आज खाली बैठे बैठे कोई पुस्तक पढ़ रहे थे उसमे लेखक ने कई जगह बार बार लिखा कि कुछ ऐसा करो कि दूसरों का दर्द कम कर सको तब ही जीवन सार्थक है...दिमाग पर पूरा जोर पेल दिया लेकिन पिछले कई बरसों में ऐसा कोई काम ध्यान नहीं आया जब हमने किसी का दर्द कम किया हो!कम करना तो दूर हमें तो किसी का दर्द सुनते भी बोरियत होती थी! लेकिन इस लेख ने सोयी आत्मा को जगाया और हमने सोचा हम भी किसी का दर्द बाँट कर अपना जीवन सार्थक कर लें... दर्द के बारे में सोचते ही कविवर दुखी मन "विरही" याद आ गए...नाम में ही इतना दर्द है इनसे ज्यादा दुखी कौन मिलेगा..चलो दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं देना पड़ा..हम चल दिए उनके घर उनका ग़म बांटने!
दुखी मन "विरही" एक कविवर हैं जो न जाने कब से सिर्फ दर्द में सनी कवितायें ही लिखते आ रहे हैं...हम भी वक्त के मारे उनके जबरन के श्रोताओं में से हैं! उनकी कवितायें जब भी सुनो जाने कैसा कैसा लगने लगता है...ऐसा लगता है जैसे संसार की हर चल अचल वस्तु सिर्फ आंसू बहाने के लिए ही पैदा हुई है...बताते हैं की पहले कविवर ऐसे नहीं थे..एक बार प्यार में दिल विल टूट गया तब से कलम दर्द उगल रही है...
रात के दस बजे थे...हम चल दिए कड़ा मन करके कवि के
घर! पता था कुछ कविताओं का डोज़ तो लेना ही पड़ेगा! रास्ते में उनके अक जिगरी दोस्त मिल गए ..जिनसे हमें पता चला कि कविवर इस समय पब में गए हुए हैं...कवि,दुखी,पब....कुछ तालमेल समझ नहीं आया पर घर से पक्का इरादा करके निकले थे कि आज तो दर्द बांटकर ही लौटेंगे...पहुँच गए पब में..
देखा तो कविवर जाम के घूंटों के साथ नृत्य देखने में मग्न थे...एक पल को तो हमें लगा कि शायद हमें आने में देर हो गयी हमसे पहले कोई और इनका दर्द बांटकर चला गया...
खैर..हम पहुंचे कवि के पास और पास ही खाली कुर्सी पर बैठ गए...कविराज ने जैसे ही हमें देखा एक पल को तो चौंक गए फिर उनके चेहरे पर वही ट्रेजेडी किंग वाले चिर परिचित भाव गहरा गए...हमें तसल्ली हुई..चलो अभी ग़म मरा नहीं हम नाहक ही परेशान हो रहे थे ये सोचकर कि दर्द बांटने का मौका हाथ से चला गया!
तुम यहाँ?" कवि आह सी भरकर बोले
बस..यूं ही आपका ग़म बांटने चला आया!
क्या बांटोगे तुम मेरा ग़म..मैं तो खुद ही टुकडों टुकडों में बँटा हुआ हूँ
मन की प्रसन्नता को छुपाते हुए हमने कहा "नहीं..आज हम आपका दर्द सुने बिना नहीं जायेंगे
बस..जिंदा हूँ, जीने की सज़ा भुगत रहा हूँ...
यहाँ पब में सजा भुगत रहे हैं...?हमसे पूछे बिना रहे नहीं गया!
तुम नहीं समझोगे..तुमने कभी प्रेम किया है"
नहीं...हमने न में अपने मुंडी हिलाई!
जब से ये दिल चाक हुआ है...
क्या हुआ है...?हमने बीच में टोका!
अरे...तुम नॉन शायर लोगों के साथ यही प्रोब्लम है..सारे मूड का कचरा कर देते हो..!" कविवर सुरूर में तो थे ही,भड़क गए!
अच्छा ,अच्छा ठीक है...समझ गए ..आगे बोलिए" हमने बिना समझे ही कहा!
तुमने सुना तो होगा ही कि ग़म का मारा आदमी कितना अकेला होता है
हाँ हाँ...सुना है ...तभी तो ये सोचकर कि आप अकेले सुनसान जगह पर बैठे आंसू बहा रहे होंगे ,हम चले आये आपके पास पर आप तो भीड़ भड़क्के मैं बैठे हैं...कहा हैं अकेले?
अरे...पहले के प्रेमी मूर्ख और अनपढ़ हुआ करते थे..नहीं जानते थे कि इस उदासी से कैसे निकला जाए पर हम मॉडर्न लवर हैं...पढ़े लिखे भी हैं सो जानते हैं कि डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को खाली नहीं बैठना चाहिए...इसलिए बस किसी तरह मन लगा रहे हैं ताकि उसकी यादें कुछ पल को दिल से दूर जा सकें वरना तो जरा सा खाली बैठे नहीं कि उसकी यादें दिल में मकां कर लेती हैं...
कविवर...आप तो सरकारी बाबू हैं...काम में भी तो खुद को दिन भर व्यस्त रख सकते हैं...?
सरकारी हैं तभी तो....काम ही नहीं है कुछ! ऑफिस में हाजिरी रजिस्टर पर साइन करके चले आते हैं..बड़े बाबू से ठीकठाक सैटिंग है! तुम प्राइवेट लोग मज़े में हो...सुबह १० से रात ८ बजे तक काम में जुते रहते हो...लकी मैन!"
