हिन्दुस्तान में घरवालों की मर्ज़ी के विरुद्ध किये गए प्रेम विवाह के लिए लड़के लड़की आवागमन के लिए बैलगाड़ी से लेकर हवाई जहाज तक किसी भी साधन का प्रयोग कर लें , वो हमेशा भागते ही हैं ! भागे बिना प्रेम विवाह का कोई मोल नहीं ... दो कौड़ी का है वो प्रेम विवाह जिसमे लड़का ,लड़की भागें ना और भागते भागते घर वालों , रिश्तेदारों , दूर के रिश्तेदारों और बिरादरी की नाकें काटकर अपनी जेबों में न भर ले जाएँ !भागने और नाक कटने का चोली दामन का साथ है !जिनकी नाकें रिश्वत लेते पकडे जाने में , लड़की छेड़ देने में नहीं कटतीं , लड़की के भागते ही नाक अपने आप चेहरे से उतरकर लड़की की जेब में भरा जाती है ! साथ ही परिवार की इज्जत जो लाखों करोड़ों की थी , लड़की के भागते ही एक क्षण में इज्जत का अवमूल्यन होता है और वो दो कौड़ी की रह जाती है ! माने भागना केवल लड़के लड़की का भागना नहीं है , इसके साथ घर का बहुत कुछ भागता है !
इस उच्च परंपरा के कारण लंगड़े , अपंग , अपाहिज लड़के लड़कियों को भी भागा हुआ कहलाने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है !कई अपाहिज तो लोगों के ताने सुन सुनकर इतने उकता गए कि आनन् फानन में जो प्रेमी /प्रेमिका तत्काल उपलब्ध हुए, उसी के साथ रातों रात "भाग गए !" वो बात अलग है कि वे सौ मीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से भागे थे ! भागना तो भागना ही कहलाता है !
भागना वैसे कोई छोटा मोटा काम नहीं है , एक अत्यंत साहसिक कार्य है ! इस यथोचित साहस के अभाव में कई बार लड़के लड़कियों की ऐसी कम तैसी हुई है ! कई दफा लड़की अपना झोला झंडा लेकर आधी रात घर से निकल पड़ी और छज्जू की दूकान के पीछे सवेरे के पांच बजे तक खडी रही मगर मजनू की फूंक सरक गयी और वे नहीं पधारे! लड़की ने पांच बजे घर वाकई में भागकर दोबारा बिस्तर में घुसकर अपने प्राण बचाए या घर में घुसती पकड़ी गयी और खूब रैपटे घले ! कई बार मजनू मियाँ मोटरसायकल लेकर लड़की के मोहल्ले के चक्कर काटते रहे और लड़की खर्राटे भारती रही !कई बार मजनू भाई को लड़की के इशारे पर ही हवालात दर्शन को पहुंचा दिया गया !
ये भी गौर करने वाली बात है कि जब कोई दौड़ने के लिए भागता है तो उसे " भागना " कहते हैं लेकिन जब प्रेमी भागते हैं तो वे "भागते" नहीं हैं बल्कि "भगते " हैं ! "भग गयी कुलच्छिनी घर से "
सारी बचपन से सीखी हुई विद्या , कशीदाकारी , तरह तरह के कबाब मेकिंग की सिखलाई आदि आदि सारे लच्छन अग्नि के हवाले करके "भगती" है एक कन्या !
एक और ख़ास बात है कि हर प्रकार की कन्या "भग" सकती है! जिसके चाल चलन के बारे में पूरे मोहल्ले को उसके पैदा होने के दिन से ही शक होता है वो भी और जिसके मुख से बीस वर्ष की अवस्था तक मोहल्ले ने हाँ ,हूँ के सिवाय कुछ न सुना हो वो भी " भगने " में निपुण हो सकती है !
कई सालों बाद जब सारे तूफ़ान शांत हो चुके होते हैं ! कुलच्छिनी कन्या और आवारा लफंगा छोरा घर के बहू और दामाद बन चुके होते हैं , तब एक दिन सारे लच्छन कन्या को वापस कर दिए जाते हैं ! तब ये "भागना " परिवार के लिए रिश्तेदारों द्वारा तानों के रूप में मौके बेमौके छोड़े जानी वाली फुलझड़ी के रूप में और लड़का लड़की के लिए " एडवेंचर " के रूप में बकाया रह जाता है !
