Tuesday, July 1, 2008

दद्दू...तुम अक्सर याद आते हो


दद्दू... नाम लेते ही बरबस ही चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है!कई लोग जिंदगी में ऐसे मिलते हैं जिन्हें हम कभी भूल नहीं पाते! दद्दू भी उन्ही में से एक हैं....यूं कहने को तो मेरे ड्रायवर थे दद्दू! तीन साल तक मेरी गाडी चलाई उन्होंने! लेकिन ड्रायवर से ज्यादा कुछ थे मेरे लिए! उम्र लगभग ५७ साल, जैसा वो बताते थे..लेकिन लगते ६० के ऊपर ही थे! अक्सर मैं मज़ाक में उनसे कहती " दद्दू ,तुमने गलत उम्र लिखवा दी अपनी मार्कशीट में..सठिया तो पूरे गए हो" दद्दू झेंप जाते" अरे नहीं साहब..सही में ५७ का ही हूँ" हैड कांस्टेबल जगदीश सिंह सिकरवार- यही नाम था दद्दू का लेकिन दुसरे सिपाही उन्हें दद्दू कहकर ही बुलाते और शायद पहले ही दिन से मैंने भी उन्हें दद्दू बुलाना शुरू कर दिया था! मैं नौकरी में आने के बाद से ही अकेली रह रही हूँ....तो ऐसे में अपना पर्सनल स्टाफ ही परिवार जैसा हो जाता है!

जब मैं ग्वालियर गयी थी तो हाथ में केवल एक सूटकेस था!वहाँ जाकर घर का सारा सामान खरीदा...सारा सामान दद्दू के साथ जाकर खरीदती थी!हांलाकि पसंद मेरी ही होती थी मगर फिर भी तसल्ली के लिए दद्दू से पूछती "दद्दू...ये वाला सोफा लूं या वो वाला" ? साहब..दोनों अच्चे लग रहे हैं" नहीं ..एक बताओ" दद्दू सोचते हैं फिर बोलते हैं" वो कत्थई वाला अच्छा लग रहा है" अरे कहाँ दद्दू...ये वुडन कलर का ज्यादा अच्छा है,मैं तो यही लूंगी" मैं ऐसे बोलती जैसे दद्दू ही मुझे सोफा दिलवा रहे हैं! "हाँ..ये ज्यादा अच्छा है..." दद्दू मन में शायद सोचते की अपने ही मन से लेना है तो हमसे काहे पूछ रही हैं!

मैं अक्सर देहात में जाती थी...रास्ते में मोर,ऊँट,हाथी दिखाई देते तो मैं ख़ुशी के मारे दद्दू को भी दिखाती...दद्दू भी एक मुस्कराहट के साथ मेरी ख़ुशी बांटते!कई बार मेरी नज़र नहीं पड़ पाती तो दद्दू खुद मुझे दिखाते " साहब .देखो एक साइकल पर पांच लोग बैठे हैं और सब दूध की केन लिए हैं!" हम दोनों ठठाकर हंस देते! एक बार तो हद हो गयी मेरी गाडी में ही मेरे एस.पी. भी बैठे थे...अचानक एक हाथी को देखकर मैं बेखयाली में चिल्लाई" दद्दू...जल्दी देखो...कितना बड़ा हाथी" दद्दू चुप..एस.पी. ने एक पल मेरी और देखा और फिर मुंह छुपाकर मुस्कुरा दिए!

एक बार रात गश्त से लौट रही थी...सुबह के करीब सादे चार बजे थे .ठंडों के दिन थे तो खासा अँधेरा था! लौटते लौटते मुझमे भी जागने की ताकत नहीं बचती थी! पिछली सीट पर ऊंघने लगती थी! हम लौटे ,दद्दू ने गाडी खड़ी की...मेरी नींद खुली " दद्दू ,ये कहाँ ले आये" मैंने अजनबी जगह को देखकर आश्चर्य से पूछा! दद्दू ने इधर उधर देखा और बोले " अरे साहब..मैंने समझा घर आ गया" दरअसल दद्दू ने गाडी एक अखाडे में ले जाकर खड़ी कर दी थी उनका मासूम सा जवाब था" साहब,अपने घर का और अखाडे का गेट एक जैसा ही तो है"