हमें समझ नहीं आया की कवी ने अपनी व्यथा सुनाई या हमारा मज़ाक उड़ाया! लेकिन अभी ये सब सोचने का वक्त नहीं था!हमारे मन में एक उत्सुकता और पैदा हुई....रहा न गया तो पूछ बैठे!
"कविवर...बुरा न माने तो एक बात बताएं....आपके पास इतना पैसा कहाँ से आता है की आप रोज़ पब जाकर ग़म गलत कर सके!
अरे अभी बताया न...सरकारी कर्मचारी हैं! फिर भी फालतू बात पूछते हो" कवि ने थोडा सा झिड़का !
यहाँ हम कोई ख़ुशी से थोड़े ही आते हैं...मजबूरी है.!.".कवि ने फिर निराशा का दामन थामा!
फिर तो ठीक है....खुद पर हमें शर्म आई ..कविवर तो यहाँ ग़म गलत करने आये हैं और हम जाने क्या सोच बैठे थे!
तुमने दिल के दुखते तार छेड़ दिए....थोडा नृत्य कर लूं तो शायद हलका महसूस करूं .." यह कहते हुए कविराज डांस फ्लोर पर उतर आये..दुखी मन से उन्होंने आधा घंटा झूम कर नृत्य किया!इसके बाद एक पैग और लगाकर बोले "चलो घर...!आज तुम्हे दास्ताने दिल सुनाता हूँ!"
चलिए...हम तो पूरी कथा सुनने को बेताब थे ही...दिन में चार घंटे सो लिए थे सो जागने की कोई टेंशन नहीं थी!
रास्ते में कविवर को जूस
की दूकान खुली दिखी सो बोले चलो आमरस ही पीते चलें...हमें क्या आपत्ति भला! दो दो गिलास रस गटका और पहुंचे कविवर के घर...पहुंचते ही कवि ने ऐसी गहरी आह भरी कि डर के मारे छिपकली ,मछर ,कोकरोच सब भाग गए!आज हमें राज़ पता चला कि कवि के घर में ये कीडे मकोडे क्यों नहीं पाए जाते....हमने निश्चय किया कि किसी दिन कवि का अच्छा मूड देखकर ऐसी आह भरना सीखेंगे!
कवि न कहना शुरू किया.."मैं क्या उदास हुआ, चाँद की ऑंखें भी भर आयीं, तारों का मुंह उतर गया और आसमान कराह उठा...
कविवर...आप अपना दुःख बांटने वाले थे!" मैंने हिम्मत करके बीच में टोका
वही तो बता रहा हूँ ,तू क्या समझता है मैं बरात के गीत गा रहा हूँ? कवि फिर से भड़क गए
नहीं नहीं..कहिये प्लीज़
अब तो ये दीवार भी मेरी दशा पर आंसू बहाने लगी है...कवि ने दीवार की तरफ इशारा करते हुए कहा!
अरे कविवर....छत सुधरवा लो..सीलन बैठ रही है दीवार में!" हमने बमुश्किल हसी रोकते हुए कहा
तुम दुनियादार लोग क्या जानो दिल की बातों को? इस वार्तालाप के बाद कवि एक एक प्याली चाय बना लाये!चाय पीने के बाद कवि ने पेड़,पत्ते ,तितली,पहाड़,समंदर आदि लोगों को भी आंसू बहवाये! हमने हिम्मत करके पूछा "कविवर, कौन है वो बेवफा जिसने आपको ऐसी कवितायें लिखने पर मजबूर कर दिया!
बेवफा न कहो मेरी बनमाला को
हमारा माथा ठनका "वही बनमाला तो नहीं जो रामा डोसे वाले के पीछे वाली गली में रहती है!
हाँ हाँ..वही तुम कैसे जानते हो?कवि व्याकुल हुए!
अरे आप भी किसके चक्कर में पड़े हो..उसकी तो शादी हो गयी एक साड़ी की दुकान वाले से!रोज़ नयी नयी साडियां पहन कर घूमती है और मोटी भी हो गयी है शादी के बाद से..उसे देखकर तो कहीं से नहीं लगता कि आपसे बिछुड़ने पर उसकी काया में एक मिली मीटर की भी कमी आई होगी! हमेशा दांत दिखाती रहती है!
अरे नहीं...तुम भी उसकी हसी पर ही गए..अपने अन्दर सैकडों सागरों का दुःख समाये मुस्कुराती रहती है.." कवि ने फिर से गहरी सांस छोड़ी!
आपसे कभी कहा उसने ऐसा ?
कहना क्या...निगाहों से सब समझ आता है!हम उसके दिल की दशा जानते हैं!उसके पास तो कोई नहीं जिससे वो अपना दर्द बाँट सके!
ओह..तो ये बात है .बेचारी ग़म की मारी है ,कैसे अपना ग़म छुपा कर नयी साडियां पहनती होगी? कैसे आंसू भरी आँखों से रामा के यहाँ जाकर डोसा खाती होगी? हमारा मन दया से भर उठा!
हमने निश्चय किया कि कल जाकर बनमाला का भी दर्द बाँटेंगे!हम उठने लगे तो कवि ने केसर वाला दूध पिलाया! अभी तक हमने सुना था कि ग़म में लोग शराब पीने लगते हैं पर पहली बार देखा कि शराब के साथ जूस,चाय,दूध सब पीने लगे हैं कविराज! शायद ग़म ज्यादा होता हो तो ज्यादा सामग्री की आवश्यकता पड़ती हो!
चलिए आज हमने कविवर का दर्द बांटा....कल बनमाला का हाल भी सुनेंगे और अगली पोस्ट में आपके साथ बाँटेंगे!तब तक के लिए विदा.....