था..तीन साल वो मेरे साथ था और इतना होशियार और सज्जन की इन तीन सालों में मुझे एक भी बार उससे ऊंची आवाज़ में बात करने की ज़रूरत नहीं पड़ी! हमेशा सभी के साथ ऐसा होता है की जिस जगह काम करते हैं वहाँ पर कुछ लोगों से आत्मीय संबंध बन जाते है और वे लोग घर के सदस्य की तरह हो जाते हैं बलवीर भी उन्ही में से एक है..उसके साथ ही एक और हवलदार जो मेरा बड़ा विश्वसनीय रहा देवसिंह ..वो भी मिलने रेस्ट हाउस आ गया!मुझे भी अच्छा लगा मिलकर...बस यूं ही मैंने दोनों से उनकी खैरियत पूछी बलवीर आम तौर पर शांत ही रहता था...एक मुस्कान के साथ अपने बारे में बता रहा था!सब कुछ ठीक साउंड कर रहा था!तभी देवसिंह ने बताया 'साहब, बलवीर बहुत बीमार रहता है अभी १० दिन अस्पताल में एडमिट रहा'! मैंने बलवीर की तरफ देखा..आधे घंटे से हम लोग बात कर रहे थे पर उसने एक शब्द नहीं बोला! मैंने पूछा ' क्या हो गया बलवीर?' उसने बताया की उसको हार्ट प्रोब्लम है और बी..पी. भी बढ़ गया है!और कोलेस्टेरोल भी काफी ज्यादा है!ओह..ज्यादातर पुलिस वालों को ये प्रोब्लम होती है...काम की अधिकता,तनाव और अनियमित खान पान के कारण! बलवीर की तो उम्र भी ज्यादा नहीं है!यही कोई ४० के आसपास!मैं ज्यादा तो नहीं जानती...पर चूंकि \कोलेस्टेरोल मेरा भी हाई रहता है इसलिए डॉक्टर से जो अपने लिए सलाह सुनी थीं वही बलवीर को बताने लगी ' घी लगी रोटी मत खाओ, सलाद ज्यादा लो...सुबह सुबह ब्रिस्क वॉक करो..वगेरह वगेरह! मैंने लगे हाथों कुछ देसी इलाज भी बता दिए जो मैं आजमा चुकी थी! मैंने सुबह घूमने पर ज्यादा जोर दिया...मैंने अपनी बात ख़तम कर बलवीर की ओर देखा...ये क्या... उसके चेहरे पर एक दर्द छलक आया और आँखों में आंसू आने से जैसे तैसे रोक रहा था!मैंने पूछा 'क्या हुआ बलवीर?' " साहब, मेरी पत्नी मानसिक रोगी है रात को दवा लेकर सोती है तो सुबह ८ बजे का पहले नहीं उठती...मैं सुबह ५ बजे से उठकर पानी भरना, बच्चों को स्कूल भेजना, उनका नाश्ता बनाना , घर का झाडू पोंछा करना ,खाना बनाना ये सब करके १० बजे ऑफिस पहुँचता हूँ..एडिशनल एस.पी. के ऑफिस का सारा काम अकेले देख रहा हूँ...और वहाँ भी दिन भर डांट ही खाता हूँ..कहाँ से वक्त लाऊं सुबह घूमने के लिए?' इतना कहकर उसने मुंह फेर लिया..मैं समझ गयी वो मेरे सामने रोना नहीं चाहता है! दो मिनट हम सब खामोश रहे!' बलवीर..तुम किसी कूल जगह ट्रांसफर क्यों नहीं कर लेते?' मैंने पूछा!" बहुत कोशिश कर ली लेकिन..." इसके आगे कुछ न बोल सका..पर मैं समझ गयी..तमाम कोशिशों के बाद भी मनचाही जगह ट्रांसफर होना मुश्किल ही है..खासकर जिसकी कोई जुगाड़ न हो!बलवीर फिर ज्यादा देर नहीं ठहरा..चला गया!
