वो पगली सिर्फ हंसना जानती थी ! बचपन से ही मैले कपड़ों में पूरे मोहल्ले में भटकती फिरती और जिसे देखती , देखकर " खी खी " करके हंस पड़ती और फिर बस हंसती ही रहती देर तक ! लोग हिकारत से देखते और गुज़र जाते ! कई लोगों को उसकी हंसी देखकर रश्क तक होने लगा ! बुद्धिमान उसकी हंसी को उसका सुख समझते और अपने जीवन को कोसते !
उसे रुलाने के प्रयत्न किये जाने लगे ! बच्चे जूठे आम फेंक कर मारते , कोई मनचला कंधे पर हाथ मारकर निकल जाता , एक औरत ने उसका एकमात्र शॉल नज़र बचाकर उठा लिया और नाले में डाल दिया दिया , जिस घर के सामने देहरी पर बैठ जाती , गालियां सनसनाती उसके कानों के आर पार हो जातीं ! वो बस हंस पड़ती .... उसकी हंसी में एक नामालूम सी उद्देश्यता थी ! कई बार पेट पकड़ पकड़ कर हंसती।,मगर नामुराद की आँखों में कभी हंसी के मारे भी आंसू नहीं आये ! उसे रुलाना मोहल्ले के एक एक व्यक्ति का उद्देश्य बन गया था ! एक दिन एक अजनबी आया और उसके सामने आकर खड़ा हो गया ! पगली ठठाकर हंस पड़ी , हंसती गयी बस हंसती गयी ! वो भी उसके सामने चुप्प खड़ा रहा बस खड़ा रहा ! पगली हंसी के मारे दोहरी हो हो गयी ! पहर बीतने को आयी ! मोहल्ले के लोग तमाशा देखने इकट्ठे हो गए ! ऐसा लगने लगा पगली हंस हंस कर ही प्राण त्याग देगी ! तभी यकायक अजनबी ने आगे बढ़कर पगली को सीने से लगा लिया ! पगली हंसती हुई छूटने की कोशिश करने लगी , इस कोशिश में उसकी अजीब अजीब भंगिमाएं देख मोहल्ला हंसी के मारे लोटपोट होने लगा ! लेकिन वो उसे कसकर सीने से लगाए रहा , जब पगली थोड़ी बेदम हो उठी तब अजनबी ने उसका चेहरा अपनी हथेलियों में भरकर प्यार से ऊपर उठाया और उसके सर पर धीरे धीरे हाथ फेरने लगा ! पगली अब चुपचाप उसके सीने से लगी थी ! अब वो खामोश थी ! एकाएक उसकी आँखों में एक काला बादल उतर आया और कुछ पलों में बरसात शुरू हो गयी ! पगली रो रही थी .... बिलख बिलख कर रो रही थी ! अजनबी उसे मजबूती से बाहों में भरकर खड़ा था ! एक के बाद एक तूफ़ान पगली की आँखों से गुज़रकर फ़िज़ाओं में घुलते जा रहे थे ! पूरा मोहल्ला सकपकाया हुआ अपनी आँखें पोंछ रहा था ! दो पहर और बीते ! अँधेरा होते ही केवल दो लोग वहाँ खड़े थे ! एक अजनबी की बाहों में घिरी एक रोती हुई पगली! उस दिन रात भर तूफानी बारिश हुई ! सुबह होते ही मौसम साफ़ हुआ था और पगली की आँखों ने अजनबी के काँधे पर एक शुक्रिया रखा था ! वो इक तूफ़ान की रात थी , इक बरसात की रात थी , इक आंसुओं की रात थी ………… वो इक प्रेम की रात थी ! |
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
8 comments:
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
इस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 05/04/2014 को "कभी उफ़ नहीं की
":चर्चा मंच :चर्चा अंक:1573 पर.
दुःख का बादल बरस ही पड़ा प्रेम की ऊष्मा से ...
Hmmmmmmmmmmmmmmm......
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
देर तक गूंजती रही पंक्तियाँ दिल के कोने में ... बस और कुछ नहीं ..
हँसी की चादर से ढका वह भावों का ज्वार, सुन्दर कहानी।
बेहतरीन....आप बहुत ही अच्छा लिखती हैं पल्लवी। अभी एक-दो रचनाएं ही पढ़ पाई हूं पर पढ़कर मज़ा आ गया। आपने तो इंद्रधनुष के सारे रंग बिखेर दिए हैं अपनी लेखनी से...बहुत अच्छा। और पढ़ूंगी और तब रचनाओं पर पर्टिकुलरली कमेंट करूंगी। ऑल द बेस्ट फॉर योर फ्यूचर एंडेवर्स!
speechlesssssssssssssssss
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