रात के वीराने में उसकी किलकारी
जैसे किसी ने साँझ ढले
राग यमन छेड़ दिया हो
उसकी वो नन्ही-नन्ही अधखुली मुट्ठियाँ
नींद में मुस्कुराते होंठ
बार-बार बनता-बिगड़ता चेहरा
मोहपाश में बाँध रहे थे
विडम्बना यह कि वो फरिश्ता
नरम बिछौना, पालना या
माँ की गोद में नहीं
बल्कि कचरे के ढेर पर सो रहा था
इंसानों को कहाँ फुरसत थी,
उसकी रखवाली
मोहल्ले का 'मोती' कर रहा था
ए खुदा!
हम बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श...
जैसे किसी ने साँझ ढले
राग यमन छेड़ दिया हो
उसकी वो नन्ही-नन्ही अधखुली मुट्ठियाँ
नींद में मुस्कुराते होंठ
बार-बार बनता-बिगड़ता चेहरा
मोहपाश में बाँध रहे थे
विडम्बना यह कि वो फरिश्ता
नरम बिछौना, पालना या
माँ की गोद में नहीं
बल्कि कचरे के ढेर पर सो रहा था
इंसानों को कहाँ फुरसत थी,
उसकी रखवाली
मोहल्ले का 'मोती' कर रहा था
ए खुदा!
हम बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श...
32 comments:
पल्लवीजी, काफी अच्छी कविता..
डीएसपी साहिबा यह खुदा की नेमत जरूर है लेकिन कर्म इंसानों का ही किया हुआ है। जो शायद खुदा से नहीं डरते... वह समाज से डरते हैं..
बहुत सही...मार्मिक...
Bahut sundar Kavita Pallawi ji... Police wale suna tha bahut kathor dil ke hote hai lekin woh kathor dil wale itni sundar kavita bhi karte hai pahli baar dekha.. sach mein bahut sundar likha aapne
New Post :
Jaane Tu Ya Jaane Na ... Rocks
बहुत ही गहरी सोच वाली कविता.. बहुत सुंदर
सुंदरतम और सटीक।
सुंदर!
वैसे खुदा कहीं मोती की परीक्षा तो नहीं ले रहे थे? अगर ऐसा है तो मोती पास हो गया. और हम.....
गहरी चोट करती कविता। बहुत खूब।
विचारणीय कविता लिखी है ..भावुक कर गई यह
पल्लवी,
किसी भी कविता या साहित्य का
सबसे अहम और जरूरी काम होता है
संवेदनाओं को तरल करना........
शब्दों में बड़ी शक्ति होती है।
कहन के तौर पर ये पंक्तियां कुछ मौलिक बन पड़ी हैं -
ए खुदा!
हम बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श...
बधाई स्वीकारें.............
bahut hi marmik......
और हां,
ये तस्वीर उसी फरिश्ते की है क्या????
और मोती क्या इसी श्वान का नाम है???
जिज्ञासा है.................................
अंगूठा छाप
बहुत अच्छी कविता है ... पर खुदा की क्या गलती, हम बड़े ही तो परीक्षा के दौर में ऐसे काम कर जाते हैं... और खुदा ही तो मोती को भेज देता है ! बस ऐसे ही दिमाग में ये बात आ गई.
ए खुदा!
हम बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श...
पल्लवी जी....वाह...क्या कहूँ आप ने इन पंक्तियों में सब कुछ बयां कर दिया....रचना से एक दम मेल खाते आप के चित्र से पूरी बात साफ़ समझ आ जाती है.
नीरज
मैंने लगभग हर तरह के कुत्ते पाले हैं पर जितना बुद्धिमान और प्यारा गोल्डन रिट्रीवर को पाया उतना कोई और नहीं।
जब बड़े किसी परीक्षा से गुजरे और फेल हो गये तो रेजल्ट कार्ड उस कूड़े के ढेर पर फेंक दिया। यही तो इन्सानी फितरत है। बस, इस क्रूर नियति का शिकार वह मासूम बना जिसे समाज के क़ायदे लाने से डरते हैं। ...इसका हल क्या ढूँढा जाय? बस अफ़सोस...?
यधिपी आपने खुदा को सिर्फ़ पर्याय बना कर समाज पर व्यंग्य किया है पर अभिषेक ने पते की बात की है..........
bahut saral bhaav hain..pallavi..bahut acchey se kahey gaye
vah pallavi ji kya baat hai. bhut badhiya likhti hai aap.
बुरा लगता है ऐसा होता देख.. वो तो आज मीडिया की वज़ह से कभी कभी अपने ना सही पर दूसरों का सहारा मिल जाता है पर ख़ुदा किसी इंसान को ऍसा बेबस ना करे जो ये कृत्य रने को मजबूर हो जाए।
मानव सभ्यता के एक अंधकारपूर्ण पक्ष पर ध्यान आकृष्ट किया है आपने !
.
पल्लवी..ख़ुदा के लिये ख़ुदा को तो बख़्स दो !
इस कमीनी इंसानी फ़ितरत में ख़ुदा का कुसूर सिर्फ़
इतना ही है, कि वह बचपन को भी न बख़्सने वालों
को बख़्स दिया करता है ।
ख़ुदाई इस तरह की इज़ाज़त तो न ही देती होगी, कि
एक मासूम फ़रिश्ते को ज़ानवर की रहमत पर छोड़ दिया जाये !
कोई इन ' बड़े ही बहुतों ' तक पहुँचना ही कहाँ चाहता है,
बड़े नेक ख़्यालात हैं, तुम्हारे..और मैं इस ज़ज़्बे की नाक़द्री न करते हुये भी .. लगता है कि इस महफ़िल के माहौल के मुताबिक़ गलत बोल रहा हूँ । पर ये मेरे एहसाहात हैं, सो बोल या लिख रहा हूँ ।
तुम भी क्या करोगी..
यह भी एक एहसास ही तो है !
विचारणीय कविता -बहुत उम्दा, क्या बात है!
ए खुदा!
हम बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श........
बहुत सही,अच्छी कविता..
ए खुदा!
हम बड़े ही बहुत हैं
तेरे इम्तिहानों से गुजरने के लिए
कम से कम बचपन को तो बख्श...
Hey Police wali....
ek aakrosh ek samjh ek salah
sab kuch hi kaha ja sakta hai
सुंदर कविता है.
सरल शब्दों में बहुत बड़ी बात.
सीधे दिल में उतरती हुई.
क्या कहना.
bahut ghari kavita
ek bachha aur insaan ki krurta dikhati hui
likhte rahiye
kamal hai!
aap aap hain, sahajta se aap badi baat kahte huye sawal utha gayin.
इंसान कितना गिर सकता हे, शायद अपना कलंक छुपने के लिये ऎसा करता हो,ओर मोती वो तो हम से भी ऊपर हो गया एक फ़रिशता.आप की यह कविता बहुत ही मार्मिक हे, धन्यवाद.
(मेने कल भी टिपण्णी की थी दिखी नही कही)
सत्य बड़ी बड़ी सहजता और गंभीरता के साथ प्रस्तुत की गयी, बहुत ख़ूब!!!
bahut emotional likhi hai... hamare samaj ka ek kadwa sach
पल्लवी,
mera jawab nahin diya aapne...
ये तस्वीर उसी फरिश्ते की है क्या????
और मोती क्या इसी श्वान का नाम है???
Post a Comment