Monday, November 16, 2009

जी चुरा ले गया वो टूटे दांत वाला लड़का....

आज की सुबह कुछ ख़ास थी! एक तो हलके कोहरे में डूबी हुई सड़कें जो रात भर बारिश के बाद धुली धुली और खूबसूरत नज़र आ रही थी! दूसरे एक ऐसा वाकया जिसने इस सुहानी सुबह को और भी सुहाना बना दिया! आज सुबह सुबह उठने में बहुत आलस आ रहा था....मगर इतनी सुन्दर सुबह में घूमने का लालच नहीं छोड़ पाई! और अच्छा ही हुआ वरना ऐसी सुबहें तो बहुत आतीं मगर वो टूटे दांत वाला लड़का शायद फिर दोबारा नहीं मिल पता! रोज़ की ही तरह मोबाइल का हैडफोन कानों में लगाए सुबह सुबह के पुराने गानों को सुनते हुए मैं वॉक पर निकली! " याद किया दिल ने कहाँ हो तुम...प्यार से पुकार लो जहां हो तुम..." गाना इस रूमानी सुबह को और भी रूमानी बना रहा था! थोड़ी दूर चलने पर देखा कि एक छोटा लड़का अपनी साइकल की उतरी हुई चेन चढाने की कोशिश कर रहा था! थोडा पास गयी तो देखा कि उसकी साइकल में स्टैंड नहीं था....एक हाथ से साइकल संभाले हुए वो किसी तरह दूसरे हाथ से चेन चढाने का प्रयास कर रहा था!जब मैं उसके पास पहुंची, तब भी वो अपनी चेन और साइकल से ही जूझ रहा था!

मैंने उसके पास जाकर पूछा " मैं पकड़ लूं तेरी साइकल?"
उसने बिना किसी झिझक के कहा " पकड़ लो ना"
मैंने उसकी साइकल थामी...वो दोनों हाथों से जल्दी जल्दी चेन चढाने लगा! मैंने इस बीच ध्यान से उसे देखा! करीब आठ-नौ बरस का वो बच्चा, नीली पेंट और काली टीशर्ट पहने था! गरीब घर का था ! शायद कबाड़ बीनने निकला है, उसकी साइकल के हैंडल पर लटकी कई खाली पौलिथिन देखकर मैंने अंदाजा लगाया! " हो गया"....कहते हुए वो खड़ा हुआ और मुझे देखकर मुस्कुराया! उसके मुस्कराहट के भीतर सामने का टूटा हुआ दांत बड़ा क्यूट लगा मुझे! एक दम से मन में आया कि इस दांत टूटने की उम्र में कबाड़ बीन रहा है ये नन्हा बच्चा! मैं भी मुस्कुराई, पूछा " कहाँ जा रहे हो?"
" काम पर... " बच्चा बोला और एक बार फिर वही सुन्दर सी मुस्कराहट बिखेरकर चला गया! मैं भी अपने रास्ते आगे बढ़ गयी!

अगला गाना था " दीवाना हुआ बादल..." सचमुच क्या खूबसूरत सुबह थी! चार कदम ही चली थी, इतने में देखा वो बच्चा वापस घूम कर मेरी तरफ आ रहा था! कुछ ही सेकण्ड में साइकल मेरे पास लाकर उसने रोकी, मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी ओर देखा! वो मुस्कुराया और मुझसे पूछा " दीदी...मैं आपको कहीं छोड़ दूं?" अब मैं भी अपनी मुस्कराहट ना रोक सकी ! उसकी इस बात पर मुझे उस पर इतना लाड आया की मन किया उसके दोनों गाल पकड़कर बूगी वूगी वुश कर दूं और उसके जोर की एक पप्पी दे दूं! लेकिन मैंने ऐसा किया नहीं! पता नहीं छोटी छोटी इच्छाएं पूरा करने से हमें हमारे अन्दर से ही कौन रोक देता है? मैं बोली " नहीं...मैं तो पैदल ही घूम रही हूँ?"
" अच्छा...." उसकी मुस्कराहट के पीछे टूटा दांत फिर झिलमिलाया और साइकल घुमा कर वो चला गया!

मैं तब तक उसे देखती रही जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया! कहाँ से आई उस नन्हे से बच्चे में इतनी समझ? नहीं नहीं...ये समझ नहीं, ये तो उसकी संवेदनशीलता और प्यारा सा दिल था जो उसने शुक्रिया कहने के लिए मेरी मदद करनी चाही! उसका ये प्यारा सा अंदाज़ मेरे दिल में बस गया! शायद अगली बार किसी को शुक्रिया कहने से पहले इस बच्चे को मैं याद करुँगी जिसने मुझे बहुत प्यारा ढंग सिखा दिया कृतज्ञता जाहिर करने का! उस छुटके को मेरा सलाम जो मुझे एक यादगार सुहानी सुबह दे गया! ! भगवन उसे हमेशा इतना ही नेक बनाये रखे और संघर्ष की आँधियों में बिखरने से बचाए!

पर बात यहीं ख़त्म नहीं होती है! मैंने अपने एक दोस्त को सुबह का सारा वाकया बताया! उसने गौर से सुना और बोला " मैं होता तो थोड़ी दूर उसकी साइकल पर बैठकर ज़रूर जाता!" उसकी इस बात ने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया! सही तो है...मैंने क्यों नहीं सोचा ये! अगर मैं अगले चौराहे तक उसकी साइकल पर बैठकर चली जाती तो वो बच्चा कितना खुश हो जाता! उसने मुझे कितना खुश किया बदले में मैं भी उसे उतना ही खुश कर सकती थी! ख़ुशी के बदले सिर्फ ख़ुशी ही तो दी जा सकती है ! है ना?....खैर अगली बार से याद रखूंगी!

Wednesday, September 30, 2009

वो जो बिछडे हैं कब मिले हैं फ़राज़ ......


फिर किसी राहगुज़र पर शायद...
वो कभी मिल सकें मगर शायद.........


आज ये ग़ज़ल मुझे न जाने किस दुनिया में ले गयी! सारे वो चेहरे जिनके साथ कभी न कभी जिंदगी के बहुत खूबसूरत पल बिताये हैं, अचानक से जेहन में कौंध गए! जिन दोस्तों के बिना शायद ये जिंदगी ऐसी न होती जैसी आज है! आज भी जब दोस्ती की बात चलती है तो ये सब बहुत याद आते हैं मगर आज इस दुनिया की भीड़ में न जाने कहाँ गुम हो चुके हैं! न कोई पता...न ठिकाना! न ये पता की आज ये क्या कर रहे हैं!लेकिन यादों में उसी तरह ताज़ा हैं जैसे बरसों पहले थे! माधवी, ऋचा, जीतू ,मंजूषा ....आज तुम सब बहुत याद आ रहे हो! कहाँ हो यार तुम सब? वापस आ जाओ तो शायद फिर से लाइफ रिवाइंड हो जाए!

माधवी....तुम मेरी पहली पक्की सहेली थी! मुरैना के स्कूल में हमने एक साथ पहली क्लास में एडमिशन लिया था! तुम मेरी पहली दोस्त बनी थीं! आज तुमसे अलग हुए शायद पच्चीस साल हो गए ....अब शायद सामने भी आ जोगी तो नहीं पहचान पाऊँगी! मुझे अभी तक तुम्हारा चौथी कक्षा वाला चेहरा याद है! और तुम्हारे चिडिया के घोंसले जैसे घने घने बाल...हम सब तुम्हे चिढाया करते थे लेकिन दरअसल तुम्हारे बाल हम सबसे अच्छे थे ...! आज भी जब कभी मुरैना जाना होता है तो तुम्हारी दुकान " कुमार रेडियोज़" को ढूंढती हूँ जहां ये पहले हुआ करती थी! पर शायद इतने सालों में तुम्हारी दुकान भी बदल गयी होगी! कभी सोचती हूँ की अचानक कभी तुम अपनी दूकान के बाहर दो बच्चों के साथ खड़ी नज़र आ जोगी....हो सकता है तुम्हारी बेटी आज बिलकुल वैसी ही हो जैसी तुम क्लास फोर्थ में थीं!

और ऋचा तुम कहाँ चली गयीं यार? तुम मंडला में अपने बारहवी क्लास के ग्रुप की सबसे क्यूट लड़की और मेरी बहुत प्यारी दोस्त! तुम्हे याद है हब सब फ्रेंड्स अक्सर एक साथ होते थे तो कहते थे कि आज से पंद्रह साल बाद हम सब एक बार फिर इकट्ठे होंगे! लेकिन ये सब प्लान जो मासूमियत और बेफिक्री के आलम में बनते हैं....दुनियादारी में उलझकर हमें याद भी नहीं रहते! और लोगों का तो फिर भी मुझे पता है कि वो लोग कहाँ है मगर तुम्हारे बारे में कुछ पता नहीं है! तुम पढाई में बहुत तेज़ थीं , हो सकता है आज तुम किसी बहुत अच्छी जगह पर होगी! तुम्हारे साथ की गयी सारी शरारतों को आज भी मैं मुस्कराहट के साथ याद करती हूँ! आ जाओ यार...एक बार फिर से वो सारी शरारतें दोहराने का मन कर रहा है!

