तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
लिखना खुद को ढूँढने जैसा महसूस कराता है हमेशा....कई बार लिखने के बाद खुद को बदला बदला सा पाती हूँ तो कभी अपने अन्दर छुपे हुए जज्बातों का बाहर बह निकलना हैरत में डाल देता है! बदलते मूड के साथ अपने अन्दर बैठे कई इंसानों को महसूस करती हूँ...
28 comments:
तुम्हारी यादें भी बरसी हैं रातभर
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो
बेहद खुबसूरत लिखा है आपने ......बारिश के साथ साथ यह यादे भी बरसती है शायद हर किसी के जहन में :) बहुत खूब
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो
एकदम उजले होकर....
wah wah kya khubsurat ehsaas barse hai raat bhar,ke muskan aagayi labon par,bahut hi sundar badhai.
बहुत बढ़िया !
बहुत सुन्दर ! ये यादें, वर्षा के साथ बरसती हैं, पवन के साथ उड़ आती हैं !
घुघूती बासूती
बहुत अच्छा, लिखते रहिये
पल्लवी जी आपकी कविता पढ़कर मुझे अपनी कविता याद आ गयीं। उसी के दो पद प्रतिक्रिया में पेश हैं।
तपती हुई प्रकृति गर्मी से झुलसकर
सावन के आते ही वसुधा पे उतरकर
बादल की मशक लेकर तन मन को धो रही है
लोग कहते हैं
बारिश हो रही है
चांद और बदली में हो गयी खटपट
रूठी हुई बदरिया सूरज से करके घूंघट
सिसकियां ---
भर भर के रो रही है
बारिश हो रही है
पल्लवी जी,
"तुम्हारी यादें भी बरसी हैं रातभर
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द"
ये पक्तिंयाँ सुंदर बन पडी हैं
kabhi ye triveni likhi thi pallavi..aaj se do sal pahle...dekho hamare khyaal kis kadar milte hai...
कासिद बनकर आया है बादल
कुछ पुराने रिश्ते साथ लाया है .......
आसमान से आज कई यादे गिरेंगी
दुसरी पंक्ति किन्हीं यादों में घसीटती हुई महसूस हो रही है..
बहुत खूबसूरत..
एक और रात - another night
घर में दाना न था भूखी रही रात भर,
कल की चिंता में सोई नहीं रात भर,
एक बच्चा भी था, वो भी रोता रहा,
इसलिए वो सोई नहीं रात भर।
फिर रात भर - phir raat bhar
साँस उसकी महकाती रही रात भर,
बिजलियाँ वो गिराती रही रात भर,
उसको मालूम था मैं बहक जाऊंगा,
जाम नजरों से पिलाती रही रात भर।
रात भर
याद तेरी महकाती रही रात भर,
लोरियां दे सुलाती रही रात भर,
उसको मालूम था मैं बहल जाऊंगा,
झूठे सपने दिखाती रही रात भर।
raat bhar par maine bhi chaar line likhi thiin, post kar raha hoon, kyonki aapki raat bhar padhkar mujhe bada achcha laga
तुम्हारी यादें भी बरसी हैं रातभर
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो
बहुत सुन्दर रचना पल्लवी जी
yaadon mein aksar yun hi hota hain...khub hai andaz e bayan...
एक महादेवी वर्मा की कविता पढ़ी थी... पूरी याद नहीं है.. 'रिमझिम मेघ बरसते हैं सावन के ! बूंदें गिरती हैं तरुओं से छन-छन के !' उस खूबसूरती में ये बरसात यादों का सिलसिला भी लेकर आई है...
bahut khub allavi ji
बहुत खूबसूरत ख्याल लिखा हैं आपने।
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो।
sunder
mere hisab se sabse adhik sateek tippani yahi hai -
ये यादें, वर्षा के साथ बरसती हैं, पवन के साथ उड़ आती हैं !
घुघूती बासूती
kyon pallavi sahi hai na?
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो
एकदम उजले होकर....
--bahut sunder.
bahut achhi kavita hai... sach me baarish akele nahi aati... koi na koi yaad saath lekar aati hai :)
यादें भी बरसी हैं रातभर
तुम्हारी तस्वीर पर जमी वक़्त की गर्द
धुल गयी है और
मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो
एकदम उजले होकर....
अच्छी रचना है .अंतिम बंद में सिर्फ इसे रखना पर्याप्त होगा .
इन सभी साधुवाद के बीच..मैं भी !
लेकिन मुझे ' मेरे जेहन में तुम मुस्कुरा रहे हो एकदम उजले होकर.... ' पर कुछ खटक सा रहा है, तो कह दूँ ?
अतीत में गंदलेपन का एहसास देता हुआ एक निगेटिविज़्म..का भाव, है कि नहीं ?
शायद तुम्हारा आशय धुँधलेपन सरीखे किसी भाव से रहा हो ?
रचना तो निःसंदेह ही हृदयस्पर्शी है !
आपका अन्दाज़-ए-ब़याँ पसन्द आया। बहुत ख़ूब।
kya baat hai doobeyji doob gaye apki kavita mein aise hi likhte rahiye
पल्लवी जी
जब बारिश का मौसम उमड़ के आता है तो यादों की बौछार होना लाज़मी है .
- आशुतोष
आज फिर जम के बारिश हुई
बगीचे के धूल चढ़े पेड़ पत्तियाँ
कैसे निखर गए हैं नहाकर
काली सड़कें भी चमक उठी हैं!
बह गए है टायरों के
धूल,मिटटी भरे निशान.
आपने बेहद खुबसूरत लिखा है .बहुत बढ़िया.
BAHUT BAHUT-HEE SUNDAR KAVITA!
vha ji sab ki sab ek se badhakar ek. ati uttam.
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