लोग अक्सर मुझे नास्तिक कहते हैं....क्या ये इबादत नहीं है?
आज की सुबह वाकई जादुई थी
ठंडी हवा ने हौले से
सहलाया मेरे सर को
उठी तो देखा
हर फूल,हर पत्ते पर
चमक रहे थे ओस के मोती
खिलखिलाता हुआ सूरज
छत की मुंडेर पर गाती चिड़िया
मुझे सुप्रभात कह रहे थे...
मैंने खुदा को शुक्रिया कहा
और चाहा कि आज का दिन
बिताऊ खुदा की इबादत में
फिर मैंने...
दूध वाले को एक प्याला चाय पिलाई
एक गुलाब दिया अपनी माँ को
माली काका को भेजा
टिकिट देकर फिल्म देखने
कचरा बीनते एक बच्चे को
खिलाया पिज्जा हट का पिज्जा
गली में घूमते एक नन्हें से पिल्ले को
नहला दिया गरम पानी से
शाम को जब ऊपर निगाह डाली
खुदा बादलों के पीछे से
मुस्कुरा रहा था
शायद खुदा ने मेरी इबादत कुबूल कर ली...
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
21 comments:
बिल्कुल सरकार यही इबादत है....ओर इसे रोज करिये ...
ek sundar ahsas..good pallavi....
वैसे सबकी कबूल नहीं होती...
ji ha.. yahi to ibaadat hai..
आपकी संवेदनशीलता काबिले तारीफ़ है. यही इन सुंदर रचनाओं की जनक है. कृपया लिखती रहिये.
bilkul sahi likha hai. yhi ibadat hoti hai.jari rhe.
kitni sundarta..and so so deep n profound..yeh to sacchi ibadat hai..awesome
जो परमात्मा का अस्तित्व स्वीकार करते हैं, वे यह भी मानते हैं कि हर प्राणी में उनका अंश है। इस हिसाब से आदमी रोज ऐसे काम करे तो वह सबसे बड़ी इबादत है।
yaho to sachhi ibadat hai,bahut khubsurat jazbat badhai
नास्तिक या एग्नॉस्टिक का प्रोनाउन्समेण्ट तो फैड है। कुछ उस तरह जैसे लोग कहते हैं कि वे तो पैसे के पीछे नहीं भागते या "आई डोण्ट केयर फॉर माई लुक्स" छाप सोच।
आदमी नेक रहे, लोभ-क्रोध-मोह में न फंसे और छोटी छोटी अच्छाइयां करता रहे, बस। बहुत कुछ वैसा ही जैसे आपने किया। सहज भाव से!
बहुत खूब
कुछ पेट पूजा हमारी भी करा देती तो मुस्कराने की बजाय खुदा खिलखिलाता. खैर, शुरुवात में मुस्करा ही तो भी काफी. बहुत उम्दा कार्य किया. मंदिर में जा ढ़ोंग रचना से बड़ी इबादत कर रही हो. जारी रखो..बहुतों की दुआयें मिलेंगी और हमारी तो हैं ही हैं!!
बहुत बढ़िया। परन्तु जो किया बढ़िया किया, खुदा कहाँ से आ गया?
घुघूती बासूती
असली इबादत तो यही है। बाकी सब झूठ है। मैने अपनी एक तुकंबदी में लिखा था।
भगवान भक्त धार्मिक जगहों पर ईश्वर को पूजते फिरेंगे
देखना ये सब तरफ ईश्वर के बनाये बंदे को कष्ट देते मिलेगे
ये दुनिया वाले चेहरो पर मुखौटे लगाते मिलेगे।
भावुक आदमी मिला तो इस्तेमाल कर लेंगे
चालाक आदमी मिला तो सलाम कर देंगे
ये दुनिया वाले चेहरो पर मुखौटे लगाते मिलेगे।
अगर ऐसी आदत है
तो ये सबसे बड़ी इबादत है
हाँ, यही सच्ची इबादत है, बशर्ते...
यह तमाशबीनों के मज़मे से अलग किया गया हो,
और यह तारीफ़ सुनने की इच्छा से न की गयी हो ।
इसे नियम बना लें, बहुत सुख मिलेगा !
और हाँ, समीर भाई जैसों का ख़्याल रखा करें,
यह आत्मसुख कुछ ज़्यादा वज़नदार हो जाये, तो क्या कहने !
हे हे हे
please provide pizza n other food stuffs to Samirji, otherwise your worship may be remain pending because all pooja items goes throgh tashtari(Udan Tashtari).(please look at the giant khali like image of Samirji n then say -...om Samirai namah ...om blogai namah .... :D
ये भी इबादत नहीं है..
बस यही तो इबादत है !
हां पल्लवी यही जीवन जीने का सही ढंग है और सारी इबादतें एक अच्छे जीवन के लिए होती हैं
bahut khoob...
ishawar har kisi ko aisi ibaadat karne ki akal de..
haan yahi sachchi ibadat hai khuda ki
khuda ke bandon ki madad khuda ke darbaar main kabool hoti hai
bahut achha likha hai
कविता को पढ़कर मुझे एक हदीस (यानी पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद के कथन) का स्मरण हो आया .उन्होंने कहा था कि ज़कात यानी आय की एक निश्चित राशि दान ज़रूर दो.तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है तो लोगों को अपनी मुस्कान दो .इसी के मद्दे नज़र निदा फाजली ने कहा :
घर से दूर है मस्जिद तो चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये
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