और जीतू....तुम तो ऐसे गायब हो गए यार कि ढूंढ ढूंढ कर हम थक गए तुम्हे! तुम मुझे उस वक्त मिले जब पढाई ख़त्म करके हम लोग कैरियर की चिंता में डूबे हुए थे! कम्पयूटर क्लास में हुई हमारी पहचान कितनी अच्छी दोस्ती में बदल गयी थी! मैं तो जल्द ही कम्पयूटर से ऊब गयी थी लेकिन तुम उसी में आगे बढ़ना चाहते थे!मैंने पी.एस.सी. की तैयारी की और तुम्हारे ख्वाब अपना काम शुरू करने का था! शाजापुर में बिताये हुए चार साल तुम्हारे ज़िक्र के बिना पूरे नहीं होंगे! दिन भर की थकान के बाद शाम को तुम्हारे साथ बैठ के हँसना बहुत सुकून भरा लगता था! मैं और गड्डू जब भी एक साथ होते हैं...तुझे ज़रूर याद करते हैं! मेरा नंबर तो वही है यार....कभी कॉन्टेक्ट करने की कोशिश क्यों नहीं करते! अगर कंट्रोल रूम से भी मांगोगे तो मेरा नंबर मिल जाएगा! अचानक तुम्हारा इस तरह गायब होना हमें नहीं भय! बस अब जल्दी से वापस आ जाओ....

तुम सब दोस्तों को मैंने कितना ढूँढा.....ऑरकुट पर तलाशा इस उम्मीद के साथ की यहाँ तो तुम हंड्रेड परसेंट मिल ही जाओगे! मगर कितने आउट डेटेड हो यार! यहाँ भी नहीं हो! अब ब्लॉग तो क्या ही पढ़ते होगे तुम लोग! पर मैं भी उम्मीद कहाँ छोड़ने वाली हूँ! पता है...जब कभी रेलवे स्टेशन पर जाती हूँ चैकिंग करने तो आँखें भीड़ में इधर उधर कुछ खोजती रहती हैं! शायद कभी अचानक तुममे से कोई मिल जाए....और " अरे तू..." कहते हुए हम गले लग जाएँ!

वो जो बिछडे हैं कब मिले हैं फ़राज़ ......
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद.....

Wednesday, September 16, 2009

फोकट का मनोरंजन.. अति उत्तम अति उत्तम

बातें देने में हम भी माहिर हैं....किसी भी आम भारतीय की तरह! अभी दो दिन पहले ही किसी से कह रहे थे कि देखो जरा हमारे देश में लोगों को कितनी फुर्सत है....कहीं भी टाइम बर्बाद करते रहते हैं, समय की कीमत नहीं समझते, जहां फोकट का मनोरंजन होते देखा वहीं रुक गए अपने सारे काम धाम भूलकर! अगला भी पूरी तन्मयता से हमारी बातें सुनकर हाँ में हाँ मिला रहा था! और समय के ऊपर ये सारा भाषण हम अपने ऑफिस में बैठकर दे रहे थे! सरकारी समय को हमने समय की गुणवत्ता का बखान करने में खर्च दिया! फिर ऑफिस से निकलने लगे....ड्राइवर कहीं चाय पीने चला गया था! थोडा लेट हो गया! हम भाषण मोड में तो थे ही साथ ही जो लेक्चर अभी अभी पेल कर आये थे वो याद था ही सो ड्रायवर को भी समय की कीमत समझाते आये! ड्रायवर भी मुंडी हिलाता रहा या यह कहना ज्यादा सटीक होगा की हम बीच बीच में " समझे" " समझे" पूछ पूछकर उसकी मुंडी हिलवाते रहे!
Motorcycle---Cartoon-1_fullअब साहब हुआ क्या की दो किलोमीटर ही चले होंगे इत्ते में क्या देखते हैं कि सड़क पर भीड़ जमा है! उत्सुकता वश देखा तो कोई एक्सीडेंट हुआ है! हमें अपने भाषण पर सही उदाहरण भी मिल गया ! " अब देखो जनता को...अपना काम धंधा छोड़कर एक्सीडेंट देखने में ही भिड गयी है!" हमने ड्रायवर से कहा! इस बार उसने मुंडी नहीं हिलाई ! हमारी बात से ज्यादा इंटरेस्ट उसे मोटर साइकल और स्कूटर के एक्सीडेंट को देखने में आ रहा था! हमने भी उत्सुकता भरी निगाह एक्सीडेंट स्थल पर डाली! नज़ारा सचमुच महा रोचक था! मोटर साइकल वाला अपनी मोटरसाइकल रोक कर खडा था! स्कूटर वाला स्कूटर सहित नीचे गिरा था! स्कूटर का हैंडल पकडे आधा उठा आधा पड़ा स्टाइल में अधलेटा सा हो रहा था! और सबसे बड़ी बात जिसने भीड़ को चुम्बक की तरह बांधे रखा था....कि दोनों जने फ्री स्टाइल झगडा कर रहे थे!इस झगडे में भी सबसे बड़ी बात जिसने भीड़ ( अब जिसमे हम भी शामिल थे) को सारा काम काज भूलने पर मजबूर कर दिया था....कि स्कूटर वाला झगडे में इतना तल्लीन था कि पड़े पड़े ही झगड़ रहा था! भीड़ में से किसी ने कहा भी " भाई ॥पहले स्कूटर तो खडा कर ले...फिर लड़ लेना" स्कूटर वाला मोटरसाइकल को भूलकर उस भले आदमी पर गुर्रा के पड़ा " तेरेको क्या करना...मैं चाहे पड़े पड़े लडूं या खड़े खड़े। तू अपना काम देख" भला आदमी अपना सा मुंह लेकर रह गया! और हमें लगता है कि इसी तुनक में स्कूटर वाला खडा होता भी होगा तो और नहीं हुआ!
अब झूठ क्यों कहें , ड्रायवर ने हमारी गाडी भी रोक दी...हम भी चुप्प पड़ के रह गए! अब तक हम भाषण वाषण सब भूल चुके थे और दोनों कि बहस बाजी का पूरा आनंद उठा रहे थे! जैसा किआम तौर पर हर उस एक्सीडेंट में होता है जिसमे कि दोनों में से किसी पार्टी को चोट नहीं लगती है! लेकिन चूंकि कपडों पर धूल मिटटी लग जाती है तो उसके एवज में सामने वाले की ऐसी तैसी करके अपनी भडास निकालते हैं!
" देख के नहीं चला सकता क्या गाडी....scooter अभी मुझे लग जाती तो?""
लगी तो नहीं न....क्यों बेकार की बहस कर रहा है!
"" लगी नहीं वो तो भगवान का शुक्र है...वरना तूने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी...अभी लग जाती तो?""
अरे ऐसे कैसे लग जाती....बीस साल हो गए गाडी चलाते चलाते!..
.."" तो मैं क्या नौसिखिया हूँ....मुझे बाईस साल हो गए! अगर मुझे कहीं लग जाती मुझे तो तेरी वो हालत करता की मोटर साइकल को हाथ लगाने से पहले दस बार सोचता""
अरे...लगी तो नहीं न तेरेको...क्यों एक ही बात बार बार कह रहा है!" अब मोटरसाइकल वाले को गुस्सा छूटा ! अभी तक स्कूटर वाला नीचे ही पड़ा था....इतने में मोटर साइकल वाले का मोबाइल बजा! उसने स्कूटर वाले को से कहा " एक मिनिट भाई..." और फोन सुनने में लग गया! स्कूटर वाले ने भी पूरा सहयोग करते हुए मौन धारण कर लिया! " अरे बेटा ...बस दो मिनिट में आया" शायद मोटर साइकल वाले को याद आया की वो अपने बच्चे को स्कूल से लेने जा रहा था! उसने मोटर साइकल स्टार्ट कर दी! स्कूटर वाला चिल्लाया " अरे ॥ऐसे कैसे जा रहा है? मेरे कपडे जो गंदे हो गए उसका क्या..?" मोटर साइकल वाले ने हाथ हिलाया और चलता बना!" स्कूटर वाला खिसिया कर रह गया! उसने भी स्कूटर उठाया ...कपडे झाडे....स्कूटर स्टार्ट किया और भीड़ को देखकर बड़बडाया " देखो तो सही ..कैसे कैसे गाड़ी चलाते हैं..अभी लग जाती तो?" भीड़ में से कुछ लोगों ने सर हिलाकर उसका समर्थन किया! स्कूटर वाला भी चला गया!
फिलिम का एंड हुआ....ड्रायवर ने भी गाडी स्टार्ट करी....भीड़ भी छंटने लगी! हमने ड्रायवर को कहा " अब अपन तो इसलिए और रुक गए की कहीं किसी को अस्पताल वगेरह तो नहीं ले जाना " ड्रायवर मुस्कुरा दिया और मुंह घुमाकर हम भी!