वो तो चला गया लेकिन मन अब तक परेशान है...कई बार मैं खीज जाती हूँ ज्यादा काम होता है या कभी बॉस कुछ कह दे तो...बेचारा बलवीर कितना खीजता होगा..दिन भर डांट खाकर और वो तो किसी से कुछ कह भी नहीं पाता...घर पर अपना पत्नी से भी नहीं बाँट सकता अपना परेशानी! पता नहीं ऐसे कितने और कर्मचारी होंगे जो इतने तनाव में नौकरी करते होंगे...और कोई पूछने वाला भी नहीं है!'तुमने अच्छी वर्दी नहीं पहनी, काम में मक्कारी करते हो, काम नहीं करना तो नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते...किसी और को नौकरी मिले' ये कुछ शब्द हैं जो अमूमन हर सिपाही ,हवलदार रोज़ सुनता है!हमारे पास वर्दी के तीन सेट होते हैं, हम गाडी में चलते हैं, एक दाग लग जाए तो तुरंत धुलने चली जाती है...मगर एक सिपाही जो दिनभर मोटरसाइकल या साइकल या टैम्पो में दौड़ भाग कर रहा है...कहाँ तक वर्दी धुल्वाये.. आज सोच रही थी! डांटना कितना आसान होता है...लेकिन कभी अपने सिपाहियों को बुलाकर उनका दुखदर्द पूछने का टाइम नहीं है किसी के पास!
पता नहीं क्यों पोस्ट कर रही हूँ मैं ये..पता नहीं मैं बलवीर के लिए क्या कर पाउंगी! सोचती हूँ किसी अधिकारी से बात कर लूं उसके ट्रांसफर के लिए...! और हाँ...कल ही अपने रीडर से भी थोडी देर बात करुँगी!मुझे तो ये भी नहीं पता की उसके कितने बच्चे हैं?
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
20 comments:
कभी कभी आश्चर्य होता है कि इतनी संवेदनशीलता के साथ पुलिस में नौकरी की जा सकती है। हालाँकि मेरे बारे में भी कि मैं वकालत कैसै कर रहा हूँ।
दिनेशजी,
संवेदनशीलता वहीं रहती है, बस लोग उसे जमाने के फ़लसफ़े सुनाकर शान्त होने को बाध्य कर देते हैं । मुझे याद है जब अपने कालेज की मैस का सेक्रेटेरी था, तो कभी कभी मैस वर्करों की छोटी छोटी बाते उद्देलित कर देती थी । उन्हे खाने के अलावा कुल जमा ७०० रूपये मिलते थे (१९९९-२०००) ।
ब्लाग जगत पर नये नये लोगों से उनके कार्यक्षेत्र के बारे में जानकर अच्छा लग रहा है । आगे भी लिखती रहें ।
विडम्बना ये है की ऐसा हर जगह है... नीरज जी की तरह हमें भी अपने कॉलेज के दिनों में कैम्पस में काम करने वाले मजदूरों से लेकर सुरक्षा गार्ड्स तक की समस्याएं सुनने में आती रहती थी... और पुलिस की नौकरी तो उनसे कई गुना अच्छी मानी जाती है... पर समस्याएं तो हैं ही.. !
चेतन भगत की किताब तो मैंने भी पढ़ डाली... मुझे कुछ ख़ास नहीं लगी... सब कुछ predictable. और उनकी पहली दोनों किताबें पढने के बाद तो... कुछ भी नया सा नहीं लगा.
इंसान संवेदनशील बना रहे यही बहुत है. हम सब को अपने समाज अपने कार्यालय में अपने जूनियर्स के बारे में सोचना चाहिए. आप अपने रीडर से जरुर उसके बारे में पूछे...
ये आपका मन है जो दूसरो की पीड़ा समझता है.. शायद इसलिए ही आपने ये वाक़्या यहा पोस्ट किया.. आप के साथ और भी कितने ही लोग इसे पढ़कर बलवीर के लिए दुआ करेंगे.. और शायद यही आपका उसकी भलाई के लिए योगदान हो.. मन छोटा ना करे... और फिल्म मि. इंडिया का ये गीत याद करे.. ज़िंदगी की यही रीत है.. हार के बाद ही जीत है..
होता है .....कई बार हम मन के किसी गहरे कोने से लिखते है ,बलबीर जानता भी नही होगा की उसकी मैडम उसकी परेशानी से परेशां है...जानता हूँ संवेदनशील होने के अपने नुकसान है ....पर पल्लवी जब तक ये रहेगी ....तुम पल्लवी रहोगी .......
