Wednesday, July 30, 2008

किस्सा -ए-होस्टल

लोग कहते हैं की होस्टल लाइफ के अपने आनंद होते हैं...और सही भी है अगर कॉलेज का होस्टल हो और दोस्त यारों के साथ जीवन के वो हसीन साल गुजारे जाएँ तो वे पल अविस्मरनीय बन जाते हैं!हमारे लिए भी अविस्मरनीय ही हैं वो तीन दिन!

पहला अनुभव- एम.ए. करने के बाद पी.एस.सी. परीक्षा का जब प्रीलिम्स निकाल लिया तो हम दोनों बहनों को मेन्स की तयारी के लिए पहली बार घर से दूर इंदौर कोचिंग के लिए भेजा गया! इसके पहले हम कभी अकेले नहीं रहे थे! तय हुआ की वहाँ गर्ल्स होस्टल में रखा जायेगा...हम दोनों भारी प्रसन्न क्योकी बचपन से ही न जाने क्यों होस्टल में रहने की बड़ी लालसा थी! अब पूरी होने जा रही थी!इंदौर में बड़े गणपति मंदिर के पास गंगवाल होस्टल है...वहीं हम दोनों रहने पहुंचे! दूसरी मंजिल पर एक कमरा हमें प्रदान किया गया जिसमे पहले से ही दो लडकियां और मौजूद थीं! दोनों पी.एम.टी. की तैयारी कर रही थीं...उम्र में काफी छोटी थीं हमसे ! एक कमरे में चार चार लडकियां...कैसे पढ़ेंगी? और उनमे से भी हम दो भयंकर बातूनी...हम सोच रहे थे की ये दोनों थोड़े शांत स्वभाव की निकल आयें तो पार पड़े वरना तो चारों का भविष्य हमें साफ़ नज़र आ रहा था! हमने डिसाइड किया की हम इन्हें ज्यादा भाव नहीं देंगे! पहला दिन तो कुछ यूं निकला कि हम लोग आपस में एक दूसरे को देखकर फर्जी स्माइल पास करते रहे! वो बड़ा समझ के आप आप करें और हम भी सभ्यता के मारे आप आप करें! अपने आप को ज्यादा सभ्य दिखाने के चक्कर में पूरा दिन खुल के हंस भी नहीं पाए! वहाँ की वार्डन बहुत तोप चीज़ थी!घर में होते तो अब तक दस बार नक़ल उतर गयी होती! पर वहाँ गंभीरता का चोल ओढे ओढे घबराहट सी होने लगी! जब शाम को दोनों लडकियां मार्केट तक गयीं तब हम दोनों ने आधा घंटा जम के ठहाके लगाये! उनके वापस आते ही फिर से घुन्ने बन गए! ठीक आठ बजे एक जोरदार किर्र की आवाज हुई और दोनों लड़कियों ने एक एक डिब्बी अपने हाथ में उठा ली और चलने लगीं...जाते जाते मुड़कर बोलीं " डिनर टाइम हो गया है..आप लोग भी आ जाइये नीचे डायनिंग हॉल में"
" अच्छा..आते हैं"
हम भी पहुंचे डिनर के लिए...देखा तो सभी लड़कियों के पास दो दो डिब्बियां थीं!मैंने बहन से कहा " अपन भी कल प्लास्टिक की डिब्बियां खरीद लायेंगे"
" पहले देख तो ले..क्या है इनमे" बहन ने फुसफुसा कर कहा!
खाना आया...डिब्बियां खुलीं! एक डिब्बी में घी,एक डिब्बी में अचार! देखते ही देखते अचार के आदान प्रदान होने लगा! और गप्पों और ठहाकों से हॉल गूँज उठा! मोटी मोटी रोटियाँ ,आलू की रसेदार सब्जी जिसमे किसी किसी की कटोरी में दो से ज्यादा आलू के टुकड़े भी थे! देखकर प्लास्टिक की डिब्बियों की उपयोगिता समझ में आ गयी! खैर खाना खाकर ऊपर अपने रूम में पहुंचे! बारह बजे तक पढाई की...दोनों लडकियां भी पढ़ रही थीं! बीच बीच में खुस फुसा कर बात करतीं! हमें लगा हमारे बारे में बात कर रही हैं!बड़ा बुरा लगा...अरे इतना भी सबर नहीं है जब हम कोचिंग जाएँ तब बुराई कर लें!बुराई करने की तमीज भी नहीं है!हमने खुसफुसा कर ही निश्चय किया की अगर ये ऐसा करेंगी तो हम भी इन्हें देखकर ऐसे ही फुसफुसायेंगे! अब अगली मुसीबत एक और आई...हमें आये जोर की नींद और हमारी दोनों रूम पार्टनर रात भर पढाई करने वालों में से थीं! एक बोली " हम सुबह चार बजे सोयेंगे तब लाईट बंद कर देंगे"
" रहने देना जी..हमने अपनी घडी में चार बजे का अलार्म लगाया है...हम चार बजे उठकर पढ़ते हैं" बहन ने जवाब दिया!
" क्यों रे...अपन कब चार बजे उठकर पढ़ते हैं" मैं बहन के कान मैं फुसफुसाई!
" अरे...जब इनकी नींद हराम होगी तब अकल ठिकाने आएगी इनकी!"
जैसे तैसे चादर आँखों पर डालकर सोने की कोशिश की! मगर दोनों लड़कियों की खुसुर फुसुर बदस्तूर जारी थी!
" देख तो...ये कितनी बुराई कर रही हैं अपनी" बहन ने कान में कहा!
" कुत्ता कुता भौंक रहे ,राजा राजा सुन रहे" हमने बहन को सांत्वना दी!