Thursday, September 3, 2009

गलत टाइम पे हँसे तो फंसे.....

मुझे लगता है हम हिन्दुस्तानी कुछ अलग ही मिट्टी के बने होते हैं! हर हाल में मस्त....स्कूल के दिन याद आते हैं!एक छात्र की ठुकाई चल रही है! छात्र दो सेकंड को बुरा सा मुंह बनाता है अगले ही पल अपने साथी को देखकर चेहरे पर ढाई इंच की मुस्कान फ़ैल जाती है! वो जानता है की इस मुस्कान के एवज़ में दो डंडों का प्रसाद और मिलेगा मगर पट्ठा हंसने से बाज नहीं आएगा!

अभी कुछ दिन पहले की बात है थाने में एक क्रिमिनल आया! रिवाज है की थाने में आने वाले हर अपराधी का फोटो खींचा जाता है व एल्बम में नत्थी कर दिया जाता है! इन महाशय को भी फोटो खिंचवाने के लिए खडा किया गया!एक कॉन्स्टेबल हाथ में कैमरा लेकर खडा हुआ चोर महाशय को भी सामने खडा किया गया! जैसे ही कॉन्स्टेबल क्लिक करने को हुआ चोर मुस्कुरा दिया! मुस्कुराती हुई फोटो कैमरे में कैद हो गयी!
" अबे..हँस मत , सीधा खडा रह! बिना दांत दिखाए" कॉन्स्टेबल ने घुड़का!
चोर ने हाँ में सर हिलाया ! फिर से कॉन्स्टेबल ने कैमरा उठाया क्लिक किया पर चोर की बत्तीसी इस बार भी फोटो की शोभा बढा रही थी!
" साले ...तेरी शादी के लिए फोटो खींच रहा हूँ क्या? बिना हँसे खडा रह चुपचाप नहीं तो दूंगा एक कनपटी के नीचे , हँसना भूल जाएगा!" कॉन्स्टेबल को इस बार जोर से गुस्सा आया!
साहब ...अब के नहीं हसूंगा " चोर ने उसे आश्वस्त किया! मैं और टी.आई बैठे बैठे फोटो खींचने का इंतज़ार कर रहे थे! फिर से चोर खडा हुआ...कॉन्स्टेबल ने कैमरा उठाया , और ये क्या.....चोर खुद को रोकते रोकते फिर से मुस्कुरा दिया! कॉन्स्टेबल आगे बढा....एक चांटा रसीद किया उसके गाल पर!
" साले...तेरी प्रॉब्लम क्या है? क्यों इतना खुश हो रहा है...दांत तोड़ दूंगा सामने के!" कॉन्स्टेबल बुरी तरह गुर्राया!
" सौरी साब....वो क्या है की जैसे ही फोटो खिंचने को होता है , मुझे अपने आप हंसी आ जाती है"
" क्यों आ जाती है तेरेको हंसी....किसी फिलिम का हीरो है क्या तू "
" पक्का साब...इस बार नहीं हसूंगा, मारना मत" चोर ने वादा किया
ठीक है...आखिरी मौका दे रहा हूँ...अब के हंसा तो इत्ती ठुकाई करूँगा की ...." कॉन्स्टेबल ने वाक्य अधुरा छोड़ कर कैमरा थाम लिया! फिर से फोटो खींचने की कवायद शुरू हुई.....मुझे भी उत्सुकता थी...अब क्या होगा? तीन ,दो, एक....क्लिक और अगले ही पल एक झन्नाटेदार चांटा फिर से चोर के गाल पर पड़ा और कुछ उच्च कोटि की गालियाँ भी हवा में तैर गयी! इतने में मेरे मोबाइल पर मैसेज टोन आई और मैसेज था " smile is the language of love...smile is way to get success.smile improves your personality....keep smiling even u are going thru your worst phase. never leave smiling" मुझे हंसी आ गयी...किसी ने दो घंटे पहले मैसेज किया था जो अब मेरे पास पहुँच रहा था....वाह रे ऊपर वाले तेरा सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी कमाल का है! क्या सही टाइमिंग है! एक बार फिर मैंने मैसेज पढ़ा ..फिर चोर को देखा जो चांटा खाकर गाल पे हाथ धरे खडा था! खैर दो तीन रीटेक के बाद सीन ओके हो ही गया!

हमें याद है ऐसे ही कई बार गलत जगह, गलत टाइम पर इस कमबख्त हंसी ने हमें भी बहुत हलकान किया है! एक बार हमारे मकानमालिक अंकल सीढियों से नीचे गिर गए...आंटी जी भी हंसमुख टाइप की थीं! उनके मुंह से निकला..." अरे देखो तो सही...ये कैसे गोल गोल लुढ़क कर गिर गए" आंटी भी हंसी...हम और जोर से हँसे! आंटी बड़ी थीं उनसे किसी ने कुछ न कहा...पर हमें डांटने में किसी ने कोई कसर न छोड़ी! पहले मम्मी हर साल गर्मियों की छुट्टियों में नानी के गाँव ले जाती थीं! जब छुट्टियां बिताने के बाद हम विदा होते थे तो सीढियों से नीचे उतरने तक सब हँस रहे होते थे लेकिन जैसे ही बस स्टैंड की तरफ चलना शुरू होते वैसे ही मम्मी , मौसी और नानी चिपट चिपट कर रोने लगतीं! बिना किसी पूर्व भूमिका के इस तरह सुबक सुबक कर रोना देखकर हम खी खी कर के हँस देते! मम्मी मौसी के गले लगे लगे ही हमें घूरतीं....रोने तब भी जारी रहता! एक पल को सहम कर हम चुप हो जाते...फिर दुसरे ही पल मुंह फेर कर आवाज़ दबाकर हम सब भाई बहन हंसते! जब हंसी आती है तो किसी के रोके नहीं रूकती...बेचारा चोर भी क्या करता! खैर अब वक्त की मांग है की कई जगह पर हंसी कंट्रोल करना बहुत जरुरी हो जाता है...अब इसमें थोडी बहुत निपुणता हासिल कर ली है! कम से कम इतना तो हो ही गया है कि उस वक्त कैसे भी रोक लेते हैं बाद में भले ही अकेले ही हँस लें! चलते चलते ईश्वर से एक प्रार्थना...." हे प्रभु, कभी किसी को यूं नीचा न दिखाना
गलत टाइम पर हंसने से हमेशा बचाना"
!

Tuesday, August 25, 2009

हाज़िर हूँ......ब्रेक के बाद

तीन महीने का अच्छा खासा ब्रेक हो गया ब्लोगिंग से! मुझे याद आता है वो दिन जब डेढ़ साल पहले ब्लॉग लिखना शुरू किया था...एकदिन में दो दो पोस्ट लिख लेती थी! भले ही पोस्ट तीन दिन बाद करती थी! दिमाग में तूफ़ान मेल की तरह विचार आते थे! मुझे लगता था...ये एक ऐसी चीज़ मिल गयी जिससे मैं कभी बोर नहीं हो सकती! हांलाकि मेरी बहन ने मुझे कहा था की तू कुछ दिनों में इससे भी बोर हो जायेगी! तब मैंने बड़े विश्वास से कहा था की नहीं लिखना तो मेरे पसंद का काम है....इससे बोर होने का सवाल ही नहीं उठता! उसने कंधे उचकाये थे और वहाँ से चली गयी थी! लगभग एक साल तक लिखने का जोश पहले दिन जैसा ही बना रहा! फिर विचारों की गति भी मंद पड़ी और लिखने का अन्तराल भी बढ़ गया! मैंने सोचा....व्यस्तता के कारण इतना लिखना नहीं हो पा रहा है! मैंने अपनी लास्ट पोस्ट मई के किसी दिन लिखी थी! उसके बाद कुछ नहीं लिख सकी!खुद भी यही समझती रही और दूसरों को भी यही बताती रही की आजकल बहुत व्यस्त चल रही हूँ इसलिए नहीं लिख पा रही हूँ.....फिर एक दिन मैंने महसूस किया की दो दिन की छुट्टी पूरी निकल गयी और मेरे मन में ब्लॉग खोलने का विचार तक नहीं आया!


ऐसा क्यों हुआ...पता नहीं! उसके बाद व्यस्तता कम हुई...फिर भी कुछ लिखने का मन ही नहीं हुआ! और विचारों ने तो शायद अब दिमाग का रास्ता ही भुला दिया है! शायद मैं बोर हो चुकी थी! पिछले एक हफ्ते से मन बना रही हूँ लिखने का...तब जाकर आज लिख रही हूँ!


