Wednesday, July 16, 2008

डॉक्टर रोगनाशी और मादा केनाफिलीज़ ...



डॉक्टर रोगनाशी आजकल काफी प्रसन्न चित नज़र आते हैं!हों भी क्यों न ,बारिश का मौसम जो शुरू हो गया है उलटी ,दस्त,बुखार के मरीजों में इस बार जबरदस्त इजाफा हुआ है!इसी मौसम का डॉक्टर रोगनाशी को पूरे साल बेसब्री से इंतज़ार रहता है!पिछली बार तो सरकार ने जैसे डॉक्टरों के पेट पर लात मारने की ठान ही ली थी,बारिश शुरू होते ही दवाओं का इतना छिड़काव कराया की मलेरिया का एक भी मरीज दवाखाने पर नहीं आया!घर का खर्चा भी चलना मुश्किल हो गया था खैर चुनावी साल था तो इतना तो होना ही था!ये सोचकर डॉक्टर रोगनाशी ने भी सरकार को माफ़ कर दिया था!
लेकिन इस बार डॉक्टर ने भी पूरा इंतजाम कर रखा था! पहले ही नगर निगम के कर्मचारियों को मिठाई का पैकेट दे आये थे,ताकि उनके इलाके में दवा का छिड़काव नहीं हो सके! अपने क्लीनिक की सभी खिड़की ,दरवाजों से मच्छर जाली निकलवा दी जिससे अगर बाहर से कोई भला चंगा आदमी गलती से क्लीनिक आ जाये तो मलेरिया से वहीं के वहीं कापने लगे! नकली दवाओं के दर्जनों पैकेट इकट्ठे कर लिए ताकि पहली खुराक में ही कोई ठीक न हो जाए!यहाँ तक की बाजू वाली पैथोलोजी लैब के मालिक को पहले ही एक लिफाफा दे आये थे ताकि हर दुसरे आदमी को मलेरिया या टायफाइड निकले ही निकले!इतना सब करने के बाद डॉक्टर रोगनाशी निश्चिन्तता से बैठकर मरीजों का इंतज़ार करने लगे!
उस दिन भी डॉक्टर रोगनाशी क्लीनिक पर बैठे मरीजों का इंतज़ार कर रहे थे !इतने में लाला श्यामलाल कराहते हुए आये,डॉक्टर ने चेहरे की ख़ुशी को छुपाते हुए गंभीर मुद्रा बनायीं और अन्दर बुलाया! सामने स्टूल पर बैठाया और कहा 'मुंह खोलिए'!
लालाजी बोले "नहीं डॉक्टर ,मुझे कुछ बीमारी नहीं है,बस वो तो ज़रा ब्लेड हाथ में लग गया ,ज़रा कोई दवा लगा दीजिये, ठीक हो जायेगी!"
अरे नहीं,ऐसे कैसे ठीक हो जायेगी,मलेरिया जान पड़ता है!पूरा कोर्स लेना पड़ेगा!' डॉक्टर ने गंभीर मुद्रा बरकरार रखते हुए कहा!
"अरे सुनिए तो,ये तो ब्लेड की चोट है"
अरे आप सुनिए साहब,मान लिया कि जो ऊपर से दिखाई दे रही है वो ब्लेड की चोट है पर उसके अन्दर तो मलेरिया का कीटाणु है,आप मुंह खोलिए" डॉक्टर ने जबरदस्ती दोनों हाथों से लालाजी का मुंह फाड़ दिया!
मैं न कहता था ,मलेरिया है! पूरी जुबान पर कीटाणु हैं! आपने रोग बढ़ा लिया,पहले आते तो जल्दी फायदा होता! चलिए आप ही बताइए क्या बदन में उमस और चिपचिपाहट महसूस हो रही है?" डॉक्टर ने लालाजी कि पसीने से भीगा कुर्ता को देखते हुए कहा!
हाँ,लेकिन वो तो गर्मी कि वजह से.."
"इतनी भी गर्मी नहीं है ,क्या मुझे पसीना आ रहा है,देखिये" डॉक्टर ने बीच में ही टोकते हुए लगभग डांटते हुए कहा!
