आज मैं सिर्फ अपनी असफलताओं के बारे में बात करना चाहती हूँ! अमूमन कोई मुझसे मेरे बारे में पूछता है तो मैं बड़े गर्व से बचपन से लेकर अब तक की सफलताओं का ज़िक्र किया करती हूँ ...जिसमे मैंने क्या क्या तीर मारे स्टाइल में अपनी जीवन गाथा सुनाती हूँ और इस कथा में कहीं भी मेरी कमियों का, गलतियों का या असफलताओं का ज़िक्र तक नहीं होता मानो ये सब मेरे जीवन का हिस्सा ही न हों....हम खुद को बहादुर कहते हैं लेकिन अपनी विफलताओं के बारे में बताने से डरते हैं! अभी दो दिन पहले ही दैनिक भास्कर में एन.रघुरामन का एक लेख पढ़ा जो सिर्फ असफलताओं के बारे में था..पढ़कर एहसास हुआ की मैंने भी कभी किसी को नहीं बताया की मैं कहाँ कहाँ जिंदगी की पायदान से फिसली हूँ!
जब भी कभी किसी ने मुझसे पूछा कि क्या आप थ्रू आउट फर्स्ट क्लास रही हैं... मैंने तत्काल जवाब दिया " जी हाँ...कभी सेकंड डिविज़न नहीं आई" जबकि ये सरासर गलत है! एक बार मेरी सेकंड डिविज़न आई थी! जब मैं tenth क्लास में थी तब साल भर केवल मस्ती में निकाला, परीक्षा टाइम में जितना पढ़ सकी पढ़ी!जब रिजल्ट आया तो ५९ प्रतिशत बना था! मेरे लिए अप्रत्याशित और सदमे भरा था क्योकि हमेशा से क्लास में फर्स्ट थ्री में शामिल होती आई थी! जिनकी सेकंड डिविज़न आती थी उन्हें हेय द्रष्टि से देखा करती थी! अब मैं खुद उसी जगह पर खड़ी थी!मम्मी पापा को भी बहुत दुःख हुआ,कहा तो ज्यादा कुछ नहीं उन्होंने लेकिन न कहते हुए भी दुखी चेहरे ने बहुत कुछ कह दिया! उसके बाद अपनी दसवी कि मार्कशीट कही भी लगाने से बचती रही, कोई पूछता तो फर्स्ट डिविज़न ही बताती रही! हांलाकि उसके बाद कभी सेकंड डिविज़न नहीं आया लेकिन ये बात मन को हमेशा कचोटती रही कि काश उस साल ढंग से पढाई की होती तो ये धब्बा नहीं लगता!और हाँ...एक और झूठ ,अगर कभी ये बताना ही पड़ जाता कि दसवी में मेरी सेकंड डिविज़न थी तो साथ में ये ज़रूर जोड़ देती थी कि उस साल परीक्षा के समय मेरे दादा जी का देहांत हुआ था तो पढ़ नहीं पायी थी! लेकिन आज कोई झूठ नहीं...मैं स्वीकार करती हूँ कि मेरी असफलता की पूरी जिम्मेदारी सिर्फ मेरी थी किसी और की नहीं!
दूसरा वाकया ...बचपन से ही मेरा सपना डॉक्टर बनने का था और इसलिए बारहवी क्लास के बाद पी.एम.टी. की तेयारी के लिए एक साल ड्रॉप दिया , जितना पढाई हो सकी उतनी की! लेकिन जितनी भी की वो एक्साम में पास होने के लिए नाकाफी थी! सभी को मुझसे बहुत उम्मीदें थी!साल ख़त्म हुआ और परीक्षा का दिन आ गया! पहला पेपर फिजिक्स का था जो कि मेरा सबसे अच्छा तैयार था!पेपर ठीक ठाक गया! केवल ठीक ठाक न कि बेहतरीन! पेपर देने के बाद समझ आ गया था कि आगे के पेपरों में क्या होने वाला था! मैं बहुत घबराई हुई थी! सिलेक्शन नहीं हो पायेगा उसकी इतनी घबराहट नहीं थी जितनी इस बात की थी कि लोग क्या कहेंगे? इसी घबराहट में रात को मेरी तबियत बिगड़ गयी...अस्पताल जाना पड़ा ! और सुबह का पेपर मैं नहीं दे सकी! जब एक पेपर छूट गया तो आगे के पेपर्स देने का कोई मतलब नहीं था इसलिए मम्मी के बार बार कहने पर भी मैंने पेपर नहीं दिए! मम्मी का कहना था कि भले ही सिलेक्शन न ही लेकिन तुम्हे खुद अंदाजा हो जाएगा कि तुम कहाँ खड़ी हो! लेकिन मैं उन्हें क्या बताती कि यही अंदाजा मैं पहले ही लगा चुकी हूँ इसलिए पेपर नहीं दे रही! खैर मैंने पेपर नहीं दिए! और सभी को सिलेक्शन न होने कि वजह यही बताई कि मेरी तबियत खराब हो जाने के कारण एक्साम नहीं दे सकी और भगवान को रोज़ धन्यवाद देती थी कि अच्छा हुआ जो तबियत खराब हो गयी वरना क्या बहाना बनती खराब नंबर आने का! पर आज कोई बहाना नहीं...मैं असफल हुई थी केवल अपनी गलती की वजह से ,तबियत खराब न भी होती तब भी मेरे खराब नंबर ही आते!