जैसे तैसे रात कटी....सुबह से एक नयी मुसीबत! बाथरूम जाने के लिए लम्बी कतार लगी थी!बाहर एक एक वाश बेसिन पर चार चार लडकियां ब्रश कर रही थीं!बुरे फंसे.....हम दोनों ने एक दूसरे को देखा!
" अपन रात को ही ब्रश कर लिया करें तो?" मैंने प्रस्ताव रखा!
" बकवास बंद कर...अपनी बारी का इंतज़ार कर चुपचाप" बहन ने आँख दिखाई!

एक घंटे में हम नहा धोकर फुर्सत हुए! शाम को कोचिंग से वापस लौटे! अब तक उन दोनों लड़कियों से थोडी दोस्ती हो गयी थी! हम लोगों ने आपस में करीब एक घंटा बातें कीं! रात होते ही फिर कल वाला नाटक..." हम तो चार बजे तक पढेंगे"
हम फिर से आँखों पर चादर डाल कर सो गए! बीच बीच में उनकी लगातार खुसुर फुसुर सुनाई देती रही! इस बार बहन ने सोने का नाटक करते हुए ही कान लगाकर सुना...और खुश होकर बोली " अपन खामखाँ इन पर शक कर रहे थे...ये अपनी बुराई नहीं करती हैं.., इनके बॉय फ्रेंड हैं उनकी बातें करती हैं!"
आहा...बड़ी तसल्ली मिली वरना कब तक " कुत्ता कुत्ता भौंक रहे राजा राजा सुन रहे" कहकर खुद को बहलाते! मन हुआ की इनसे कह दें " देवियों..अपने राजकुमारों की बातें करने के लिए तुम्हे लाईट जलाने की क्या ज़रुरत है! और पढाई का ड्रामा करने की भी आवश्यकता नहीं...हम तुम्हारी माएं नहीं हैं!तुम पी.एम.टी. में पास नहीं होगी तो हमारी सेहत में आधे ग्राम की भी कमी नहीं होगी!"मगर सोचा की थोडी और बेतकल्लुफी हो जाये तब कहेंगे वरना बुरा वुरा मान बैठें बेकार में!

इसी प्रकार तीन दिन गुज़र गए...हम आँख पर चादर डालकर सोते रहे...उनकी पी.एम.टी. की पढाई भी खुसफुसा कर चलती रही, हम भी डिनर पर जाते समय दोनों डिब्बियां ले जाने लगे!
चौथे दिन मम्मी आयीं..और हमने फैसला सुना दिया की अब हम होस्टल में नहीं रहेंगे! अलग रूम लेकर रहेंगे! मम्मी मान गयीं...हमने कोचिंग की ही एक लड़की के साथ रूम शेयर कर लिया! तो ये थे हमारे तीन दिन होस्टल के! कमरा लेकर रहने के अपने अलग किस्से हैं! फिलहाल ये हुआ होस्टल का पहला अनुभव! दूसरा अनुभव अगली पोस्ट में...