लेख पढ़कर अच्छा लगा। आपकी संवेदनशीलता भी आपके मातहतों व सहकर्मियों का मन हल्का कर सकती है।
घुघूती बासूती
बनी रहें आप ऐसे ही संवेदनशील।
दर-असल पुलिस के निचले स्तर के कर्मचारियों के लिए वाकई सोचने की जरुरत है। चौबीस में से कितने घंटे की ड्यूटी, फ़िर वरिष्ठों से दुनिया भर की बातें सुनों।
इन्ही का नतीजा होता है ये कि यह जनता से सीधे मुंह बात भी नही करते।
इसलिए दोनो ही कारणों से, अर्थात उनके अपने लिए और जनता के लिए भी, इस मुद्दे पे वाकई कुछ किया जाना चाहिए!
पल्लवी जी, आप भाग्यवान हैं। कोई आपको इस लायक समझता है कि आप उसका दुख समझती हैं। क्योंकि उनको आपमें अफसर नहीं, एक इंसान दिखता है। बाकी पानी की गहराई उसमें उतरकर ही पता लगती है। हो सके तो उनका साथ दें। अच्छा लगा ये जानकर की अभी संवेदना जीवित है।
आज की भाग दौड़ और परेशानियों में संवेदनशीलता भी खो गई है. ऐसे वक्त में पर-पीड़ा को समझकर और उससे परेशान होना कम ही देखा जाता है. अच्छे मातहत अक्सर ही आपके परिवार के सदस्य से हो जाते हैं. अच्छा लगा आपकी यह पोस्ट पढ़कर. बनाये रहिये.
आपकी संवेदनशीलता प्रसंशनीय है.
मैं तो यही कहूँगा जो बन सके जितना बन सके आप बलबीर की मदद कीजिये.
इसमे कोई ब्लोगर भाई/बहन अगर मदद कर सके तो उसका भी स्वागत किया जाना चाहिए.
मदद से मेरा अभिप्राय सिर्फ़ आर्थिक मदद से नहीं है बल्कि उसकी अन्य समस्याएं जैसे ट्रान्सफर या बीमारी वगेरह से भी है.
जिस तरह का काम आप लोग करते है उसमे संवेदन शीलता बहुत कम दिखाई देती है बहुत अच्छा लगा आपके विचार जानकर , लेकिन अब हम सचेत रहेगे.पुलिस के बारे मे कुछ लिखने से पहले जी :)
अपने दिल की उलझन को हम सब से बाँट कर आपने बहुत अच्छा किया, ब्लॉग का मतलब ही यही है की हम अपने दुःख सुख अपनी खुशियाँ और गम एक दूसरे से बाँट कभी मुतमईन हो जाएं कभी उसका हल तलाश कर सकें, आपकी हस्सास (संवेदनशील) तबियत ने आपको ऐसा सोचने पर मजबूर किया, काश सभी आपकी तरह सोचने लगें,अपने दिल की बातें हम से इसी तरह शेयर करती रहें.
अपने विभाग के कर्मियो के प्रति आपका लगाव संवेदनशील होना सराहनीय है . मानवता की सेवा करना भी जीवन का एक अंग होता है . धन्यवाद
आपका पोस्ट पढा , क्या कहूं कि रूआंसा हो गया मन, आपने जीवन की जिस कठोरता को उसके अंतरविरोंधो के साथ उजागर किया है वह एक जरूरी काम है, आप दो मोर्चों पर लड रही हैं बहुत राहत मिली पढकर , आपकी सच्चाई का कायल हो गया मैं और समझ गया कि यह आाखीर तक रहने वाली एक लेखक की सच्ची जिद है
बहुत अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़कर। संवेदना बनी रहे।
Rightly said. Some time unknowingly we give the tention and depression to so many peoples, but you cant stop it. its happen spontaniously.
pallavi ji namaskar kya tippani likhun dil bhar aya kabir ka ek doha hai SUKHIYA SAB SANSAR HAI KHAYE AUR SOYE..DUKHIYA DAS KABIR JAGE AUR ROYE ....pallavi ji ise tarha jagte rahiye ...meri shubhkamnayein
Kya baat hai mam !
jabase maine aapka blogg paya tabse sirf ekhi sawal.
Kya ek police bhi itani samwedansil ho sakti hai?
aapne satya kaha bahut se balveer hai jinhe koi puchhane wala nahi.
yah gov. hi nahi private sector me bhi hai.
Di.....
Mai kuch jyada nahi janta.......
lekin aap bahut hi sundar likhti hai....
sanvedansheelta ke saath......
apke jeewan ke ye "kuch ahsaas" mujhe bhi kuch sikha gya .......
thnx ...
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