अभी अनुराग जी की पोस्ट पढी...लास्ट की लाइन्स "दर्द है कि कम्बख्त ख़त्म होता नही..........रूह को चैन मिलता नही" पढ़कर बहुत कुछ याद आ गया! कभी कभी कुछ लम्हे जेहन पर ऐसे चस्पा हो जाते हैं कि गाहे बगाहे याद आ जाते हैं! आज ही किसी अखबार में एक छोटी बच्ची के बलात्कार कि खबर पढी,मन कसैला हो गया!और अचानक वो याद आ गयी...
वो चौदह साल की ही तो थी जब इस दर्दनाक हादसे की शिकार हुई! सात साल पहले एक देहात के थाने में थाना प्रभारी की ट्रेनिंग ले रही थी! गंभीर अपराध पलट रही थी..नज़र पड़ी , स्टाफ ने बताया पास के ही एक छोटे से गाँव की लड़की है उसके २० साल के पडोसी लड़के ने रेप किया! लड़का अरेस्ट हुआ? मैंने पूछा ! मैं आगे का पेज पलटने लगी तभी हवलदार की बात सुन के बुरी तरह चौंक गयी..." साहब..वो लड़की अब गर्भवती है" !कुछ बहुत ही अजीब सी फीलिंग उठी मन में..रहा नहीं गया! मुझे ले चलोगे उसके गाँव? क्यों नहीं...अभी चलिए!
लगभग ५ किलो मीटर दूर था उसका गाँव! पहुंची..लड़की के घर पहुंचे! माँ बाहर ही बैठी थी! मैंने नज़र घुमाई..बमुश्किल २०-२५ टपरे बने हुए थे !सारे के सारे अनपढ़ और हद से ज्यादा गरीब! माँ ने बताया कि सातवां महीना चल रहा है! इतने में वो भी बाहर निकल कर आयी! सांवली, दुबली पतली सी लड़की! उसकी माँ ने बैठने का इशारा किया..चुपचाप जमीन पर बैठ गयी! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या बात करूं उससे!" इससे तो पैदा ही नहीं होती तो अच्छा था.." माँ लड़की को देखते हुए बोली! वो बिलकुल चुपचाप थी..मैंने माँ को डांटा" इसमें इसकी क्या गलती है...उसे क्यों कोसती हो" इसे किसी डॉक्टर को दिखाया? माँ ने क्रतग्य भाव से मेरे साथ आये हवलदार कि ओर देखकर बोला " इन हैड साब ने बहुत मदद की हमारी...डॉक्टर के पास ले जाना, दवाई दिलवाना सब करवा देते हैं! बड़ा अच्छा लगा सुनकर!इसके पहले तक मेरे मन में पुलिस कि छवि नकारात्मक ही ज्यादा थी! खैर...मिलकर वापस आ गयी और दूसरे कामों में लग गयी!
दो महीने बाद उसे अस्पताल में भरती कराया गया! लड़की का माँ के अलावा कोई नहीं था...लेकिन थाने के सारे स्टाफ की सुहानुभूति थी..दौड़ दौड़कर दवाई लाना..डॉक्टर को बुलाना..सब मेरे सिपाहियों ने ही किया! रात को उसने एक लड़की को जन्म दिया! हम सब पहुंचे उसे देखने...बड़ी खूबसूरत प्यारी सी बच्ची थी! घर आकर सोयी...सुबह चार बजे फोन की घंटी से नींद खुली...." उसने अपनी पैदा हुई बच्ची का गला घोंट कर मार दिया" कानों पर विश्वास नहीं हुआ...भागकर अस्पताल पहुंची! सचमुच उसने अपनी कुछ घंटों की बेटी का गला घोंट दिया था...नवजात बच्ची निर्जीव पड़ी हुई थी!वो अब भी चुपचाप अपने पलंग पर बैठी थी! उसकी माँ उसे गालियाँ देती हुई रोये जा रही थी! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था...क्या करूं? क्यों किया तुमने ऐसा? मैंने उससे पूछा ! " मैं क्या करती इसका...?" पहली बार वो कुछ बोली ! क्या करती मतलब...?मैं बुरी तरह खीजकर बोली!