कई लोगों को नियमित ब्लॉग लिखते देखती हूँ तो अब बड़ा सुखद आश्चर्य होता है! भगवान ने ऐसा जूनून मुझे क्यों नहीं दिया! किसी भी चीज़ से जल्दी उकता जाती हूँ मैं...मन हमेशा कुछ नया करना चाहता है! शायद इसीलिए मैं किसी चीज़ में परफेक्ट नहीं बन पायी! बहुत कुछ सीखा ...पर सब थोडा थोडा! उसके बाद फिर एक नयी चीज़ की तलाश! मेरी एक दोस्त कहती है....खुदा का शुक्र है की तू रिश्तों से बोर नहीं होती वरना मेरा तो पत्ता कट चूका होता! सचमुच इश्वर का शुक्र है आज भी सेवेन्थ क्लास की सहेली मेरी उतनी ही पक्की सहेली है....हाँ अब संख्या में इजाफा हो चूका है!
आज फिर से लिखने की इच्छा वैसे ही जोर पकड़ रही है...जैसे डेढ़ साल पहले पकड़ती थी! सोचती हूँ ब्रेक लेना एक अच्छा तरीका है मेरे जैसे लोगों के लिए! जिससे बोर हो गए हो, उसे हमेशा के लिए बाय बाय कह देने से अच्छा है कुछ दिनों के लिए उससे दूर हो जाना! एक अन्तराल के बाद दोबारा शुरू करना भी नयापन ला देता है! मेरी एक कुलीग ने मुझे बताया था की उसके अपने पति से झगडे बढ़ने लगे थे! दोनों को एक दूसरे का चेहरा देखकर खीज आती थी! उकताकर उसने अपना ट्रांसफर किसी दूसरी जगह करवा लिया ! अब दोनों हफ्ते में एक बार मिल पाते थे! एक साल बाद उसी कुलीग ने सारा जोर लगाकर अपना ट्रांसफर वापस पति के शहर में करा लिया! अब दोनों बहुत खुश थे! तो ब्रेक ने यहाँ भी अपना काम बखूबी किया! खैर मैं भी हाज़िर हूँ ब्रेक के बाद....अगले ब्रेक तक के लिए!


चलते चलते एक बात और....बचपन से बड़ा शौक था की एक सुन्दर सी साइकल होती मेरे पास....पर महंगी होने के कारण हमेशा कम सुन्दर साइकल से काम चलाना पड़ा! पुराना शौक फिर से जगा और हमने लेडी बर्ड खरीद ली...आगे बास्केट वाली! आजकल सुबह सुबह गाना सुनते हुए चलाना बड़ा अच्छा लगरहा है! इसीलिए साइकल की ही फोटो डाल दी! आप भी देखो हमारी सुन्दर साइकल...

Thursday, May 7, 2009

साहब...एक शेर पकडा है वो भी गूंगा बहरा

बीता महीना चुनाव के कारण बहुत व्यस्तता भरा बीता! एक तो बला की गर्मी , ऊपर से चुनाव. इससे ज्यादा भयावह कॉम्बिनेशन नहीं हो सकता! इतनी गर्मी में घूम घूम कर तीन बार तो लू लग गयी! हांलाकि जिसने जो सलाह दी..एक आध छोड़कर सब पर अमल भी किया! कैरी का पना, नीबू पानी, सत्तू ..सब कुछ पिया! साथ में प्याज भी रखी! पर ज्यादा काम न आये! बस कैलेंडर में तारीखें काट काट कर तीस अप्रैल गुज़र जाने का इंतज़ार करते रहे! चुनाव हो जाने के बाद जो पहला काम किया वो ये की उस रात शायद बारह घंटे से कुछ ज्यादा ही सोयी होउंगी! अब थोडा रिलेक्स महसूस हो रहा है....गाडी वापस पटरी पर आ गयी है! इस बीच कुछ लिखना पढना भी नहीं हो पाया! लेकिन अभी दो दिन पहले एक मजेदार वाकया हुआ....जो लिखने का मसाला दे गया! वही लिखे दे रही हूँ!

मैं बाज़ार से गुज़र रही थी...इतने में हमारे एक टी.आई. साहब का फोन आया! या तो सिग्नल प्रोब्लम रही होगी या आस पास भीड़ भड़क्का , जिसके कारण आवाज़ ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी! टी.आई. साहब ने कहा " आज हमने एक चोर पकडा है!" हम गलती से सुन बैठे की एक शेर पकडा है! हो सकता है की दोष हमारे कानो का हो जिसे हमने सिग्नल की कमी या भीड़ भड़क्के पर थोप दिया है! जैसे ही हमने सुना, हम तो एकदम चमक गए! मन ही मन सोचा...अरे वाह जिसे हम आज तक लल्लू टाइप का समझते रहे...इसने तो कमाल कर दिया! सीधे शेर पकड़ लिया! हमें गर्व हुआ की विश्व का सबसे बहादुर टी.आई हमारे पास है! खैर हमने कहा " अच्छा....कैसे पकडा?"
टी.आई साहब बोले " कुछ नहीं साहब....यही थाने के पास घूम रहा था ...पकड़ लिया!" अब तक आर्श्चय हमारा स्थायी भाव बन चुका था हम बोले " अरे गज़ब...थाने के पास कैसे आ गया?...." आगे कुछ और पूछते इससे पहले ही टी. आई साहब ने आगे जोड़ा " साहब ...वो गूंगा बहरा भी है" अब तो आश्चर्य के मारे आँखें फट कर बाहर निकलने को थी " अरे तुम्हे कैसे पता चला की गूंगा है?" हमने पूछा! टी.आई . ने बड़े आराम से जवाब दिया " अरे साहब ...कुछ बोल ही नहीं रहा!" हम्म....सही है , दहाड़ नहीं रहा होगा तभी इसे लग रहा है की गूंगा है! हमने सोचा.. फिर हमने पूछा " गूंगा तो ठीक...पर तुम तो ये बताओ की तुमने ये कैसे जाना कि ये बहरा है?" टी. आई. ने उतने ही आराम से जवाब दिया " हम कुछ कहते हैं तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है!" वाह भाई वाह...कितना समझदार और बहादुर टी.आई है हमारा .....हम उससे बड़े प्रभावित हुए! फिर हमने पूछा " अब क्या करोगे उसका?" " साहब एक आध दिन रखते हैं थाने पर...फिर देखते हैं क्या करना है!" इतना सुनकर तो हम इतना घबराए कि फोन हाथ से छूटने को हुआ! एक पल को हवालात में बैठा हुआ शेर हमारी आँखों के आगे घूम गया! हमने कहा " नहीं नहीं ...जल्दी वन विभाग वालो को फोन करो...उन्हें सुपुर्द करो!" टी.आई. बोला " क्यों करें वन विभाग वालो को सुपुर्द ..हमने पकडा है! और वैसे भी उसके पास से कोई लकडी वकडी नहीं मिली है....मोबाइल मिले हैं!"
अब हमने अपने कानो को खुजाया और कहा " किसकी बात कर रहे हो"
" चोर की ...उसके पास से मोबाइल मिले हैं!" टी.आई. ने कहा!
" तो आपने चोर पकडा है...जो गूंगा बहरा है" हमने कन्फर्म किया
" जी सर...आपने क्या समझा?"
बड़ी मुश्किल से हंसी काबू में करते हुए हमने जवाब दिया " शेर"
अब तो वो भी हँसने लगा...हमने कहा टी.आई साहब दस मिनिट बाद फोन लगाना , हम जरा हंस ले!
खैर बाद में हमने सारी बात समझ ली....लेकिन अब इन मुए कानों पर कभी आँख बंद करके विश्वास नहीं करेंगे! मान लो कहीं बीच में फोन कट जाता और हम ये बात अपने अधिकारियों और प्रेस को बता देते तो......?

Tuesday, April 14, 2009

जिंदगी बेहद खूबसूरत है,चलिए इसे पहले से भी ज्यादा प्यार करें.....


