एक उदास शाम
मैं बैठा समंदर किनारे
अपनी भीगी पलकें लिए
उफक पर डूबता हुआ सूरज
जैसे मेरी खुशियाँ भी
साथ लेकर डूब रहा हो
घोर निराशा,घोर अन्धकार
मैं कर रहा था सिर्फ
अपनी मौत का इंतज़ार
समंदर की लहरें
मानो हँस रहीं थीं
मेरे दर्द पर
यकीन था मुझे कि
खुशियाँ मुंह मोड़ चुकी हैं मुझसे
और रौशनी बिछड़ चुकी है
तभी एक मखमली स्पर्श ने
चौंकाया मुझे
एक नन्हा बच्चा आकर
लटक गया मुझसे
मैं भूल गया अपने ग़म
कुछ पल को
हमने रेत का घर बनाया
सीप इकट्ठी कीं
और जी भर के भीगे
उन मचलती लहरों में
और उसी पल उफक पर डूबते हुए
सूरज ने मुझसे कहा
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
मैं बैठा समंदर किनारे
अपनी भीगी पलकें लिए
उफक पर डूबता हुआ सूरज
जैसे मेरी खुशियाँ भी
साथ लेकर डूब रहा हो
घोर निराशा,घोर अन्धकार
मैं कर रहा था सिर्फ
अपनी मौत का इंतज़ार
समंदर की लहरें
मानो हँस रहीं थीं
मेरे दर्द पर
यकीन था मुझे कि
खुशियाँ मुंह मोड़ चुकी हैं मुझसे
और रौशनी बिछड़ चुकी है
तभी एक मखमली स्पर्श ने
चौंकाया मुझे
एक नन्हा बच्चा आकर
लटक गया मुझसे
मैं भूल गया अपने ग़म
कुछ पल को
हमने रेत का घर बनाया
सीप इकट्ठी कीं
और जी भर के भीगे
उन मचलती लहरों में
और उसी पल उफक पर डूबते हुए
सूरज ने मुझसे कहा
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
10 comments:
वाह यह कविता बहुत अच्छी लगी, पर अंत में निर्णायक वक्तव्य देने से बचिए कविता में, उसे किसी और तरह से रखने की कोशिश कीजिए, और इतने सुंदन दृश्य आप ढूंढ लाती हैं शुक्रिया पल्लवी जी...
सुंदर कविता.
मधुर भाव.
आभार.
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
--वाह! क्या बात है. बहुत उम्दा. एकदम सत्य. मजा आ गया.
पल्लवी याद है मैंने एक नज्म लिखी थी अपने बेटे के लिए........बस संदेश यही था जो तुम देना चाह रही हो...
एक भाव पूर्ण अभिव्यक्ति है यह अच्छी लगी
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
वाह !
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
बहुत सुंदर बात कही आपने..मन को छू गए ये भाव।
मुकुल जी आपकी टिप्पणी समझ नहीं आई कि
निर्णायक वक्तव्य देने से बचिए कविता में..और तरह से रखने की कोशिश कीजिए
इस बात से आपका आशय क्या है?
चाहे बंद हो दरवाज़ा,लेकिन
रौशनी की तरह
ख़ुशी को भी
अन्दर आने के लिए
सिर्फ एक दरार ही काफी है...
nice wording and nice thought....gr8 one...
प्रशंसनीय
wah yah to ek lajawab rachna hai...
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