जिस दिन दद्दू अपने बाल और मूंछे डाई करके आते...उस दिन शर्ट भी इन करके पहनते और अपनी उम्र से सीधे १० साल पीछे चले जाते और मुझे उन्हें छेड़ने का एक और मौका मिल जाता! और दद्दू शरमा के रह जाते! बारिश के दिनों में मेरे लॉन में काफी पानी भर जाता था ,एक दिन ऐसी ही तेज़ बारिश में मैं ढेर सारी कागज़ की नाव बनाकर पानी में पहुंची और सारी नाव एक साथ तैरा दीं.. साथ में अपनी हवाई चप्पलें भी पानी में तैरा दीं! दद्दू देख देख कर मुस्कुरा रहे थे...थोडी देर बाद मैं अन्दर आ गयी और १० मिनिट बाद बाहर झाँककर देखा तो दद्दू एक अखबार की नाव बनाकर पानी में छोड़ रहे थे..एकदम तल्लीन! मैं बाहर नहीं गयी...कहीं उनके भीतर का बच्चा शरमा कर भाग न जाए!

दद्दू बूढे भले ही थे लेकिन थे बहादुर...मुसीबत के वक्त उन्होंने कभी साथ नहीं छोडा...एक बार एक गाँव में हम गांजे की रेड करने गए लेकिन सारे गाँव वाले इकट्ठे हो गए और हमारे ऊपर फायरिंग शुरू कर दी!हम ६ लोग थे...दद्दू खेत के बाहर गाडी में अकेले थे! उनके ऊपर भी अटैक हुआ...सारी गाडी की तोड़ फोड़ कर दी!लेकिन दद्दू गाड़ी छोड़कर नहीं भागे...उन्हें भी हाथ में काफी चोट आई थी! मैंने बाद में पूछा" दद्दू,तुम वहाँ से हट क्यों नहीं गए थे?" साहब .आप भी तो खड़े रहे,मैं कैसे चला जाता" दद्दू का जवाब था! फिर मैं कुछ नहीं बोली!
अभी कुछ दिन पहले ही मेरे एक दोस्त को दद्दू रास्ते में मिल गए....उसने मोबाइल से मेरी बात करायी दद्दू से! शायद अब उन्हें कम सुनाई देने लगा है!मैंने पूछा "दद्दू कैसे हो?" अच्छा हूँ...आजकल कहाँ काम कर रहे हो दद्दू?" बस..साहब बढ़िया हूँ" दद्दू कुछ का कुछ सुन रहे थे!"दद्दू कभी भोपाल आओ" मैंने कहा! दद्दू ने तीसरी बार कहा" बस साहब बढ़िया हूँ!" फिर मैंने फोन रख दिया और एक बार फिर मेरे चेहरे पर मुस्कराहट थी....

26 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

सुन्दर! दद्दू का एक चित्र होता तो बहुत जमती पोस्ट।

डॉ .अनुराग said...

हमारा भी दिल ले गये आप के दद्दू .....

कुश said...

दद्दू ने भावुक कर दिया..

महेन said...

दद्दू से मिलने की इच्छा बलवती हो गई है। उनका एक साक्षात्कार और चंद तस्वीरें भी लगा दें तो मज़ा आ जायेगा। दूसरी बार इस ओर आना हुआ। आपका ब्लोग मज़ेदार है। आना लगा रहेगा।
शुभम।

Abhishek Ojha said...

दद्दू से मुलाकात मजेदार रही... भावुकता के अलावा मुझे ऐसा क्यों लग रहा है की दद्दू बहुत बातें भी करते होंगे? ऐसे एक चरित्र से मैं भी मिल चुका हूँ लेकिन वो बहुत बात करते थे... बहुत. और कुछ बताइए दद्दू के बारे में.

pallavi trivedi said...

दद्दू का फोटो तो मैं भी मिस कर रही हूँ...अगर होता तो ज़रूर लगा देती.

mehek said...

daddu se milwane ka bahut shukran,aapke daddu bahut achhe hai.post bahut achhi lagi.