"life is so beautiful that death has fallen in love with it।" कल ही एक नॉवेल पढ़ते वक्त ये पंक्तियाँ देखी! कितना सच है, जिंदगी की सुन्दरता की इससे सुन्दर व्याख्या मैंने नहीं पढ़ी थी! मेरे कई दोस्तों से कई बार जिंदगी की फिलॉसफी पर चर्चा होती है...कितनी अजीब बात है वही जिंदगी बहुत खूबसूरत लगती है जब हमारे साथ सब कुछ अच्छा अच्छा हो रहा होता है, हमारा दिल खुशियों से भरा होता है ! वही दोस्त जो अपने अच्छे वक्त में जिंदगी के एक एक पल का आनंद उठाना चाहता है ! कुछ महीनों बाद जब दुर्भाग्य वश अच्छे वक्त का चक्र ख़त्म होता है और जिंदगी अपना दूसरा चेहरा दिखाती है तब वही दोस्त जिंदगी को एक अभिशाप से ज्यादा कुछ नहीं मानता! परिवर्तन जिंदगी का नियम है या अच्छा और बुरा वक्त दोनों ही स्थायी नहीं हैं....ऐसी बातें चर्चा के दौरान करने वाला दोस्त सब भूल जाता है जब खुद कठिनाइयों से जूझ रहा होता है! और शायद हममे से ज्यादातर लोग इसी तरह की जिंदगी जीते हैं! अच्छे फेज़ को उत्साह के साथ जीते हैं तब हम क्यों याद नहीं रखते की ये फेज़ अस्थायी है और इसके बाद दूसरा फेज़ भी आएगा जो हमारी अंदरूनी शक्ति की असली परीक्षा होगी! कितने हैरत की बात है न की आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परेशानियां हमें इतना हताश कर देती हैं की हमारे अन्दर से जीने की इच्छा ही ख़तम हो जाती है! मेरे खुद के अनुभव हैं की मानसिक अवसाद के दौर में गुस्सा, आंसू, चिडचिडापन आप पर हावी हो जाते हैं और लगता है की अब ये दौर शायद कभी ख़त्म न होगा...एक लम्बी अँधेरी सुरंग की तरह! पहले पढ़ी हुई सारी सकारात्मक बातें जैसे हवा हो जाती हैं! मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मेरी कोई दोस्त परेशान होती थी तो मैं उसे इतनी सारी सकारात्मक बातें, जिंदगी को सुन्दर बनाने के तरीके और डिप्रेशन को दूर रखने के तरीके बताया करती थी जो कि मैंने किताबों में पढ़े हुए थे! शायद तब तक मैंने डिप्रेशन को जाना नहीं था! जिस दिन वो फेज़ मेरी जिंदगी में आया तब वो सारी बातें मैंने खुद से भी कही लेकिन खुद को बहुत लाचार पाया! और अगर किसी और ने मुझे समझाने कि कोशिश की तो लगा की ये सब तो मुझे पता है॥ये मुझे क्या बता रहा है!

पहले मुझे समझ नहीं आता था की बचपन से ही अगर मैं दोपहर में सो जाऊं और शाम को अँधेरा होने के बाद उठूँ तो क्यों एक अनजानी सी उदासी मुझे घेर लेती थी! हांलाकि ये दौर बहुत छोटा होता था...शायद दो घंटे या इससे कुछ ज्यादा का! आज भी ये होता है इसलिए जब भी मैं दिन में सोती हूँ तो इस अवसाद से बचने के लिए अलार्म लगा लेती हूँ ताकि अँधेरा होने से पहले उठ जाऊं! अगर कभी गलती से सोती रह गयी तो अब तक मैं जान चुकी हूँ की क्या करना है! तुंरत तैयार होकर मार्केट का एक राउंड लगा लेती हूँ! वहा आइसक्रीम का कोन हाथ में पकडे हुए लखनवी चिकन के कुरते या जंक ज्यूलरी की दुकाने देखते हुए याद भी नहीं रहता की थोडी देर पहले उदासी ने मुझे जकड रखा था! लेकिन मैंने एक बात विशेष तौर पर नोटिस की कि अवसाद चाहे कितनी भी कम देर का क्यों न हो...आपकी सोच को बदल कर रख देता है! आम तौर पर जिंदगी को पूरी तरह एन्जॉय करने वाली मैं अवसाद के उस दौर में कोई और ही बन जाती हूँ मानो मेरे अन्दर मुझसे छुपकर कोई और इंसान भी रहता है! जो समय समय पर अपनी उपस्थिति का एहसास दिला जाता है! निराशा के उस दौर में वे सारे लोग जो मुझे छोड़कर इस दुनिया से चले गए हैं....बहुत जोर से याद आने लगते हैं! एक अनजाना सा भय सताने लगता है कि कहीं अपना कोई कहीं चला न जाए! जीवन के मायने नए सिरे से तलाश करने लगती हूँ! शायद ये भी खुद को जानने समझने का एक मौका होता है! जब कई बार ऐसा मेरे साथ हुआ तो मैंने अवसाद के बारे में बहुत बहुत पढ़ा! तब जाना कि मौसम का हमारे मूड से कोई न कोई रिश्ता ज़रूर है! फरवरी महीने में विश्व में सबसे ज्यादा आत्म हत्याएं क्यों होती हैं? क्यों काले बादल से भरा दिन उदास कर देता है? यहाँ तक कि आज भी मार्च अप्रैल के महीने में रात को जब हवा चलती है तो दिल जोर जोर से धड़कने लगता है....यही वो हवा और मौसम था जिसमे हमने सालों साल परीक्षाएं दी हैं! सुबह पेपर देने जाने का भय आज तक हौवा बनकर डरा देता है!

इन सब प्रश्नों के उत्तर तो मेरे पास नहीं हैं! लेकिन ये महसूस किया है कि सूरज कि किरणों में कुछ जादू है जो उत्साह जगाता है! मई की चिलचिलाती धूप में आप बार बार पसीना पोंछते हुए , सूखे गला लिए अपने काम पर जाते हैं....कितनी भी खीज क्यों न आये मगर निराशा पास नहीं फटकती है! औरों के अपने अलग अनुभव हो सकते हैं मगर मुझे तो हमेशा यही महसूस हुआ है! अपने अनुभवों से मैंने जाना है की जब भी मन उदास हो तो खाली और चुपचाप नहीं बैठना चाहिए! खुद को व्यस्त रखना उदासी भगाने का सबसे अच्छा तरीका है! एक बार की बात है ॥ऐसे ही खिन्न मन से मैं घर में चुपचाप बैठी हुई थी! लग रहा था ....जिंदगी निरर्थक है और शायद अब ख़ुशी वापस नहीं आएगी! उसी वक्त कंट्रोल रूम से फोन आया की मेरी ड्यूटी कॉन्स्टेबल भरती में लगी है और तुंरत मुझे ग्राउंड पहुंचना है! झटपट तैयार होकर मैं पहुंची और लगातार दस घंटे परीक्षार्थियों की हाईट , चेस्ट नपवाते नपवाते कब अँधेरा हो गया कुछ पता न चला! इस दौरान एक सेकंड की फुर्सत नहीं थी! जब घर पहुंची तो थक कर चूर हो चुकी थी! और सुबह की निराशा का अंश मात्र भी शेष नहीं था! और मैंने खुद को हमेशा की तरह खुश और उत्साह से भरा हुआ पाया!

शायद बहुत कुछ अव्यवस्थित सा लिखे जा रही हूँ मैं...पर कभी कभी बिना सोचे जो दिल में आये बस लिखते जाना अच्छा लगता है! मुझे भी सुकून भरा लग रहा है ...आज मैं फिर से दिन में सोयी और दिन ढलने पर उठी! आज न लिखती तो कल शायद न लिख पाती! कुल मिलाकर अब जो महसूस कर रही हूँ वो ये की बहुत कुछ खराब घटने के बाद भी जिंदगी बेहद खूबसूरत है! हमारे और मौत के बीच में लगातार एक कॉम्पटीशन है की कौन इसे ज्यादा प्यार करता है! अगर हमारे प्यार में ज़रा भी कमी हुई तो वो इसे हमसे छीनकर ले जायेगी! तो चलिए इसे पहले से भी ज्यादा प्यार करें.....

Tuesday, March 31, 2009

जब कोई महबूबा चांदनी ओढ़कर उतरती है तो कैसी लगती है....


सुबह मेहँदी महक रही थी बिस्तर पर
मैं तो रातरानी सिरहाने रखकर सोया था
होंठों पर गर्म साँसें अभी भी दहक रही थीं
और पलकों पर आज फिर एक मोती झिलमिलाया था
खुली खिड़की से जब झाँका था मैंने तो
आसमा के आखिरी कोने पर लहराता दिखा था
तुम्हारा रेशमी आँचल ,
जिसका एहसास रात भर मदहोश किये था

या खुदा...मुझे इल्म है
तुझे भी वो प्यारी थी मेरी तरह
और बुला बैठा तू उसे अपने पास
मगर....एक काम कर मेरा
उड़ा दे मेरी रातों की नींद
तड़पने दे मुझे तमाम उम्र
कम से कम एक बार तो देख सकू
जब कोई महबूबा चांदनी ओढ़कर उतरती है
तो कैसी लगती है....

