तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
लिखना खुद को ढूँढने जैसा महसूस कराता है हमेशा....कई बार लिखने के बाद खुद को बदला बदला सा पाती हूँ तो कभी अपने अन्दर छुपे हुए जज्बातों का बाहर बह निकलना हैरत में डाल देता है! बदलते मूड के साथ अपने अन्दर बैठे कई इंसानों को महसूस करती हूँ...
17 comments:
सुबहान अल्लाह
भावनाओ से भारी प्यारी सी रचना..
हो सके तो किसी एक को
अपने दांतों से आधा काट लेना
आधा मुझे दे देना
मिल बाँट कर खा लेंगे
सुंदर भाव पूर्ण कविता है :)
सुंदर भाव
सुंदर!
अति सुंदर!
खूब लिखा आपने.
बहुत बहुत बधाई.
वाह क्या बात है !
अच्छा लिखा है. बधाई.
वो एक लम्हा .....जिसे काट कर दिया था तुमने ...
मैंने अभी तक संभाल कर रखा है .
कभी कभी उसमे से भीनी भीनी सी खुशबू
सारे घर मे फ़ैल जाती है.......
देखा हम भी शायर हो गये.......
पल्लवी....
बहुत खूबसूरत.....
एक भी कड़वा नहीं निकला इसलिए सब रख लिए.
-बहुत ही उम्दा और गहरी रचना है.
bahed khubsurat un kachhe pakke khubsurat lamhon ki tarah
kyaa baat hai ,ye sebon kee laalee kaa ehsaas to itnaa sukhad laga ki kya kahein. haan mil baant kar khaayenge aur iskaa to hum sabko intzaar rahegaa.
मीठे लम्हे तुम रख लेना
कड़वे मुझे वापस कर देना ...
kuchh kahne ko baaqii nahiin hai...
बहुत सुंदर बधाई
bahut sundar pallavi--guljaar sahab ka asar deeekh raha hai..
bahut khoob....
बहुत अच्छा लिखा है,गुजरा बचपन ,मोहक यादें कौंध गयीं..
बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने. आगे इससे भी अच्छी कविता पढ़ने का मौका मिलेगा, ऐसी उम्मीद के साथ सुभकामनाये.
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