Wednesday, July 9, 2008

तुम्हारी यादें भी बरसी हैं रातभर


आज फिर जम के बारिश हुई
बगीचे के धूल चढ़े पेड़ पत्तियाँ
कैसे निखर गए हैं नहाकर
काली सड़कें भी चमक उठी हैं!
बह गए है टायरों के
धूल,मिटटी भरे निशान

और पता है...
इस बारिश के साथ
तुम्हारी यादें भी बरसी हैं रातभर
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो
एकदम उजले होकर....

28 comments:

रंजू भाटिया said...

तुम्हारी यादें भी बरसी हैं रातभर
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो

बेहद खुबसूरत लिखा है आपने ......बारिश के साथ साथ यह यादे भी बरसती है शायद हर किसी के जहन में :) बहुत खूब

mehek said...

तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो
एकदम उजले होकर....


wah wah kya khubsurat ehsaas barse hai raat bhar,ke muskan aagayi labon par,bahut hi sundar badhai.

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

बहुत बढ़िया !

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर ! ये यादें, वर्षा के साथ बरसती हैं, पवन के साथ उड़ आती हैं !
घुघूती बासूती

Rajesh Gupta said...

बहुत अच्छा, लिखते रहिये

पी के शर्मा said...

पल्‍लवी जी आपकी कविता पढ़कर मुझे अपनी कविता याद आ गयीं। उसी के दो पद प्रतिक्रिया में पेश हैं।

तपती हुई प्रकृति गर्मी से झुलसकर
सावन के आते ही वसुधा पे उतरकर
बादल की मशक लेकर तन मन को धो रही है
लोग कहते हैं
बारिश हो रही है

चांद और बदली में हो गयी खटपट
रूठी हुई बदरिया सूरज से करके घूंघट
सिसकियां ---
भर भर के रो रही है
बारिश हो रही है

Anonymous said...

पल्लवी जी,

"तुम्हारी यादें भी बरसी हैं रातभर
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द"

ये पक्तिंयाँ सुंदर बन पडी हैं

डॉ .अनुराग said...

kabhi ye triveni likhi thi pallavi..aaj se do sal pahle...dekho hamare khyaal kis kadar milte hai...

कासिद बनकर आया है बादल
कुछ पुराने रिश्ते साथ लाया है .......
आसमान से आज कई यादे गिरेंगी

PD said...

दुसरी पंक्ति किन्हीं यादों में घसीटती हुई महसूस हो रही है..
बहुत खूबसूरत..

ek aam aadmi said...

एक और रात - another night
घर में दाना न था भूखी रही रात भर,
कल की चिंता में सोई नहीं रात भर,
एक बच्चा भी था, वो भी रोता रहा,
इसलिए वो सोई नहीं रात भर।

फिर रात भर - phir raat bhar
साँस उसकी महकाती रही रात भर,
बिजलियाँ वो गिराती रही रात भर,
उसको मालूम था मैं बहक जाऊंगा,
जाम नजरों से पिलाती रही रात भर।

रात भर
याद तेरी महकाती रही रात भर,
लोरियां दे सुलाती रही रात भर,
उसको मालूम था मैं बहल जाऊंगा,
झूठे सपने दिखाती रही रात भर।

ek aam aadmi said...

raat bhar par maine bhi chaar line likhi thiin, post kar raha hoon, kyonki aapki raat bhar padhkar mujhe bada achcha laga

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

तुम्हारी यादें भी बरसी हैं रातभर
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो

बहुत सुन्दर रचना पल्लवी जी

Shishir Shah said...

yaadon mein aksar yun hi hota hain...khub hai andaz e bayan...

Abhishek Ojha said...

एक महादेवी वर्मा की कविता पढ़ी थी... पूरी याद नहीं है.. 'रिमझिम मेघ बरसते हैं सावन के ! बूंदें गिरती हैं तरुओं से छन-छन के !' उस खूबसूरती में ये बरसात यादों का सिलसिला भी लेकर आई है...

Unknown said...

bahut khub allavi ji

सुशील छौक्कर said...

बहुत खूबसूरत ख्याल लिखा हैं आपने।
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो।

Anil Pusadkar said...

sunder

awdhesh pratap singh said...

mere hisab se sabse adhik sateek tippani yahi hai -


ये यादें, वर्षा के साथ बरसती हैं, पवन के साथ उड़ आती हैं !
घुघूती बासूती

kyon pallavi sahi hai na?

Udan Tashtari said...

मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो
एकदम उजले होकर....

--bahut sunder.

Pragya said...

bahut achhi kavita hai... sach me baarish akele nahi aati... koi na koi yaad saath lekar aati hai :)

شہروز said...

यादें भी बरसी हैं रातभर
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो
एकदम उजले होकर....
अच्छी रचना है .अंतिम बंद में सिर्फ इसे रखना पर्याप्त होगा .

डा० अमर कुमार said...

इन सभी साधुवाद के बीच..मैं भी !

लेकिन मुझे ' मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो एकदम उजले होकर.... ' पर कुछ खटक सा रहा है, तो कह दूँ ?
अतीत में गंदलेपन का एहसास देता हुआ एक निगेटिविज़्म..का भाव, है कि नहीं ?
शायद तुम्हारा आशय धुँधलेपन सरीखे किसी भाव से रहा हो ?

रचना तो निःसंदेह ही हृदयस्पर्शी है !

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आपका अन्दाज़-ए-ब़याँ पसन्द आया। बहुत ख़ूब।

Doobe ji said...

kya baat hai doobeyji doob gaye apki kavita mein aise hi likhte rahiye

Ashutosh said...

पल्लवी जी

जब बारिश का मौसम उमड़ के आता है तो यादों की बौछार होना लाज़मी है .

- आशुतोष

समयचक्र said...

आज फिर जम के बारिश हुई
बगीचे के धूल चढ़े पेड़ पत्तियाँ
कैसे निखर गए हैं नहाकर
काली सड़कें भी चमक उठी हैं!
बह गए है टायरों के
धूल,मिटटी भरे निशान.

आपने बेहद खुबसूरत लिखा है .बहुत बढ़िया.

Vinay said...

BAHUT BAHUT-HEE SUNDAR KAVITA!

Advocate Rashmi saurana said...

vha ji sab ki sab ek se badhakar ek. ati uttam.