Thursday, March 12, 2009

घासीराम मास्साब की जिंदगी का एक दिन


आज नल आने का दिन है....घासीराम मास्साब की कसरत का दिन! पूरी टंकी भरने के लिए डेड सौ बाल्टी भरकर ऊपर दूसरी मंजिल पर लाना कोई जिम जाने से कम है क्या? हाँ...ये अलग बात है की इस कसरत से घासीराम मास्साब के दाहिने हाथ की मसल तो सौलिड बन गयी पर बाया हाथ बेचारा मरघिल्ला सा ही है! सो अब मास्साब फुल बांह की बुश्शर्ट ही पहनते हैं! पांच बजे से बाल्टी चढानी शुरू की...अब जाके साढ़े छै बजे टंकी भरी! इस नल के चक्कर में मास्साब मंजन कुल्ला भी न कर पाए....ऊपर से मास्टरनी की चें चें...मास्साब को कितने दिन हो गए पानी भरते भरते पर आज तक सीढियों पर पानी गिराए बिना बाल्टी ऊपर चढाना न सीख पाए! मास्टरनी को भोर की बेला में भड़कने में महारत हासिल है! सूरज की किरणें, ओस की बूँदें, तितली, वगेरह वगेरह.. सुबह को आनद दायक बनाने वाले सारे आइटम मिलकर भी मास्टरनी की सुबह को कभी सुहानी न बना पाए! मास्टरनी के चिडचिडे स्वभाव से खुशियों को धराशायी होते दो पल नहीं लगते! खैर..मास्साब को सात बजे स्कूल जाना है सो मास्टरनी की चें चें पें पें को दर किनार करते हुए जल्दी जल्दी मंजन करा और चाय गटक कर निकल पड़े स्कूल की और!स्कूल पहुँचते ही मास्साब जल्दी जल्दी लपके मैदान की और जहां प्रार्थना प्रारंभ हो चुकी है...मास्साब ने अपने गंजे सर के आजू बाजू के बाल संवारे और हैड मास्टर के बगल में खड़े हो गए....हैड मास्टर ने घूरा की लेट काहे आये हो? मास्साब ने समझ कर दीन हीन सा मुंह बनाया और हाथ से बाल्टी पकड़ने का इशारा किया! हैड मास्टर ने मुंह बिचका दिया की ठीक ठीक है! घासीराम मास्साब पुरे वोल्यूम में प्रार्थना गा रहे हैं...." हे शारदे माँ....हे शारदे माँ " हैड मास्टर ने पुनः घूरा कि गला जरा कम फाडो ! मास्साब ने टप्प से मुंह बंद कर लिया! सिर्फ होंठ हिलते रहे! प्रार्थना ख़तम हुई....बच्चे लाइन बनाकर कक्षाओं की ओर चल पड़े! दस कदम तक लाइन चली फिर चिल्ल पों करते झुंड ही झुंड नजर आने लगे! अब किसी मास्टर के बाप के बस की नहीं है की इन होनहारों की लाइन दुबारा बनवा दे!

आहा ..क्या सुहाना द्रश्य है कक्षा का! घासीराम मास्साब कुर्सी पर बिराज चुके हैं! छात्र छात्राएं भी आकर टाट पट्टियों पर अपना स्थान ग्रहण कर चुके हैं!मास्साब ने जम्हाई लेते हुए बच्चों को पंद्रह मिनिट का समय दिया है ताकि सब अपनी अपनी जगह पर बैठ जाएँ! " गोपाल...." मास्साब ने आवाज लगायी! गोपाल कक्षा का मॉनिटर है...आवाज़ सुनते ही हाजिरी का रजिस्टर लेकर खडा हो गया! और मास्साब की तरफ से हाजिरी लेने लग गया! हाजिरी लेने भर से गोपाल अपने आप को आधा मास्टर समझता है....और घासीराम मास्साब का आधा काम कम हो जाता है! दोनों प्राणी खुश.. हाजिरी के बाद मास्साब ने घडी देखी! साला अभी भी आधा घंटा बाकी है! मास्साब बार बार सहायक वाचन की किताब खोलते हैं फिर बंद कर देते हैं....इत्ता आलस आ रहा है की मन ही नहीं कर रहा पढाने का! जम्हाई पे जम्हाई...अंत में मास्साब आगे बैठे बच्चे से कहते हैं...."चलो पढना शुरू करो जोर जोर से और जैसे ही दस लाइनें पढ़ लो अपने पीछे वाले को दे देना...मुझे कहना न पड़े!"लो जी ....मास्साब ने ऑटो मोड में डाल दिया कक्षा को! अब झंझट ख़तम...आधा घंटे तक बच्चे ही बक बक करते रहेंगे! मास्साब ने चश्मा पहन लिया...एक आध झपकी आ भी गयी तो अब सारा इंतजाम हो चूका है!

आगे बैठे खुशीराम ने पढना शुरू किया " एक थी चुरकी...एक थी मुरकी...."! ख़ुशी राम पढ़ रहा है! उसके पीछे बैठा गोपाल अपनी बारी के इंतज़ार में ठुड्डी पर हाथ धरे बैठा है! बाकी क्लास क्या करे....? कमला सरिता की चोटी खोलकर फिर से गूँथ रही है!कलुआ बोर हो रहा है सो सबसे पीछे बैठे बैठे टाट पट्टी को ही चीथे जा रहा है! कलुआ ने बोर हो हो के टाट पट्टी आधी कर दी है क्लास के पीछे कोने में टाट पट्टी की सुतलियों का ढेर लगा है! ढेर भी बड़े काम की चीज़ है....उस पर मजे से बैठा स्कूल का पालतू कुत्ता कचरू चुरकी मुरकी की कहानी सुन रहा है...संभवतः वही एकमात्र श्रोता है जो पढने वाले की मेहनत को सफल बना रहा है! प्रताप बुद्धू सरीखा मास्स्साब को एकटक देखे जा रहा है....जाने पी.एच. डी. ही कर मारेगा क्या? उसकी आँख मास्साब पर से नहीं हटती है! अचानक वो बगल वाले बजरंग से कहता है..." देखना अब सर लुढ़केगा मास्साब का" ! बजरंग जैसे ही मास्साब को देखता है...दन्न से मास्साब का सर कंधे पर लुढ़क जाता है!सारी कक्षा जोर से हंसती है! मास्साब चौक कर जाग गए हैं और गुस्से में हैं..." ए प्रताप तू ज्यादा पुटुर पुटुर मत किया करे!पढने लिखने में नानी मरती है तेरी....चल खडा हो जा " प्रताप बिना देर किये खडा हो गया है! बजरंग उसके पैर में चिकोटी काटता है! मास्साब अभी जगे हुए हैं और क्रोधित भी हैं.....एक चौक का टुकडा उठाकर मारते हैं बजरंग के सर पर !बजरंग के सर पर चौक पट्ट से पड़ी! अब मास्साब अपनी सारी चौक ख़तम करेंगे....उन्होंने कई टुकड़े करके रख लिए हैं! जगन पढ़ रहा है...." चुरकी ने मुरकी से कहा....." अबे , अभी तक ख़तम नहीं हुई तेरी चुरकी मुरकी!" हो गयी...मास्साब तीसरी बार चल रही है! जगन खी खी करदिया! मास्साब की चौक तैयार थी.....निशाना साधकर फेंकी जगन पर....जगन ने सर दायीं तरफ झुका लिया!चौक जाकर पड़ी उषा की नाक पर!उषा तिलमिला गयी....यूं भी सबसे लडाकू लड़की ठहरी क्लास की!भें भें करके रोना शुरू कर दिया! अब मास्साब घबराए! सिटपिटाते हुए बिटिया बिटिया करते पहुंचे उषा के पास!" मैं आपकी शिकायत अपने पापा से करुँगी....देख लेना! मेरेको कित्ती लग गयी!" उषा को बड़े दिनों बाद मौका मिला था मास्टर से उलझने का!वैसे भी क्लास के बच्चों के लड़ लड़के उकता गयी थी! मास्साब पूरे जतन से उषा को मनाने में जुट गए हैं...अभी उषा के पिताजी आयेंगे! पूरा स्कूल सर पर उठा लेंगे!उषा का लडाकू स्वभाव उसके पिता से ही उसमे ट्रांसफर हुआ है! मास्साब को पसीना आ गया उषा को मनाते मनाते पर उषा सुबक सुबक के ढेर करे दे रही है!मासाब उषा के आंसू पोछते हैं...वहाँ तक तो ठीक है पर अब नाक भी पोंछनी पड़ रही है! उषा भी रो रो के अब बोर हुई! आंसुओं की आखिरी खेप जैसे ही पूरी हुई...उषा के मुंह से निकला " एक तो अगले हफ्ते तिमाही परीक्षा है ..उसकी तैयारी भी नहीं कर पायी थी ऊपर से आपने मेरी नाक में दे दी!अब मैं क्या करुँगी?" मास्साब बिना एक भी क्षण की देरी किये बोले " अरे...बिटिया तू क्यों चिंता करती है परीक्षाओं की!मैं सब देख लूँगा तू तो मजे से रह!" उषा रानी अन्दर से भारी प्रसन्न हुईं पर प्रत्यक्ष में ऐसा मुंह बनाया मानो मास्साब पे एहसान पेल रही हों पढाई न करके! चलो अंततः उषा प्रकरण समाप्त होता है!

मास्साब फिर से कुर्सी पर बैठकर घडी देखने लग गए हैं! अब वो प्रतीक्षित क्षण आ गया है जिसका बच्चों और मास्साब दोनों को इंतज़ार था! आखिर घंटी बज गयी....एक पीरियड ख़तम हुआ! बच्चे एक दूसरे के ऊपर चौक और कागज़ वगेरह फेंक फेंक कर ऊधम करने में लग गए हैं!मास्साब दूसरा पीरियड लेने के पहले अध्यापक कक्ष में जाकर थोडा सुस्ता रहे हैं!पढ़ा पढ़ाकर मास्साब का सिर दुःख गया है! इसी प्रकार मास्साब ने कड़ी मेहनत से पढ़ाकर और सुस्ता कर दिन निकाल दिया है!

