आज पहली बार कुछ करार आया है
गरीब के बच्चे पे मुझे प्यार आया है
मुफलिसी ने जितना सताया है उसको
उससे ज्यादा तो वो आज मुस्कुराया है
हाथों में जिसके सजनी थी कलम और किताब
वक़्त ने उस हाथ में बोझा थमाया है
सहमा सा बैठा है छोटे भाई को लिए
बाप उसका आज फिर से पी के आया है
बिखरे उलझे बाल, चेहरे पे चढी धूल
मासूमियत का कोई क्या बिगाड़ पाया है
खामोश निगाहों से दुकानों को ताकता
उफ़,नन्हें से दिल में कितना धीरज समाया है
करके जूते पॉलिश सुबह से शाम तक
माँ के लिए कुछ चूड़ियाँ खरीद लाया है
उन छोटे से बच्चे की गैरत को है सलाम
अभी अभी जो भीख को ठुकरा के आया है
धरती का बिछौना ,अम्बर की है चादर
थक हार कर कुदरत की गोद में समाया है
ढाबों,स्टेशनों और हर चौराहे पर
हर जगह उसी को,बस उसी को पाया है
घुमड़ रहा जेहन में बस एक ही सवाल
साठ साल बाद क्या यही भारत पाया है?
38 comments:
खामोश निगाहों से दुकानों को ताकता
उफ़,नन्हें से दिल में कितना धीरज समाया है
--- ईसे कहते हैं कवि की बाणी, बेहद संवेदनशील रचना, और ये लाईने....
उन छोटे से बच्चे की गैरत को है सलाम
अभी अभी जो भीख को ठुकरा के आया है....
बहुत उम्दा लेखन।
Pallaviji bhut sundar.
हाथों में जिसके सजनी थी कलम और किताब
वक़्त ने उस हाथ में बोझा थमाया है
बहुत सही लिखा है आपने पल्लवी जी ..यह तस्वीर न जाने कब बदलेगी जो विचलित कर देती है ..
धरती का बिछौना ,अम्बर की है चादर
थक हार कर कुदरत की गोद में समाया है
बहुत सही है पल्लवी जी.
Abhaar.
Simply Supeb. It contains loads of emotions. Nice Pallavi ji
pallavi ji aap ki ye kavita lajawab hai police ki naukri aur ye emotions ascharya hota hai BADHAI IS KAVITA KE LIYE
pallavi ji aap ki ye kavita lajawab hai police ki naukri aur ye emotions ascharya hota hai BADHAI IS KAVITA KE LIYE
la-alfaz chhod diya aap ne...aankh mein bhini lehar uth gayi...
पल्लवी जी
आप उम्र मैं शायद मुझसे बहुत छोटी हैं लेकिन इस रचना के लिए मैं आप को नमन करता हूँ. आज की कड़वी सच्चाई को आपने जिस संवेदना से बयां किया है वो लाजवाब है...माँ सरस्वती अपनी अनुकम्पा आप पर ऐसे ही बनाये रखें ये ही कामना करता हूँ.
नीरज
घुमड़ रहा जेहन में बस एक ही सवाल
साठ साल बाद क्या यही भारत पाया है?
सार्थक, सटीक एवं यथार्थ रचना। साधुवाद।
वाह, हामिद का चिमटा कविता में! (प्रेमचन्द जी की कथा का संदर्भ)।
सोचने को विवश करती है यह कृति सुकृति
बिखरे उलझे बाल, चेहरे पे चढी धूल
मासूमियत का कोई क्या बिगाड़ पाया है
खामोश निगाहों से दुकानों को ताकता
उफ़,नन्हें से दिल में कितना धीरज समाया है
बहुत खूब। क्या पंक्तियाँ रची हैं आपने। आप जैसे संवेदनशील लोगों की पुलिस को बेहद जरूरत है।
बहुत प्यारी सुन्दर रचना जिसका एक एक शब्द भाया हैं। और ऐसे बच्चे पर हमको प्यार आया हैं।
उत्तरोतर लेखन में निखार आ रहा है.
बहुत मार्मिक और समाज-देश,हम-आप के सम्मुख सवाल करती पंक्तियाँ .