"पर डॉक्टर साहब.मलेरिया में तो ठंड लगती है न?" लालाजी ने अपना संशय प्रकट किया!
"अरे आप तो कुछ भी नहीं जानते, आजकर मच्छरों की नयी प्रजाति विदेश से आई हुई है! उसके काटने से गर्मी लगती है और ये मच्छर तो अपनी मादा एनाफिलीज़ से भी खतरनाक है,२ दिन में आदमी चल बसता है!
"अच्छा..."लालाजी ने हैरत से मुंह फाड़ा!
और यही नहीं,ये मादा केनाफिलीज़ बड़ी खतरनाक है...डॉक्टर ने विदेश से आई नयी प्रजाति का नामकरण किया!"
अगर पूरा कोर्स ना लिया जाए तो १० दिन बाद फिर से रोग उभर आता है और फिर ये लाइलाज ही समझो" डॉक्टर ने लालाजी को डराते हुए कहा और रूककर लालाजी के चेहरे के भाव देखने लगे कि डराना सफल हुआ कि नहीं!
"अरे बाप रे " लालाजी पसीना पोंछने लगे!
डॉक्टर खुश हो गया!तुरंत १० -१५ अलग अलग तरह की दवाएं निकालकर दे दीं...और खाने का तरीका समझा दिया!
लालाजी इतनी बड़ी बीमारी में जानकर सचमुच बीमार महसूस करने लगे! फीस चुकाई ,दवा ली और दुकान जाने की बजाय वापस घर की और चल दिए! मन ही मन डॉक्टर की प्रशंसा भी कर रहे थे की ब्लेड की खरोंच देखकर मलेरिया के बारे में जान गए! आहा,क्या गुणी डॉक्टर है.....
लालाजी ने घर पहुंचकर दवा की पहली खुराक ली और सो गए! जब सोकर उठे तो सर भारी,चक्कर और पेट में जलन की अनुभूति हुई! शायद मलेरिया ज्यादा बढ़ गया है....ये सोचकर रात वाली खुराक भी शाम को ही ले ली.....रात होते होते तो लालाजी ने दर्द के मारे लोट लगानी शुरू कर दी! नकली दवाओं ने अपना काम बखूबी किया था! पत्नी ने आनन फानन में पड़ोस के किसी डॉक्टर को बुलाया,उसने लालाजी को चैक किया ,दवाएं देखीं... पूछा" लालाजी,ये किस चीज़ की दवाएं खा रहे हो?"
अरे क्या बताऊँ डॉक्टर साहब, सत्यानास जाए उस मादा केनाफिलीस का ,मुई मलेरिया पकडा गयी!
"केनाफिलीज़ नहीं लालाजी,एनाफिलीस होता है!" डॉक्टर ने वाक्य शुद्ध किया! लालाजी ने डॉक्टर की बुद्धि पर तरस खाते हुए आज हासिल हुआ सारा ज्ञान जैसा का तैसा उड़ेल दिया! डॉक्टर जोर से हंसा ,बोला"लालाजी ,आज सवेरे सवेरे ही बेवकूफ बन आये! अब कभी मादा केनाफिलीज़ का नाम मत लेना,अगर एनाफिलीज़ ने सुन लिया तो आपको नहीं छोड़ेगी और एक बात,ये नकली दवाएं अभी खाना बंद कर दीजिये वरना इनके सेवन से ज़रोर आप चल बसेंगे !कहकर डॉक्टर ने फीस झटकी और चल दिया!
लालाजी के गुस्से का पारावार न था!समझता क्या है अपने आप को, ठग कहीं का ! ऐसी चक्की पिस्वाऊंगा जेल में की सात पुश्तें यादरखेंगी!
तुरंत उठे और अपनी शिकायत लेकर सीधे ड्रग इंसपेक्टर के पास पहुंचे ,उसे सारा वृतांत सुनाया और अनुरोध किया कि अभी जाकर नकली दवाओं के साथ उस डॉक्टर को पकडा जाए !निरीक्षक साहब ने लालाजी को कंधे पर हाथ रखकर आश्वासन दिया कि अपराधी चाहे जो हो नहीं बचेगा! लालाजी ख़ुशी ख़ुशी घर वापस आ गए!