चलो...एक दिन की तनखा पक गयी....कहते हुए छुट्टी के बाद मास्साब घर पहुँच गए हैं! घर पर सब्जी का थैला बेताबी से मास्साब का इंतज़ार कर रहा है! मास्साब को घर पर गुस्सा होने या खीजने की सुविधा प्राप्त नहीं है!लगभग रिरियाते हुए मास्टरनी से बोले " अरे...जरा सांस तो ले लेने दो! थोडा फ्रेश तो हो लूं!" मास्टरनी गुर्राई " सब्जी लाने में तुम्हारी सांस रुक जायेगी क्या? और..ये फ्रेश व्रेश तुम स्कूल से ही होकर क्यों नहीं आते हो? अब देर न करो और जाओ...." मास्साब आदेश के पालन में चल पड़े सब्जी लाने!सब्जी लाकर रखी....!मास्टरनी द्वारा बताये गए अन्य घरेलु कार्यों को भी कुशलता से पूर्ण करने के बाद स्कूल के बच्चे ट्यूशन पढने आ गए!यही एक घंटा ऐसा था जब मास्साब को घर के कामों से मुक्ति मिलती थी...अरे इसलिए नहीं कि मास्साब पढ़ने में व्यस्त हो जाते थे! बल्कि चंदू, प्रकाश, मनोहर ,दीन दयाल आदि बच्चे मास्साब के हिस्से का कार्य ख़ुशी ख़ुशी कर देते थे! उन्हें कौन सा पढने में भारी रस आता था!घर कि छत धोकर,मास्साब कि लड़कियों के लिए बाज़ार से मैचिंग की बिंदी चूड़ी लाकर,मास्टरनी का धनिया साफ़ करके ही उन्हें परीक्षा में संतोष प्रद नंबर मिल जाते हैं!अच्छे नंबरों के लिए किताबों में सर खपाने की कोई ज़रुरत नहीं पड़ती!

शाम के वक्त मास्टरनी भजन मण्डली के सक्रीय सदस्य के रूप में मंदिर जाती हैं...जहां सक्रियता से अच्छे स्वास्थ्य हेतु निंदा रस का सेवन किया जाता है!इस खाली समय का उपयोग मास्साब आराम फरमाने में करते हैं!आज मास्साब रात की नींद भी अच्छी प्रकार से लेंगे क्योकी कल नल नहीं आएगा! मास्साब के चार बच्चे हैं...जिनमे सबसे छोटा पिंटू चार साल का है और पूरे समय मास्साब की गोद में लटका रहता है!बाकी बड़े बड़े हैं...मास्साब की उन्हें कोई ज़रुरत नहीं है! इसी एक घंटे में मास्साब टी.वी. पर समाचार देख लेते हैं! मास्टरनी के आने के बाद सीरियलों का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है! खैर मास्साब की जिंदगी का कोई भी दिन उठाएंगे तो बिना किसी परिवर्तन के सेम टू सेम यही दिनचर्या देखने को मिलेगी!फर्क केवल इतना है की जिस दिन नल नहीं आएगा मास्साब को सुबह में एक घंटा और सोने को मिलेगा!


नोट- ये कहानी पूरी तरह वास्तविक धटनाओं पर आधारित है!कुछ जीवित व्यक्तिओं से इसका गहरा सम्बन्ध है!वास्तविक पात्र भी पढ़कर पूरा आनंद ले सकें, इस प्रयोजन से पात्रों के नाम परिवर्तित कर दिए गए हैं!

Wednesday, February 25, 2009

बस हमें लग गया सो लग गया....क्या कर लोगे हमारा

कल की ही तो बात है!एक परिचित बातों बातों में कह उठे..." कल शाम को आते हैं आपके घर" ठीक साहब,,आ जाइये" अब कल शाम भी आई! हम बाकी सारे प्रोग्राम निरस्त करके बैठे हैं साहब का इंतज़ार करते!शाम गहराने लगी...हम इंतज़ार करते रहे!फोन लगाने की कोशिश की ..मगर वो लगे नहीं!शाम और गहराई, अब रात कहलाने लगी मगर साहब न आये! रात को फोन भी लग गया!हमने पूछा ...आप आये नहीं?" उधर से जवाब आता है " अरे...हमें लगा आप नहीं होंगी घर पर ,इसलिए फिर नहीं ही आये"
" अरे..कैसे नहीं होंगे घर पर? ऐसा आपको क्यों लगा?" न चाहते हुए भी झुंझलाहट आ ही गयी!
" बस ..ऐसे ही लगा"
" अरे...ऐसे कैसे लगा? कोई लगने का कारण भी तो होगा?"
" अरे..नहीं कोई कारण नहीं! कहा ना.. बस ऐसे ही लगा" साहब भी लगता है हमारे निरर्थक प्रश्न से खीज गए!
ठीक है भैया...अब क्या कहें! धर दिया हमने भी फोन!
पर सही में इन लगने वालों से भारी परेशान हैं! दुनिया में हर बीमारी का इलाज हो सकता है पर ये लगने की बीमारी का कोई इलाज नहीं है! ऑफिस में बाबू से पूछो.." जानकारी तैयार हो गयी?" जवाब मिला .." नहीं क्योकी उन्हें लगा की शायद दो दिन बाद देनी है" अब आप तर्क ढूंढते फिरो की भाई साब जब तारीक आज की डाली है की आज ही तैयार करके देना है तो आपको कैसे लग गया?" उन्हें तो बस लग गया सो लग गया!

हमारे क्लास में एक लड़की जब चाहे तब होमवर्क करके नहीं लाती थी....कारण उसे जब चाहे लगता रहता था की शायद आचार्य जी आज स्कूल नहीं आयेंगे ! अगर आपने पूछने की धृष्टता कर दी की हे अन्तर्यामी बालिका ...तुझे ऐसा क्यों कर लग गया जबकि हमारे आचार्य जी ना बीमार दिखाई दे रहे थे कल और ना ही उन्होंने जिक्र किया की उनकी किसी संतान की साल गिरह है ! "
हर लगने की बीमारी से पीड़ित मरीज की तरह एक ही जवाब...." बस ऐसे ही लगा" अब आप निरुत्तर! अब चाहे खम्बा नोचो या अपने सर...इससे ज्यादा कुछ ना उगलवा पाओगे! हमने गौर किया की ये लगना भी दो प्रकार का होता है....एक तो वो जिसमे लगने के पीछे कोई कारण होता है कि भैये इस कारण से हमें ऐसा लगा!चलो इस प्रकार का लगना तो स्वीकार्य है लेकिन ये दूसरी तरह का लगना ज्यादा खतरनाक होता है जिसमे सारी बात बस यही आकर ख़तम हो जाती है कि " बस ..ऐसे ही लगा"
एक महोदय ने सारी गर्मी आम इसलिए नहीं खाए क्योकी उन्हें लगा कि शायद आम इस बार बहुत मंहगे होंगे! बिना भाव जाने पूछे उन्हें बस लग गया! घर से बाहर गुज़रते ठेले पर लादे आम और हांक लगते ठेलेवाले को देखकर भी भाव पूछने कि इच्छा नहीं जागी....कैसा विकट शक्तिशाली होता होगा ये लगने का भाव!

एक और ऐसे ही महानुभाव से हमारा परिचय तब हुआ था जब हम कॉलेज में संविदा पर पढ़ा रहे थे! मनोज शर्मा नाम के सज्जन भी वही पढने पधारे! कॉलेज में नए प्रिंसिपल आये थे सो हम सब संविदा वाले लेक्चरार उनसे मिलने पहुंचे...हम सब ने अपना परिचय दिया सिवाय शर्मा जी के! उन्होंने तभी अपना शुभ नाम बताया जब प्रिंसिपल ने पांच मिनिट इंतज़ार करने के बाद खुद ही पूछा की आपका परिचय भी दे ही दीजिये! जब बाद में हमने उनसे कारण पूछा की श्रीमान जी आपने अपना परिचय क्यों नहीं दिया खुद से? तो शर्मा जी न गर्व से बताया की वे कभी किसी को खुद से अपना नाम नहीं बताते क्योकी उन्हें लगता है की अगर उन्होंने किसी को कहा की मैं मनोज शर्मा हूँ और सामने वाले ने कह दिया की " मनोज शर्मा हो तो अपने घर बैठो" तो क्या इज्जत रह जायेगी!
अब प्रश्न बनता है की हे बुद्धिमान प्राणी कोई नाम बताने पर ऐसा क्यों कहेगा तो हर लगने की बीमारी से ग्रसित मानव की तरह एक ही जवाब....बस हमें ऐसा लगता है!" अब कर लो आप क्या कर लोगे!

और अपनी व्यथा कहाँ तक लिखूं ....कहीं ऐसा न हो की आप को लगने लगे की पता नहीं आज की पोस्ट हम कितनी लम्बी खींचने वाले हैं! पर आपको ऐसा क्यों लगेगा? क्या आज से पहले कभी हमने इत्ती लम्बी पोस्ट लिखी? खैर लगने का क्या है...हमें पता है आपका उत्तर! आपको बस ऐसे ही लगा न......?