बहुत सुंदर रचना है। रचना के खयाल के लिए बधाई।
यह सवाल अक्सर मथ कर रख देता है अंदर तक पर जवाब कहां मिलता है।
ठीक समरेश बसु के एक उपन्यास के शीर्षक की तरह
" कहां पाऊं उसे"
खामोश निगाहों से दुकानों को ताकता
उफ़,नन्हें से दिल में कितना धीरज समाया है
वाह क्या बात हे आप की कलम मे,
भूल गयीं, निगेटिव x निगेटिव = पाज़िटिव ?
किसी मँज़ें हुये नेता से वार्ता कर के देख...पल्लवी,
फिर कोई ग़रीब नहीं दिखेगा, तुझे अपने भारत महान में !
यथार्थ का चित्रण !
सहमा सा बैठा है छोटे भाई को लिए
बाप उसका आज फिर से पी के आया है
bahut kuch kahna chahta tha ...par kah nahi pa raha bas ashish de raha hun tumhe......
पल्लवी जी, आपकी दृष्टि को सलाम। उस अकिंचन को शब्द देकर आपने सच्चा दृश्य प्रस्तुत कर दिया। बेहद सम्वेदनशील कविता।
गहन सरोकार से जन लेती है
ऐसी रचना. दुःख-दर्द से नाते के
बगैर जो कुछ लिखा जाता है वह
आत्म प्रस्तुति भले हो, उसमें जीवन का
विस्तृत आकाश नहीं होता...
आपकी भावनाएँ
वंचितों की आंखों से
दुनिया को देख रहीं हैं.
ये बड़ी बात है.
आपकी लेखनी का फलक
निरंतर फले-फूले-फैले
यही शुभकामना है
====================
डा.चन्द्रकुमार जैन
जन को जन्म पढिए.
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धन्यवाद
चन्द्रकुमार
सुन्दर! बेहतरीन!
oh police wali
janti ho shayar ek bahrupiya hota hai
koe b rang koe b bhes bana le
par tumme sirf sach ka rang hi fabta hai aur tum humesha wohi rang pahni to
janta hun tumne jo likha hai
woh mahsoos kiya hoga
tumhare andar woh kasmsahat huee hogi
kaash ye har kavi mai ho..........
बहुत अच्छा लिखा है आपने | कौन सी लाइनें ज़्यादा खूबसूरत हैं, कहना मुश्किल पड़ रहा है |
Cuckoo
ओ खुदा,
पल्लवी का सा ‘दिल’ और
पल्लवी की सी ‘आंख’ पूरे डिपार्टमेंट(पुलिस) को बख्श दे...
हाथों में जिसके सजनी थी कलम और किताब
वक़्त ने उस हाथ में बोझा थमाया है
सहमा सा बैठा है छोटे भाई को लिए
बाप उसका आज फिर से पी के आया है
आपने एक ऐसे सच कि बात कही है जिस से अक्सर हम चुप-चाप मुहं चुराते रहते हैं
लेकिन ये सभी को याद रखना होगा कि हमारा भविष्य इनके वर्तमान पर टिका है
कविता मैं उस बच्चे का दर्द बताने के लिए शुक्रिया
बिखरे उलझे बाल, चेहरे पे चढी धूल
मासूमियत का कोई क्या बिगाड़ पाया है___
आपकी पंक्तियां खुद बोल रही हैं अब अलग से क्या कहा जाए ...
ब्लागिंग की दुनिया में इतना रंग जमाया कैसे
ये कोमल मन कठोर पुलिस दल में आया कैसे
Bahut hi umda evam sarthak rachna. Vaah!!!
हमेशा की तरह दिल को छू गयी आपकी पोस्ट
सहमा सा बैठा है छोटे भाई को लिए
बाप उसका आज फिर से पी के आया है
dil ko chhoo liya aapne...
सिर्फ़ बातों से उनके पेट नहीं भरने वाले हमें गरीबी को मिटाने के लिए अथक प्रयास करने होंगे!
bahut khoobsurat likha hai...
tumhari kavitaaye bahutachchi he, maa vali to bahut,keep it up.
Thats pretty cool
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