हांलाकि ये बहुत छोटी बातें हैं लेकिन फिर भी मैंने कभी किसी से ये बात शेयर नहीं की...आज इन बातों को यहाँ लिखकर बहुत हल्का महसूस कर रही हूँ...शायद इन छोटी बातों के बाद कभी बड़ी असफलताओं का भी साहस और सहजता से सामना कर पाऊँ!
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
27 comments:
ब्लॉग शायद इस बेबाकी के लिये ही होता है। पर यह बेबाकी बहुत कम में है!
बहुत अच्छी स्पिरिट की पोस्ट।
आपने अपनी असफलता बताई जो केवल पढ़ाई से सम्बंधित है.... पढ़ाई जरुरी है लेकिन एक अच्छा इंसान होना उससे भी जरुरी होता है जो आप हैं..... अपनी असफलताओ को बता कर आपने यह बताया कि बचपन के लड़कपन और नटखट होने के बावजूद आप दिल से बहुत अच्छी इंसान है....
बनाये रखे....
पल्लवी जी ये काफी बड़ी बात है और हिम्मत की भी कि कोई अपनी असफलताओं के विषय में बात कर रहा है. मैं आपके होसले की दाद देता हूँ और सलाम करता हूँ.
छोटी छोटी असफलताओं को बेबाकी से स्वीकार करने की आदत निश्चित तौर पर बड़ी विफलताओं का भी सामना कर सकने की हिम्मत देती हैं। आखिर हम अपनी कमियों की पहचान नहीं करेंगे तो उन्हें दूर कैसे करेंगे। हमेशा की तरह सकारात्मक विचारों वाली आपकी पोस्ट। धन्यवाद।
हम अपनी असफलताओं से सीख लें और आगे उन्हें न दोहराएं, यही असफलताओं का सबसे बडा सबक होता है।
पल्लवी,
ऐसा जान पड़ता है, ईमानदार होना अब एक पॉलिसी का हिस्सा है, व्यापार का हिस्सा है और टिके रहने की जरूरत का हिस्सा है।
वो, जब तुमने ढेर सारे झूठ बोले वो तब की जरूरत थी, ये जो सच बयां कर रही हो, ये आज की जरूरत है।
दुनिया में एक भी चोर ऐसा नहीं होगा पल्लवी, जो शौकिया चोरी करता हो (शायद)।
संवेदनशीलता, दया, स्नेह, प्रेम और ईमानदारी, इंसान की मूल प्रकृति के हिस्से हैं। ये समाज, हालात, और वक्त मिलकर न जाने कैसे कैसे अवांछित कर्म हमसे करवा लेते हैं। बेबस होकर हम तब उस वक्त जो सूझता है बस करते जाते हैं।
आज ये सच बयां करने का साहस तुम्हें तुम्हारी किन्हीं सफलताओं ने दिया होगा। जिसके लिए भी तुम्हीं जिम्मेदार हो। और इसीलिए अंगूठा छाप तुमको बधाई प्रेषित करता है!
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(पुनश्च: एन रघुरामन को तुम पढ़ती हो, तो डेविड जे श्वार्टज तुमको और भी अधिक पसंद आ सकते हैं। यदि न पढ़ा हो तो पढ़ना, ‘‘बड़ी सोच का बड़ा जादू’’ उनकी उनकी बेहतरीन पुस्तक है जो जीवन-प्रबंधन सिखाती है।)
इमानदारी से बात कह गई आप... बहुत सी बातें हम किसी से नहीं कह पाते पर ये ब्लॉग... सब कुछ उगलवा देता है ! अच्छी लगी आपकी बेबाक पोस्ट.
उर्दू का बहुत पुराना शेर है:
गिरते हैं शेह सवार ही मैदाने जंग में
वो तुफ्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले
याने असफलताओं से घबराना नहीं चाहिए...ऊंचा उठने के लिए कभी कभी गिरना भी पढ़ सकता है...जिसे गिरने का डर हो वप ऊंचा उठ ही नहीं सकता...
आप में अपनी असफलताओं को बताने का जज्बा है जो बहुत कम लोगों में होता है..अक्सर लोग अपनी कमजोरियों को छुपाना पसंद करते हैं जबकि ये सही नहीं.