29 comments:

बालकिशन said...

हा हा हा
काफ़ी रोचक और मजेदार अनुभव रहा ये तो
चलिय आगे का भी इंतजार है.
आपकी शैली बहुत अच्छी है.

कुश said...

पहला अनुभव ही कमाल का था.. बड़ा कमाल का होस्टल पुराण है.. उनके वापस लौटने पर घन्ने बन जाना बढ़िया रहा.. हालाँकि इसका मतलब ज़रा समझ नही आया
अगली कड़ी का इंतेज़ार है..

Rajesh Roshan said...
This comment has been removed by the author.
मिथिलेश श्रीवास्तव said...

बहुत मजेदार थी आपकी हॉस्टल लाइफ, काश आपके हॉस्टल के दिनों में परिचय रहा होता!

Rajesh Roshan said...

किस्सा ऐ होस्टल चालू आहे.... मजेदार.... तो आप पहले से ही कड़क हैं!!

Anil Pusadkar said...

achha laga hostel me kabhi rahe nahi lekin,hostel mere liye khula rehta tha,college ke dhansoo type ke neta jo the.achha idea mila hai aapse hostel,ncc camp aur sports tour par likhne ki koshih karunga.dhanyawaad aapko

डॉ .अनुराग said...

हमसे पूछिए पल्लवी जी .......हमारा एक हिस्सा अब भी उस होस्टल में रहता है.......क्या याद दिला दिया आपने ....आह

रंजू भाटिया said...

बहुत रोचक ..होस्टल कभी रहे नहीं पढ़ कर यही दिल में आ रहा है कि कुछ जिंदगी का मिस हो गया है :) अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा |

vipinkizindagi said...

मजेदार post
आगे का भी इंतजार रहेगा

Abhishek Ojha said...

आपने होस्टल को बदनाम कर दिया :(

हमारे पास तो अनुराग जी वाले अनुभव हैं.

नीरज गोस्वामी said...

"आलू की रसेदार सब्जी जिसमे किसी किसी की कटोरी में दो से ज्यादा आलू के टुकड़े भी थे!...."
वाह...क्या जोरदार ओबजर्वेशन है....बहुत रोचक वर्णन...
नीरज

शोभा said...

रोचक अनुभव लिखा है। पढ़कर चित्र सा आँखों के सामने आगया। सस्नेह

Atul Pangasa said...

Ek arse baad puraane din yaad aa gaye......... :)

सुशील छौक्कर said...

हम तो कभी भी होस्टल बगैरा में नही रहे। पर पढकर आनद ले लिया। आगे के अनुभव का इंतजार है।

Pragya said...

bahut rochak anubhav!!!
kaash woh doctor ladkiyaan (i hope woh doctor ban gayee hon, na bhi bani ho to hamari sehat mei bhi aadhe gram ka antar nahi hoga) yah padh rahi ho...
kabhi mera anubhav bhi sunana hostel ka aur kiraye ke kamre ka... kaafi mazaa ayega...

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, अपने छात्र दिनों में पिलानी के मीरा भवन (बिट्स गर्ल्स हॉस्टल) के वातावरण का हम कयास ही लगाते थे। उस समय आपकी पोस्ट का कण्टेण्ट मालूम होता तो कितना मजा आता!:)

संजीव कुमार said...

aapka kissa-e-hostel padhkar apne hostel ke purane din yaad aa gaye. accha laga. isi tarah likhte rahiye.

Manish Kumar said...

रुड़की विश्वविद्यालय में भी घी और अचार की डिब्बियाँ ले जाने का रिवाज़ था। वैसे लड़कों के हॉस्टल की कहानियाँ कुछ ऍसी होती हैं जिन्हें याद कर अभी भी हँसते हँसते बल पड़ जाते हैं कि लोग क्या क्या खुराफात किया करते थे।

डा. अमर कुमार said...

.