"अम्मा ही तो जब से कह रही है...तेरी लड़की है अब तू ही संभालना, आप बताओ मैं कैसे सम्भालू इसे...मुझे नहीं चाहिए" उसकी आँखों न आंसू हैं न चेहरे पर कोई पश्चाताप! डिलेवरी के बाद उसकी हालत भी कोई ठीक नहीं थी..ऊपर से दिसम्बर की ठंड! उसके ऊपर अपनी ही बेटी के कत्ल का मुकदमा कायम हो गया! अगले घंटे में वो अस्पताल से निकलकर थाने के हवालात में आ गयी! कोई प्रतिरोध नहीं...एकदम खामोश बैठ गयी फिर से!पता नहीं क्या चल रहा था उसके मन में....उस बेचारी बिना पढी लड़की को ये भी बोध नहीं था की उसने कोई अपराध कर दिया है! उसे अभी तक ये समझ नहीं आ रहा था...की आखिर उससे ऐसी क्या गलती हो गयी...उसकी लड़की, उसे नहीं चाहिए उसने मार दी! मैं उसे कानून नहीं समझा सकती थी! हवालात में बैठी बुरी तरह से कांप रही थी....इस वक्त थाने के स्टाफ ने जो किया मेरे मन में सभी के लिए श्रद्धा भर गयी...मैंने उसके लिए स्वेटर मंगाया...एक सिपाही अपने घर से वो लड्डू बनवा लाया जो डिलेवरी के बाद दिए जाते हैं...दूसरे सिपाही की पत्नी उसके साथ बैठी रही..जब तक वो सो नहीं गयी! अगले २४ घंटे वो थाने पर रही...उसके बाद कोर्ट पेश की गयी ..जहाँ से उसे सुधार गृह भेज दिया गया!
कत्ल का मुकदमा चला उस पर...शायद उम्र को देखते हुए सज़ा में कुछ कमी हो जाये मगर उसे बरी कोई नहीं कर सकता!पता नहीं..केस ख़त्म हो गया या अब तक चल रहा है?पता नहीं उसे कितने साल की सजा हुई? अब तक तो वो बालिग हो गयी होगी और सुधार गृह से निकलकर जेल पहुँच गयी होगी! हत्यारी माँ का लेबल भी उस पर लग गया होगा!
मैं अक्सर सोचती हूँ...कानून की नज़र में वो गुनाहगार है पर क्या सचमुच वो दोषी है?
जब सोचती हूँ उसके बारे में तो मुझे " gods must be crazy" film का वो सीन याद आ जाता है जिसमे कालाहारी का एक बुश्मैन हिरन मार देता है...जब उसे कोर्ट ले जाया जाता है...तो उसे सजा मिलती है लेकिन वह अंत तक नहीं समझ पाता की उसकी गलती क्या है? जिस परिवेश में वह रहता था वहा कोई कानून नहीं था! शायद उस लड़की के लिए भी बिल्ली मारना और इंसान को मारना एक जैसा ही रहा होगा! आज फिर से वो खामोश बैठी लड़की बहुत याद आ रही है!
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
26 comments:
डीएसपी जी अखबार के दफ्तर में काम करता हू. रोज कई हत्याये और कई रेप की खबरे से दो चार होना पड़ता है. सम्पादकीय जबान में बोलू तो कई स्तोरिएस... हमारे लिए सब स्तोरिएस हैं, पता नही किसने गढा था इस शब्द को इन सब चीजो के लिए... मॅन खिन्न हो उठता है. लेकिन काम करना ही पड़ता है. ऐसी बातो से मन के अन्दर एक आह निकलती है. और फ़िर वही पंक्ति .... दर्द है कि कम्बख्त ख़त्म होता नही..........रूह को चैन मिलता नही
डीएसपी जी अखबार के दफ्तर में काम करता हू. रोज कई हत्याये और कई रेप की खबरे से दो चार होना पड़ता है. सम्पादकीय जबान में बोलू तो कई Stories... हमारे लिए सब Story हैं, पता नही किसने गढा था इस शब्द को इन सब चीजो के लिए... मॅन खिन्न हो उठता है. लेकिन काम करना ही पड़ता है. ऐसी बातो से मन के अन्दर एक आह निकलती है. और फ़िर वही पंक्ति .... दर्द है कि कम्बख्त ख़त्म होता नही..........रूह को चैन मिलता नही
dard ki param seema par gayi ye sacchai,kya wo ladki doshi thi,,jawab nahi de paa rahe hum bhi?hum to padh ke hi man sunn sa ho gaya,aapne to usse dekha mehsus kiya hai,na jane aapke man par kya gujri hogi aur uss ladki ke man ki halat hum koi nahi mehsus kar sakte bas jan sakte hai,dard khatam kyun nahi hota duniya se,itna bhanayak dard kisi ko na mile
Gahari aur dukhbhari abhivyakti, antim panktiyo ka chintan samaj ke liye jaruri hai.
Dhanyavad.
AarambH
टिप्पणी करने के बजाए मैं आपको अपनी एक रचना प्रेषित कर रहा हूं। अपनी मेल में झांकना। प्रतिक्रिया भी देना ।
काफी दर्दनाक घटना का जिक्र किया आपने। समझ नही आ रहा क्या बोलू। समय क्या क्या खेल खेलता है।
क्या कहें?
मूक और बधिर हैं हम सब.
सब बहुत दर्दनाक है .पर वो लड़की दोषी नही है किसी भी तरह से ..नाबालिग़ बच्ची क्या जाने कि वह तो ख़ुद ही मर चुकी है उसी पल जिस पल उसके साथ यह सब हुआ ..