अगले दिन निरीक्षक साहब मरीज बनकर डॉक्टर रोगनाशी के दवाखाने पर पहुंचे, और बताया कि पिछले दो दिन से कान में दर्द है! डॉक्टर ने अफ़सोस प्रकट करते हुए कहा "अच्छा हुआ आप टाइम पर मेरे पास आ गए! आपका मलेरिया बिगड़ गया है"
"कान के दर्द से मलेरिया का क्या वास्ता"
"अरे एक नयी मच्छर की प्रजाति है मादा केनाफिलीज़...इसका असर सीधे कान पर होता है और ३-४ दिन में तो इंसान बहरा हो जाता है" डॉक्टर ने सुबह वाली तरकीब एक बार फिर भुनाई!
"ओहो,तब तो जल्दी दवा दीजिए डॉक्टर साहब" निरीक्षक साहब ने मन ही मन प्रस्सन्न होते हुए कहा! उनका तीर बिलकुल निशाने पर लगा था!डॉक्टर दवा के पैकेट लेकर आया और वैसे ही निरीक्षक साहब ने डॉक्टर को अपना परिचय दिया व आने का प्रयोजन बताया! अब डॉक्टर की सिट्टी पिट्टी गुम हुई पर धैर्य नहीं खोया!
इन सब परिस्थितियों से निपटने के लिए उनके पास आपातकालीन योजना तैयार थी साथ ही आपातकालीन बजट भी!
निरीक्षक साहब को साइड में ले गए और पहले से तैयार एक लिफाफा भेंट किया " साहब, एक तुच्छ भेंट मेरी ओर से"
मुझे क्या समझा है तुमने? " निरीक्षक गरजा !
डॉक्टर उसके गरजने से अप्रभावित रहा,लिफाफे के वज़न में कुछ और बढोत्तरी की! अब निरीक्षक के चेहरे के भाव भी नरम हुए!
जाओ ,एक गिलास पानी ले आओ " उसने डॉक्टर को आदेश दिया!
डॉक्टर इशारा समझ कर नोट गिनने के लिए निरीक्षक को अकेला छोड़ गया!

५ मिनिट बाद वापस आया!
"ठीक है ठीक है,इस बार छोड़ देते हैं,आइन्दा शिकायत नहीं मिलनी चाहिए और हाँ मादा केनाफिलीज़ अकेली आप पर नहीं हम पर भी मेहरबान रहना चाहिए!" निरीक्षक ने आँख मारकर कहा!
"होगी हुज़ूर आप पर भी होगी,फीस का ४०% आप तक पहुँच जाया करेगा सरकार" डॉक्टर रोगनाशी ने खीसें निपोरते हुए कहा!
कहने की ज़रूरत नहीं है कि पूरी बरसात मादा केनाफिलीज़ ने डॉक्टर रोगनाशी और निरीक्षक साहब के घर नोटों की बरसात की! जय हो मादा केनाफिलीज़ की.

26 comments:

कुश said...

हा हा हा सही है.. ऐसा लगा जैसे सब टी वी का सीरियल 'ऑफीस ऑफीस' देख रहा हू ऑर लालाजी अपने मुसद्दी लाल है.. व्यंग ने अपना काम बखूबी किया है

Shiv said...