अफ़सोस कि तुम तीन दिनों में ही धराशायी हो गयीं,
हमसे पूछो.. आठ वर्ष छात्रावास में..
कभी मेस बंद, तो कभी एच.बी.टी.आई. के लड़कों से मार-पीट | एक चाय और एक समोसे पर अगले के लिये कुर्बान हो जाने वाले दिन ।
रात में अचानक शोर...
हमलाऽऽ हमलाऽ हो गय्या हॊयॆ चलो हमलाऽ
कौन है ? चाय की गुमटी वाला कुछ शराबियों की तरफ़दारी करने में तबाह होगया । पलक झपकते ही तीन दुकानों पर जैसे बुलडोज़र चल गया हो ।
आह..वो हास्टल के दिन !
आता है मुझे फिर याद वो ज़ालिम....
...गुज़रा ज़माना हास्टल काऽऽ

हाँ, ज्ञानदत्त जी के तरह गर्ल्स हास्टल की ओर ताक झाँक नहीं किया करते थे, अच्छे लड़कों में गिनती होती थी, सो बेख़ौफ़ यह सब कार्य दिन में ही सम्पन्न कर लिये जाते थे । महज़ सनसनी मचाने के लिये चहारदिवारी फाँदनें और जंगल में शेर देख कर भेड़ों का भागना याद है..चुपके चुपके सब याद आ रहा है ।
थैंक यू, बीते बरसों में लौटा ले जाने के लिये ..

Satish Shukla said...

पल्लवी जी काफी अच्छा लेख है धन्यवाद ! मैं अपने हॉस्टल के दिन याद कर रहां हूँ और मुस्कराए बगैर नहीं रह सकता | मेरा हॉस्टल अनुभव ४ सल् से अधिक का है इसलिए सभी परस्थित्यों से अवगत हूँ |

वैसे 4 लड़कियों की जगह अगर 8 लड़कों को एक हॉस्टल के रूम में रहना पडे तो भी उनको कोई विशेष तकलीफ नहीं होती ?

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में आठ साल मजे से कटे। रोज की एक अलग कहानी। कोचिंग वालों के हॉस्टेल थोड़े जुदा होते होंगे।
आपकी शानदार प्रस्तुति से प्रेरणा पाकर मुझे भी कुछ मजेदार आइटेम यहाँ लाने का सूत्र हाथ लग गया है। आजमाता हूँ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

वाह पल्लवी जी ...ये होस्टेल की कहानी तो बडी रोचक रही ...:-))
और सुनाइये
- लावण्या

कामोद Kaamod said...

किस्सा-ए-हॉस्ट्ल लज्जतदार मज़ेदार
नया दिन नया अनुभव
बहुत मजे हैं इसके भी.

अच्छे संस्मरण, रोचक .

Vinay said...

नीरज गोस्वाम की बात से पूर्णतया सहमत!

Udan Tashtari said...

बड़ा रोचक संस्मरण रहा-एक दो हफ्ते होस्टल में और रुक जाती तो कम से उनके राजकुमारों के किस्से तो पूरा सुन लेती मगर सब्र हो तब न!!

तीन दिन के लिए जबरदस्ती दो दो डिब्बी खरीद ली दोनों बहनों ने. बेकार गई न आखिर! क्यूँ?

चलो, अब आगे का किस्सा सुनाओ. :) मजा आया पढ़कर.

ज़ाकिर हुसैन said...

"आलू की रसेदार सब्जी जिसमे किसी किसी की कटोरी में दो से ज्यादा आलू के टुकड़े भी थे!...."
मजेदार post
आगे का भी इंतजार रहेगा

Shiv said...

बहुत रोचक संस्मरण...आपकी लेखन शैली तो अद्भुत है ही. बहुत पसंद आई आपकी यह पोस्ट.

राज भाटिय़ा said...

अरे वाह क्या पुरे भारत मे एक ही मुहावरा चलता हे *" कुत्ता कुता भौंक रहे ,राजा राजा सुन रहे"बहुत ही मजे दार ओर अपना सा लगा आप का
"किस्सा -ए-होस्टल"
धन्यवाद

Varunish Garg said...

Ab toh agle janam ka hi intezaar hai.. warna usse pehle woh alu ki sabzi kaise khayenge.

Waise apna hosteliya anubhav kuch juda nahi hai