अफ़सोस ही कह सकते हैं इसको।
sabse bade dukh kee baat to ye hai ki fir bhee ham kahte hain ki ab hum bahut viksit, bahut adhunik aur bahut aage nikal gaye hain. shaayad aisee ghatnaayein hee bataatee hain hamein hamaaree aslee aukaat. maarmik lekh.
आपने बहुत दर्दनाक कहानी लिखी है। सच तो यह है कि एक तरफ हम यह कहते हैं कि देश में शिक्षा का स्तर बढ़ा है दूसरी तरफ लगता है कि अभी गरीब तबका इस शिक्षा से दूर है और उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि अभी हमारे समाज को सभ्य होने में वक्त लगेगा।
दीपक भारतदीप
पूरा एक लय में पढ़ गया... पर कुछ कहने को नहीं है मेरे पास.
बहुत दुखद एवं अफसोसजनक. क्या कहें.
पल्लवी
इस बेबसी पर कई बार खीज भी होती है ओर कई बार इस दुःख भरी दुनिया से पलायन करने का मन भी ...पर मुझे हमेशा यही लगता है की एक आम इंसान ज्यादा हिम्मती है जो तमाम दुखो से लड़ता हुआ जिंदगी गुजारता है....मुझे भी एक बार ऐसे कटु अनुभव से गुजरना पड़ा था जिसमे मैंने मानसिक रोग विभाग मे एक १४ साल की लड़की को देखा था .जो पुरुषो से घबराने लगी थी ....उन्हें देख सहम जाती थी यहाँ तक की मेल डॉ से भी उसे डर लगता था ....उसके चाचा ने उससे बलात्कार किया था .. ...
मुफलिसी बहुत बड़ा जुर्म है.....
अफसोसजनक और झकझोर देने वाली।
दर्दनाक और दुखद ........
कुछ कहते नही बनता..
pahli bar aapka blog padhha. bahut achcha likhati ho. ye ghatna bahut hi dukhdayi hai .hazaro ladkiyan aaj isi sthiti se gujarti hai, sabhi maun rahkar itne bade dukh ko akele hi sahte huye apni bachi hui jindagi guzar deti hai.
बेहद अफसोसजनक वाक्या पढ़कर बड़ा दुःख हुआ है .
कुछ एहसास ....पढ़ते हुए ९९ में लिखी कविता जेहन में तैर गयी :
तुमसे जुदा होते लगा था :
ख़ाक हो जाएं वे सभी आँखें
जो तकती हैं हमें
भूखे भेदिये की तरह
समय के ताप से
चाँद की उस नर्म रात में .
तुमसे जुदा होते लगा था :
कर दूँ बेनकाब उन तमाम लोगों को
जो ओढ़ लेते हैं शराफत
झक्क सफ़ेद कुरते में
भूल कर आवार्गियाँ
रात के नकाब की .
तुम से जुदा होते लगा था :
थूक दूँ उन चेहरों पर
जो बहन बेटी कह , थप -थपाते हैं गाल
और पीठ योन-तृष्णा मिटाते
दिना-दिनस्ती सरेआम .
आप इसी तरह सच्चाईयेां को जाहिर करती चलें, ये अभिव्यक्तियां बडा बदलाव लाती हैं, पर अंतिम पारा में लडकी को दोषी मानना और उसका कारण परिवेश में ढूंढना सही नही है , उसे बलात्कार से पैदा घृणा के रूप में भी तो देखा जा सकता है,... उत्तर पुस्तिका वाली पोस्ट भी अच्छी लगी
Us bachchi ne suna ki uski maa use kos rahi hai...to uske man me ye baat baith gayi hogi ki ladki hona jurm hai. Us bechari ne apni beti ko is jurm se azad kiya hai. par kya karein, hamare kanoon me kisi mujrim ko bina saza paaye azad karna bhi to jurm hai...isiliye use to sazaa milni hi thi.
aapka ye sansmaran padhkar man bahut udaas ho gaya. Bahut majboor sa mehsoos kiya khud ko.
यही तो जिन्दगी की धकापेल है, शिकंजे कहीं के कस कहीं और जाते हैं.. यह उस लड़की के मन में उस बलात्कारी लड़के प्रति मन का दबा हुआ आक्रोश था जिसे उसके नवजात शिशु की आंखें भी क्षीण नहीं सकीं। ..सच तो यह है कि सबकी अलग-अलग जीवनयात्रा है।
dil dahla dene wali ghatna hai ye to...
ladki ki mansikta samajh aati hai, agar ye gunaah hai to ooparwala juroor use kshama karega..
Yah post aapki kuchh adhuri si hai.... us kamine ka kya huwa jisane us nadan bachchi ke sath rep kiya?
Dard bahut bhara hai is post me.
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