'केनाफिलिज' के फायदे....बहुत खूब!

rakhshanda said...

bahut khoob pallavi ji, bahut shaandar, bhigo bhigo kar maara hai,tanz(vyang) karna koi aap se seekhe...bilkul sahi

ज़ाकिर हुसैन said...

बहुत खूब!!
हर बार आपकी प्रतिभा के नये-नये रूप सामने आ रहे हैं
कभी पुलिस डिपार्टमेंट को भी अपनी कलम का जोर बख्शियेगा

samagam rangmandal said...

charecters पर आपकी पकड बहुत बढिया है। नाटक की पटकथा लिखने का प्रयास किजीये...निश्चित सफलता मिलेगी। नोमनक्लेचर भी अभिव्यक्तिपूर्ण,उम्दा है। बधाई...

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया नाटक लिखने के विचार पर गौर करे पल्लवी जी लफ्जों पर पकड़ बहुत अच्छी है .कहीं भी ध्यान इधर से उधर नही हुआ है ..बहुत खूब ..

Abhishek Ojha said...

बहुत बढ़िया !

Advocate Rashmi saurana said...

Pallavi ji doctor to bhut badhiya hai. ab inhi se ilaj karaya karege. jara address to de do.

अंगूठा छाप said...

पल्लवी तुम्हें व्यंग्य लिखने चाहिए और नियमित लिखने चाहिए। व्यस्तता कोई बहाना इसलिए नहीं होनी चाहिए कि तुम्हारे भोपाल में ही इस समय के बड़े व्यंग्यकार डाॅ ज्ञान चतुर्वेदी मौजूद हैं जो लगातार मारक व्यंग्य लिख रहे हैं और हाॅस्पिटल भी जाते हैं सेवाएं देने।

तुम्हारे पास फिलहाल कुछ और हो न हो, एक अच्छी भाषा तो यकीनन है। वाक्यों का आम बोलचाल में तब्दील कर देना थोड़ा खास काम है जो हर कोई नहीं कर रहा आज।

डाॅक्टर रोगनाशी और लालाजी के बीच के संवाद बड़े सजीव से बन पड़े हैं उसके लिए बधाई!

नित्यकर्म की तरह जो बन पड़े थोड़ा बहुत रोजाना लिखा करो।

कभी कुछ ना सूझे तो यही लिख दिया करो कि ‘आज कुछ मूड नहीं बन रहा।’ ऐसा मैं अपने सभी मित्रों को सलाह देता हूं। ब्लाग लेखन में कंट्यूनिटी बेहद जरूरी है। यही इसकी जरूरत है और यही ताकत।

vipinkizindagi said...

बहुत खूब , अच्छी है...
मेरा ब्लॉग भी देखे
मैं भी ग़ज़ले और कविताए

डॉ .अनुराग said...

जे हो कैनाफेलिस की ....आपने मेडिकल साइंस में नई प्रजाति को खोज डाला है......देखिये शायद कोई नोबेल वोबेल एक आध दिन में मिल जाये,हमारे जाट भाई भी रेगिंग लेते वक़्त ऐसी कई जातियों का आविष्कार करते थे .....शुक्र है वे radiologist बने ,मरीजो से उनका डायरेक्ट कोई वास्ता नही....

Udan Tashtari said...

हा हा!! बहुत सही!! बहुत बेहतरीन कटाक्ष रहा.

Arvind Mishra said...

व्यंग तो जैसे मध्य प्रदेश की माटी में फलता फूलता है -शरद जोशी और हरिशंकर परसाई की याद दिला दी आपकी पोस्ट ने ....सरकारी सेवा में रहते हुए देखिये कब तक यह तेवर और व्यंग की धार बरकरार रह पाती है -मेरी शुभकामनाएं ....

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

इन डॉक्टर सत्यानाशी का पता और हुलिया नोट करके रखना होगा नहीं तो किसी भी शहर में कहीं भी मिल सकते हैं। बचके रहना रे बाबा…

Gyan Dutt Pandey said...

