Saturday, July 12, 2008

एक मेहनतकश बच्चे की दास्ताँ


आज पहली बार कुछ करार आया है
गरीब के बच्चे पे मुझे प्यार आया है

मुफलिसी ने जितना सताया है उसको
उससे ज्यादा तो वो आज मुस्कुराया है

हाथों में जिसके सजनी थी कलम और किताब
वक़्त ने उस हाथ में बोझा थमाया है

सहमा सा बैठा है छोटे भाई को लिए
बाप उसका आज फिर से पी के आया है

बिखरे उलझे बाल, चेहरे पे चढी धूल
मासूमियत का कोई क्या बिगाड़ पाया है

खामोश निगाहों से दुकानों को ताकता
उफ़,नन्हें से दिल में कितना धीरज समाया है

करके जूते पॉलिश सुबह से शाम तक
माँ के लिए कुछ चूड़ियाँ खरीद लाया है

उन छोटे से बच्चे की गैरत को है सलाम
अभी अभी जो भीख को ठुकरा के आया है

धरती का बिछौना ,अम्बर की है चादर
थक हार कर कुदरत की गोद में समाया है

ढाबों,स्टेशनों और हर चौराहे पर
हर जगह उसी को,बस उसी को पाया है

घुमड़ रहा जेहन में बस एक ही सवाल
साठ साल बाद क्या यही भारत पाया है?

38 comments:

सतीश पंचम said...

खामोश निगाहों से दुकानों को ताकता
उफ़,नन्हें से दिल में कितना धीरज समाया है
--- ईसे कहते हैं कवि की बाणी, बेहद संवेदनशील रचना, और ये लाईने....

उन छोटे से बच्चे की गैरत को है सलाम
अभी अभी जो भीख को ठुकरा के आया है....

बहुत उम्दा लेखन।

Advocate Rashmi saurana said...

Pallaviji bhut sundar.

रंजू भाटिया said...

हाथों में जिसके सजनी थी कलम और किताब
वक़्त ने उस हाथ में बोझा थमाया है

बहुत सही लिखा है आपने पल्लवी जी ..यह तस्वीर न जाने कब बदलेगी जो विचलित कर देती है ..

समयचक्र said...

धरती का बिछौना ,अम्बर की है चादर
थक हार कर कुदरत की गोद में समाया है
बहुत सही है पल्लवी जी.
Abhaar.

Rajesh Roshan said...

Simply Supeb. It contains loads of emotions. Nice Pallavi ji

Doobe ji said...

pallavi ji aap ki ye kavita lajawab hai police ki naukri aur ye emotions ascharya hota hai BADHAI IS KAVITA KE LIYE

Doobe ji said...

pallavi ji aap ki ye kavita lajawab hai police ki naukri aur ye emotions ascharya hota hai BADHAI IS KAVITA KE LIYE

Shishir Shah said...

la-alfaz chhod diya aap ne...aankh mein bhini lehar uth gayi...

नीरज गोस्वामी said...

पल्लवी जी
आप उम्र मैं शायद मुझसे बहुत छोटी हैं लेकिन इस रचना के लिए मैं आप को नमन करता हूँ. आज की कड़वी सच्चाई को आपने जिस संवेदना से बयां किया है वो लाजवाब है...माँ सरस्वती अपनी अनुकम्पा आप पर ऐसे ही बनाये रखें ये ही कामना करता हूँ.
नीरज

Prabhakar Pandey said...

घुमड़ रहा जेहन में बस एक ही सवाल
साठ साल बाद क्या यही भारत पाया है?

सार्थक, सटीक एवं यथार्थ रचना। साधुवाद।

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, हामिद का चिमटा कविता में! (प्रेमचन्द जी की कथा का संदर्भ)।

Arvind Mishra said...

सोचने को विवश करती है यह कृति सुकृति

Manish Kumar said...

बिखरे उलझे बाल, चेहरे पे चढी धूल
मासूमियत का कोई क्या बिगाड़ पाया है

खामोश निगाहों से दुकानों को ताकता
उफ़,नन्हें से दिल में कितना धीरज समाया है


बहुत खूब। क्या पंक्तियाँ रची हैं आपने। आप जैसे संवेदनशील लोगों की पुलिस को बेहद जरूरत है।

सुशील छौक्कर said...

बहुत प्यारी सुन्दर रचना जिसका एक एक शब्द भाया हैं। और ऐसे बच्चे पर हमको प्यार आया हैं।

شہروز said...

उत्तरोतर लेखन में निखार आ रहा है.
बहुत मार्मिक और समाज-देश,हम-आप के सम्मुख सवाल करती पंक्तियाँ .