नीरज
यह कान्फेसन है तो ठीक ,आत्म प्रवंचना/दया नही होनी चाहिए .गीता का यह श्लोक मुझे प्रिय है -
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानं अवसादयेत
आत्मैव ह्यात्म्नों बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः
आप अपना उद्धार ख़ुद करें ,अपने को अवसादग्रस्त न करें
आप ही अपने शत्रु हैं और आप ही मित्र .
padhkar muskuraa rahi huun aur dekhiye aap ki badaulat apney asafal pal giney jaa rahi huun...nice post
अपनी सफलता को तभी जीया जा सकता है जब तक हम याद रखते हैं कि हम उन तक कैसे पहुंचे हैं ..और दोनों को ले कर ही जिंदगी को जीया जा सकता है ..ब्लॉग सच में ही दिल की बात कहने का बहुत सुंदर माध्यम बन गया है अच्छा लगा आपका यह कहना :)
सफलता और असफलता तो जीवन में आती रहती है मगर जो अपनी असफलता को सहजता से बताए वो उसके ईमानदार चरित्र का परिचायक है. आपकी पोस्ट अच्छी है
और बताओ न!! रुक क्यूँ गई??
-चलो, मन हल्का हो गया न...अब एक बेहतरीन हंसी मजाक वाली पोस्ट लाओ. शुभकामनाऐं.
palaavi
sach pooche to ham log dhero galtiyo ka ek pulanda hai jo aaj ke mahool me ek achhe package me lipta hai ....maine ek bar kisi kitaab me un dhero logo ke interview padhe the jo zindgi me behad safal the aor aisi zindgi jee rahe the jiss aoro ko khasa rashq hota tha ..aor hairani ki baat sabse jab poocha gaya to 80% ne kaha ki ve kuch aor banna chahte the ....
एक और नायाब पोस्ट.. आपकी हिम्मत की दाद देनी होगी.. आपकी दूसरी बात से मेरी बात भी मेल खाती है
आज आप बहुत हलकापन महसूस रही होंगी।
दिल पर पडा बोझ हलका कर देना चाहिये,ओर आज आप ने वही किया,जो असफ़लतो से सबक सीखता हे वही अपने मुकाम पर पहुचता हे, एक दिन सफ़लता उस के कदम चुमती हे, अब आजाये एक खुशी भरी पोस्ट, धन्यवाद
असफलता स्वीकार कर लो,
तो अन्दर से एक अलग ताकत,एक नई पहचान उभरती है
आज तुम जीत गई .......
bahut umda lekhan....asafalta
kiske jeevan me nahii hai..par unhe sweekar kar lena un asafaltaon ko laanghne ka pehla kadam hai..aur aapne woh kadam utha liya...badhai
चलिये अब मन हल्का हो गया होगा। सच कह देने के बाद बहुत राहत महसुस होती है।
बधाई
पल्लवीजी मै हमेशा आपका ब्लाग पढ़ती हूँ ।
सच लिखने का साहस आप जैसे लोगो मे ही होता है।
हमारे पुलिस विभाग मे आप जैसे सच्चे लोगो की
आवश्यकता है।
bhut badhiya likha hai. apni asafaltayo ko batana bhut badi baat hai. koi baat nahi ye bhi hame sikh deti hai.
अपनी असफलताओं को स्वीकारना भी एक सफलता होती है
और ये सब स्वीकार करके आप शायद एक और सफलता कि ओर बढ़ रही हैं
बशर्ते ये एक सफलता के शिखर पर बैठ कर किया गया आत्म प्रवंचना न हो
खैर अच्छा लिखा है
आगे भी आपसे ऐसे ही लेखन कि उम्मीद रहेगी
सच लिखकर
हमारे मन के
आसमान में
बस गई हो
पल्लवी।
सच की फसल
खूब उगे बढ़े
पर कभी न
कटे।
बनो मिसाल
साल दर साल
कायम रहे
यही जज्बा
सब लें तजुर्बा।
जीवन में असफलता का भी बहुत महत्त्व है . असफलता ही आगे जाकर सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है . असफलता सर सदैव सीख लेना चाहिए. बहुत बढ़िया पोस्ट . धन्यवाद्.
hi pallavi ji
aapka blog padha.bahut hi acchha laga.sabse acchha laga aapne apni asafaltao ka bada hi safal chitran kiya hai. main bhi saraswati shishu mandir,seoni (m.p.) me padhi hu ,esliye aap se kuchh vishesh lagav mahsus kar rahi hu, eske alwa aap bhopal police me hai ,esliye aur bhi utsuk hu kyonki mere ek ex class met hai jaydeep sood ,suna hai wo bhi bhopal police me hai, kya aap unhe janti hai ?
main aajkal nagpur me setteled hu. kuchh sal navbharat me bator sampadak kam kiya,kuchh sal lecturer -ship ki aur aajkal kendriya sewa me hindi anuwadak ke roop me karyrat hu
kya baat hai....aapke dil ki baat jaan kar hme kuchh sikhane ko mila.
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