ज़ाकिर हुसैन said...

aapne aur aapke daddu ne to police wolon ki parchlit chhavi badal dali
badhai!!!!!!!!!

रंजू भाटिया said...

बहुत खूब ..यह यादे ही साथ रह जाती है बेहतरीन लिखा है आपने

Advocate Rashmi saurana said...

bhut bhavuk kar gai aapki post. likhati rhe.

Udan Tashtari said...

बहुत शिद्दत से याद किया है दद्दू को. बहुत हिचकी आ रही होगी उनको. कभी ग्वालियर जाना तो फोटो खींच लाना.

Manish Kumar said...

behad achcha likha aapne. Man mein abhi bhi aapke daddu ki jeeti jaagti chavi ghoom rahi hai.

Ashok Pandey said...

कुछ यादें अनमोल धरोहर होती हैं। दद्दू की याद भी वैसी ही लग रही है।

पारुल "पुखराज" said...

aapki post hamesha ---dikhati hai--aap bahut narm dil insaan ho..:)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Pallavi sahab, Hume bhee Daddu ji se milker badee khushee huee :)
Aap likhiye aur bhee sansmaran - achcha lagta hai
neh,
Lavanya

पी के शर्मा said...

दद्दू के सहारे
आपके जीवन में आपके जीवन की कष्‍टकारी परिस्थितियों की एक झलक देखने को मिली। उस रेड के बारे में भी प्रकाश डाल दिया होता, फिर क्‍या हुआ। आप का जीवन भी कष्‍टों से भरपूर होता है।
आप लिखते रहिये हम पढ़ते रहेंगे।

नीरज गोस्वामी said...

साधुवाद आपको जो एक साधारण से इंसान को इतनी शिद्दत से याद करती हैं...वरना आज की आपाधापी भरे जीवन में इंसान अपने आप को ही भूल बैठा है. दद्दू को कभी कहीं मिल जायें तो हमारा प्रणाम कहियेगा.
नीरज

सुजाता said...

बहुत प्यारा सा संसमरण है पल्लवी !!बहुत सम्वेदनशील हो तुम और स्मरणीय है तुमारे दद्दू ।

डा० अमर कुमार said...

हाँ ऎसे चरित्र होते हैं, पल्लवी !
जो मन पर एक अमिट छाप छोड़ जाते हैं, इस वर्णन के साथ साथ सिकरवार का चित्र भी होता, तो बात अलग होती ।
चित्रों को, चेहरों को पढ़ने की अव्यक्त भाषा,
शब्दों की अभिव्यक्ति से कहीं अधिक रोचक लगती है ।

तुम्हारे अभिव्यक्ति में बनावट का अभाव तो दिख ही रहा है, मुझे !

Shiv said...

बहुत शानदार संसमरण...दद्दू से मिलकर बहुत खुशी हुई.

अनूप शुक्ल said...

दद्दू से मुलाकात करके अच्छा लगा।

Unknown said...

muje to daddu ke saath janak singh bhi yaad a gya.wah kabhi mahesh pe bhi inayat karo.muje mahesh kko yad karke abhi se hansi aa rahi hai.

समय said...

बहुत सुंदर!

पुलिस के लोग भी तो इंसान ही होते हैं! उनके भी दिल होता है।
उनको भी किसी की याद हंसाती/रुलाती है।

पल्लवी को पढ़िए और यकीन कीजिए... पुलिस के लोग भी इंसान ही होते हैं!


अवधेश प्रताप सिंह
इंदौर 98274 33575

travel30 said...

Aapne Daddoo ki Photo lo lagayi hi nahi :-( .... Bahut dil se yaad kiya aapne Daddoo ko...

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Jaane Tu Ya Jaane Na....Rocks

Unknown said...

dil ko kafi achha laga....

Ravi Rajbhar said...

Dil me bas gaye daddu ji,
aur kya gajab ka sahas...ki fayaring me bhi gadi nahi chhodi . warna police wale...? aji jane dijiye.