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत सुंदर रचना है। रचना के खयाल के लिए बधाई।

Sanjeet Tripathi said...

यह सवाल अक्सर मथ कर रख देता है अंदर तक पर जवाब कहां मिलता है।

ठीक समरेश बसु के एक उपन्यास के शीर्षक की तरह

" कहां पाऊं उसे"

राज भाटिय़ा said...

खामोश निगाहों से दुकानों को ताकता
उफ़,नन्हें से दिल में कितना धीरज समाया है
वाह क्या बात हे आप की कलम मे,

डा. अमर कुमार said...

भूल गयीं, निगेटिव x निगेटिव = पाज़िटिव ?

किसी मँज़ें हुये नेता से वार्ता कर के देख...पल्लवी,
फिर कोई ग़रीब नहीं दिखेगा, तुझे अपने भारत महान में !

Abhishek Ojha said...

यथार्थ का चित्रण !

डॉ .अनुराग said...

सहमा सा बैठा है छोटे भाई को लिए
बाप उसका आज फिर से पी के आया है

bahut kuch kahna chahta tha ...par kah nahi pa raha bas ashish de raha hun tumhe......

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

पल्लवी जी, आपकी दृष्टि को सलाम। उस अकिंचन को शब्द देकर आपने सच्चा दृश्य प्रस्तुत कर दिया। बेहद सम्वेदनशील कविता।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

गहन सरोकार से जन लेती है
ऐसी रचना. दुःख-दर्द से नाते के
बगैर जो कुछ लिखा जाता है वह
आत्म प्रस्तुति भले हो, उसमें जीवन का
विस्तृत आकाश नहीं होता...
आपकी भावनाएँ
वंचितों की आंखों से
दुनिया को देख रहीं हैं.
ये बड़ी बात है.
आपकी लेखनी का फलक
निरंतर फले-फूले-फैले
यही शुभकामना है
====================
डा.चन्द्रकुमार जैन

Dr. Chandra Kumar Jain said...

जन को जन्म पढिए.
==================
धन्यवाद
चन्द्रकुमार

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर! बेहतरीन!

janumanu said...

oh police wali
janti ho shayar ek bahrupiya hota hai

koe b rang koe b bhes bana le

par tumme sirf sach ka rang hi fabta hai aur tum humesha wohi rang pahni to

janta hun tumne jo likha hai
woh mahsoos kiya hoga
tumhare andar woh kasmsahat huee hogi

kaash ye har kavi mai ho..........

Cuckoo said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने | कौन सी लाइनें ज़्यादा खूबसूरत हैं, कहना मुश्किल पड़ रहा है |

Cuckoo

अंगूठा छाप said...

ओ खुदा,

पल्लवी का सा ‘दिल’ और

पल्लवी की सी ‘आंख’ पूरे डिपार्टमेंट(पुलिस) को बख्श दे...

ज़ाकिर हुसैन said...

हाथों में जिसके सजनी थी कलम और किताब
वक़्त ने उस हाथ में बोझा थमाया है

सहमा सा बैठा है छोटे भाई को लिए
बाप उसका आज फिर से पी के आया है
आपने एक ऐसे सच कि बात कही है जिस से अक्सर हम चुप-चाप मुहं चुराते रहते हैं
लेकिन ये सभी को याद रखना होगा कि हमारा भविष्य इनके वर्तमान पर टिका है
कविता मैं उस बच्चे का दर्द बताने के लिए शुक्रिया

Kumar Mukul said...

बिखरे उलझे बाल, चेहरे पे चढी धूल
मासूमियत का कोई क्या बिगाड़ पाया है___

आपकी पंक्तियां खुद बोल रही हैं अब अलग से क्‍या कहा जाए ...

पी के शर्मा said...

ब्‍लागिंग की दुनिया में इतना रंग जमाया कैसे
ये कोमल मन कठोर पुलिस दल में आया कैसे

Udan Tashtari said...

Bahut hi umda evam sarthak rachna. Vaah!!!

कुश said...

हमेशा की तरह दिल को छू गयी आपकी पोस्ट

rakhshanda said...

सहमा सा बैठा है छोटे भाई को लिए
बाप उसका आज फिर से पी के आया है

dil ko chhoo liya aapne...

Vinay said...

सिर्फ़ बातों से उनके पेट नहीं भरने वाले हमें गरीबी को मिटाने के लिए अथक प्रयास करने होंगे!

Shahid Ansari said...

bahut khoobsurat likha hai...

Unknown said...

tumhari kavitaaye bahutachchi he, maa vali to bahut,keep it up.

Unknown said...

Thats pretty cool