चश्मा नहीं लगा रखा। ठीक पढ़ने में नहीं आ रहा। क्या लिखा है - डा. रोगीनाशी?:)

Pragya said...

wah wah kya likha hai???
tumhari post ka intezaar to mujhe hamesha rahta hai... har baar kamaal hota hai..

डा. अमर कुमार said...

श्रीमन कप्तान साहेब को मालूम हो कि एक से एक टेढ़े-सीधे, साधु-शैतान सभी बिना असलहे के डर से एक दमड़ी भी नहीं निकालते ।
स्पष्टीकरण
आपके महकमें का आदर करते हुये बेचारे शरीफ़ डाक्टर कोई गैर लाइसेंसी असलहा न इस्तेमाल करए अपने लाइसेंसी काबिलियत से दमड़ी ही नहीं चमड़ी भी निकलवा लेने के लिये अधिकृत हैं । वह अपनी बातों से ही डरा कर , रोगी को अधमरा कर फिर से ज़िंदा करने के पुण्य कार्य को सम्पन्न करते रहे हैं । वैसे ही, जैसे कि मुँह फेर कर डकैती होने देने के बाद ही आपरेशन धड़पकड़ की जाती है । डाक्टर रोगनाशी हमारे आदर्श हैं, क्योंकि वह ईमानदारी से मलेरिया जैसे टुटहे देसी कट्टे के बल पर ही अपना गुज़ारा कर रहे हैं ।
प्रवक्ता -डाक्टर रोगनाशी

ताऊ रामपुरिया said...

बेहतरीन और शशक्त व्यन्य ! बधाई

अंगूठा छाप said...

अच्छा पल्लवी, यहां क्लिक करो और देखो शायद तुम देख सको...

ट्रेन में चढ़ते यात्रियों का रियली बड़ा मजेदार वीडियो है - http://video.google.com/videoplay?docid=5031425949179516003&hl=en

अंगूठा छाप said...

इस लिंक को सीधे पेस्ट करके देखो -

http://video.google.com/videoplay?docid=5031425949179516003&hl=en

Abhijit said...

mada canaphilis....naam sunkar hi kampkapi si aane lagi.

vaise vyang se juda hua ek asli kissa yaad aa gaya. mere chote bhai ko ek aise hi dr. rognashi ne malaria bataakar kaafi dawai di... jabki use hua typhoid tha aur baad me use hospital me rehna pada tha kafi din.

कुमार मुकुल said...

हा हा हा ...

Vinay said...

बढ़िया व्यंग!

Sanjeet Tripathi said...

शानदार, अंगूठा छाप जी से सहमत हैं अपन।

अंगूठा छाप said...

चल्ल्लो अब आगे बढ़िये पल्लवीजी। आग्ग्ग्ग्गे।

कोई दूसरा आयटम परोसो भाई। रोग का नाश रिअली बहुत हो गया।

ब्लाग में फ्रेशनेस को होना बहुत जरूरी है भइया... फ्रेशनेस। ये बात हम हिन्दी वाले कब समझेंगे आखिर? भले ही आयटम छोटा हो, लेकिन रोज नया हो। ताजा हो।
कुछ नहीं तो किसी लंगूर का ही कोई मजेदार फोटो चिपका दो। लेकिन करो कुछ नया।


एक कमेंट: ‘‘एक्सक्यूज मी! ...आपको इससे क्या...?’’

‘‘बात तो सही है। मुझे इससे क्या...’’

Amit Ranjan said...

Apne College ke din yaad aa gaye :)
Bhopal mein aise Dr. Rognashi shayad bahut saare hain...
ek baar kabhi main bhi inka shikaar bana tha... Mujhe bhi Maleria ki dava khilakar mere ek pure semester exam ka satya-naash kar daala tha :D