इस उच्च परंपरा के कारण लंगड़े , अपंग , अपाहिज लड़के लड़कियों को भी भागा हुआ कहलाने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है !कई अपाहिज तो लोगों के ताने सुन सुनकर इतने उकता गए कि आनन् फानन में जो प्रेमी /प्रेमिका तत्काल उपलब्ध हुए, उसी के साथ रातों रात "भाग गए !" वो बात अलग है कि वे सौ मीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से भागे थे ! भागना तो भागना ही कहलाता है !
भागना वैसे कोई छोटा मोटा काम नहीं है , एक अत्यंत साहसिक कार्य है ! इस यथोचित साहस के अभाव में कई बार लड़के लड़कियों की ऐसी कम तैसी हुई है ! कई दफा लड़की अपना झोला झंडा लेकर आधी रात घर से निकल पड़ी और छज्जू की दूकान के पीछे सवेरे के पांच बजे तक खडी रही मगर मजनू की फूंक सरक गयी और वे नहीं पधारे! लड़की ने पांच बजे घर वाकई में भागकर दोबारा बिस्तर में घुसकर अपने प्राण बचाए या घर में घुसती पकड़ी गयी और खूब रैपटे घले ! कई बार मजनू मियाँ मोटरसायकल लेकर लड़की के मोहल्ले के चक्कर काटते रहे और लड़की खर्राटे भारती रही !कई बार मजनू भाई को लड़की के इशारे पर ही हवालात दर्शन को पहुंचा दिया गया !
ये भी गौर करने वाली बात है कि जब कोई दौड़ने के लिए भागता है तो उसे " भागना " कहते हैं लेकिन जब प्रेमी भागते हैं तो वे "भागते" नहीं हैं बल्कि "भगते " हैं ! "भग गयी कुलच्छिनी घर से "
सारी बचपन से सीखी हुई विद्या , कशीदाकारी , तरह तरह के कबाब मेकिंग की सिखलाई आदि आदि सारे लच्छन अग्नि के हवाले करके "भगती" है एक कन्या !
एक और ख़ास बात है कि हर प्रकार की कन्या "भग" सकती है! जिसके चाल चलन के बारे में पूरे मोहल्ले को उसके पैदा होने के दिन से ही शक होता है वो भी और जिसके मुख से बीस वर्ष की अवस्था तक मोहल्ले ने हाँ ,हूँ के सिवाय कुछ न सुना हो वो भी " भगने " में निपुण हो सकती है !
कई सालों बाद जब सारे तूफ़ान शांत हो चुके होते हैं ! कुलच्छिनी कन्या और आवारा लफंगा छोरा घर के बहू और दामाद बन चुके होते हैं , तब एक दिन सारे लच्छन कन्या को वापस कर दिए जाते हैं ! तब ये "भागना " परिवार के लिए रिश्तेदारों द्वारा तानों के रूप में मौके बेमौके छोड़े जानी वाली फुलझड़ी के रूप में और लड़का लड़की के लिए " एडवेंचर " के रूप में बकाया रह जाता है !
8 comments:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (18.04.2014) को "क्या पता था अदब को ही खाओगे" (चर्चा अंक-1579)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
भागने के बाद वापस आ जाएँ परिवार अपना लें तब तक तो ठीक ... अगर जान लेने पे उतारू हो जाए समाज तो उम्र भर का भागना रह जाता है ..
बेहतरीन लेखन व प्रस्तुति , पल्लवी जी धन्यवाद !
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~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )
:-) :-)
अनुलता
इस एडवेंचर का अपना मज़ा है...पहले मोहल्ले वालों के लिए मसाला...बाद में नाती-पोतों के लिए किस्सा...सुन्दर प्रस्तुति...
क्या बात है -खूब रिसर्च कर रही हैं इस पर !
काफी सुन्दर प्रस्तुति लगी मुझे और , आपके लेखन की क़ाबलियत ने इतने सीरियस विषय को भी हास्य बना दिया ..धन्यवाद.
पता नहीं आपने देखा कि नहीं
http://blogsinmedia.com/?p=26232
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