Sunday, February 22, 2009

बेवफाई जुर्म क्यों नहीं ?


" क्या दिल टूटने से चोट नहीं लगती? क्या किसी की भावनाओं के साथ खेलने की कानून में कोई सजा नहीं है? क्या दिल पर लगी खरोंच शरीर पर आई खरोंच से कम दुःख देती है?" उसकी आंसुओं
से भीगे प्रश्न लगातार मेरे जेहन पर हथौडे की तरह पड़ रहे हैं! वो आज आई थी मेरे ऑफिस में.....दुखी, परेशान....बात बात पर आंसू छलक उठते थे! भर्राए गले से वो बोलती जा रही थी!मैं चुपचाप सुनती जा रही थी! उसे धोखा मिला था! तीन साल तक साथ जीने मरने की कसमे खाने वाले उसके बॉय फ्रेंड ने अचानक कहीं और सगाई कर ली थी! किसी तीसरे से उसे उसकी सगाई के बारे में पता चला ....और पूछने पर बॉय फ्रेंड का जवाब था- " बी प्रैक्टिकल यार...ये सब तो चलता है!अब मेरे मन में तुम्हारे लिए पहले जैसी फीलिंग नहीं हैं...हम बस अच्छे दोस्त हैं!" इतना कहकर लापरवाही से सर झटक कर वो चल दिया अपने रास्ते!शायद इसके बाद लड़की का फोन उठाने की ज़हमत भी नहीं की उसने!और लड़की उसी दिन से डिप्रेशन में है.....कभी वो पुरानी बातें याद करती है...कभी जानने की कोशिश करती है की आखिर उसके प्यार में कहाँ कमी रह गयी...कभी किसी तांत्रिक के पास जाती है की शायद कोई वशीकरण मन्त्र हो जो उसे प्यार को वापस उसकी और ला सके! पिछले दो महीने में पांच किलो वज़न कम कर चुकी है अपना! रात को नींद की गोली खाए बिना सो नहीं पा रही है!और आंसुओं का तो कोई हिसाब ही नहीं है! ये सब मुझे उसके साथ आई उसकी मां ने बताया!

सलाह देना कितना आसान होता है....मैंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की! जो जो भी बातें उसे जिंदगी की राह पर आगे बढ़ने के लिए मैं कह सकती थी..मैं कह रही थी! वो हाँ में सर हिलती....फिर कुछ ही पल में उसकी सिसकियों के साथ मेरे सारे उपदेश बह जाते! अचानक हिचकी भरी आवाज़ से उसने मुझसे पूछा " अगर कोई किसी को डंडे से मारे तो क्या अपराध बनेगा?" मैंने हाँ में सर हिलाया! उसका अगला प्रश्न था " डंडे की चोट कितने दिन में ठीक हो जायेगी?" मैंने कहा ...कुछ दिनों में!
उसने अपनी सूजी हुई आँखों से मेरी तरफ देखा और बोली " क्या मेरे दिल पर जो चोट लगी है...उससे ज्यादा चोट डंडे से मारने से लगती है? डंडे का घाव तो कुछ दिन में भर जायेगा...मेरे दिल पर लगे ज़ख्म जो पता नहीं कब भरेंगे...उसका कुछ भी नहीं? " क्या जो मेरे साथ हुआ वो शारीरिक प्रताड़ना से कम कष्टदायी है? फिर किसी का दिल तोड़ना अपराध की श्रेणी में क्यों नहीं आता?" मैंने उससे कहा ...अगर उस लड़के ने तुम्हारे साथ कोई ज्यादती की है या तुम्हारा शारीरिक शोषण किया है तो ये अपराध है! लड़की बीच में मुझे टोकती हुई बोली...." यानी की अपराध तभी होगा जब शरीर को चोट पहुंचे...वैसे उसने मेरे साथ कोई ज्यादती नहीं की है" इस बार उसकी आवाज़ में शिकायत और तल्खी दोनों ही थे!

थोडी देर सब खामोश रहे....फिर वो उठी और बोली " अब मैं चलती हूँ!" मैंने धीरे से सर हिला दिया! जाते जाते वो पलटी और बोली " शायद मैं धीरे धीरे इस स्थिति से उबर जाऊं पर अब किसी पर विश्वास नहीं कर पाउंगी....और शायद शादी भी न करून! काश आपके कानून में बेवफाई भी जुर्म होती ! "

मैं फिर अपने कमरे में अकेली बैठी थी....कागजों पर साइन भी करती जा रही थी पर उसका आंसू भरा चेहरा न तो हटता था आँखों के सामने से और न ही उसकी सिसकियों की आवाज़ कानो से अब तक अलग हो पायी है! सोचती हूँ वाकई उसके प्रश्न कितने जायज़ हैं! बेवफाई न तो कोई जुर्म है और न ही उसकी कोई सजा!

Friday, February 6, 2009

माँ...अब मैं बड़ा हो गया हूँ

मुर्गा मुर्गी प्यार से देखें,नन्हा चूजा खेल करे
कौन है जो आकर के मेरे,मात पिता का मेल करे

" दो कलियाँ " फिल्म का ये गाना सुनते ही मेरी एक दोस्त की आँखें भर आती थीं! और अच्छे खासे हंसते खेलते चेहरे पर गहन पीडा दिखाई देने लगती थी! उसके मम्मी पापा बचपन में ही एक दुसरे से अलग हो गए थे! वो अपनी मम्मी के पास रहकर ही बड़ी हुई! पापा के पास कभी छुट्टियों में जाना हुआ लेकिन पापा की दूसरी पत्नी की मौजूदगी के कारण अपने आपको एक मेहमान की तरह ही महसूस करती रही! हम लोग हमेशा बचते थे की उसके सामने अपने पापा के बारे में बात न करें क्योंकि ऐसे वक्त में उसे नज़र बचाकर आंसू पोंछते हमने देखा था! मेरी उम्र की मेरी दोस्त जिसके आज दो बच्चे हैं आज तक अपने अधूरे बचपन को नहीं भुला पायी! आज भी एक शिकायत भगवान् से और अपने माँ पिता से उसके दिल में गाँठ बनकर रहती है! माँ ने लाख चाहा की पिता की कमी महसूस न होने दे लेकिन अकेले अपनी जिम्मेदारी निभाती माँ कब गुस्सैल और चिडचिडी हो गयी उसे खुद पता न चला! अपनी उस दोस्त के लिए हमेशा मुझे भी उतना ही दुःख होता रहा! इसके बाद मन्नू भंडारी की किताब " आपका बंटी" पढ़ी! ऐसा लगा बंटी के रूप में अपनी दोस्त को ही देख रही हूँ! लगा जैसे सारा उपन्यास मेरी दोस्त की जुबानी सुन चुकी हूँ! बस केवल किरदार बदल गए हैं! इसके बाद जैसे सारे वो बच्चे जो माँ बाप के अलगाव की सजा भुगत रहे हैं.....बहुत दयनीय से लगने लगे!उसी वक्त जेहन में जो कुछ कौंधा ,कुछ यूं पन्ने पर आया!

माँ...अब मैं बड़ा हो गया हूँ
मैं जानता हूँ कि
तुझे बहुत फिक्र रहती है मेरी क्योकि
तुझे लगता है मैं छोटा हूँ अभी...

पर माँ..याद है तुझे
कल दीवार पर मैंने ही तो कील लगायी थी
तेरे ऑफिस से आने के पहले
मैंने अकेले ही बिस्तर की चादर बदली थी
कल ही तो दूध का पैकेट खरीद कर लाया था
और पैसे भी नहीं गिराए थे

माँ..मुझे पता है कि
पापा तुझसे झगडा करके चले गए हैं
और ये भी कि..
तू उन्हें बहुत याद करती है
याद तो मैं भी करता हूँ
पर मैं रोया तो तू कैसे चुप रहेगी

माँ,तू रोज़ मुझे अपनी गोद में सुलाती है
एक बार मेरी गोद में सर रखकर देख
एक बार मेरी बच्ची बनकर देख
तुझे अच्छा लगेगा माँ...
तुझे याद है न माँ

मैंने महीनों से कोई शरारत नहीं की है
स्कूल के किसी बच्चे से झगडा भी नही
याद कर माँ...मुझे नही भाता दूध
पर कितने दिनों से चुपचाप पी रहा हूं

मुझे ध्यान से देख माँ
मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूं
तुझे खुश रखना चाहता हूं
मैं अब छोटा नही रहा माँ
पूरे दस साल का हो गया हूं
मैं अब बड़ा हो गया हूं माँ.....

भगवान किसी बच्चे को दस साल की उम्र में बड़ा न बनाए....

Sunday, February 1, 2009

राजस्थान यात्रा- एक शरारत भरी शुरुआत

१५ तारीख से राजस्थान यात्रा पर निकली हुई थी! !यात्रा ख़त्म हुई पर खुमार अभी तक छाया हुआ है....शायद अभी कुछ दिन और रहेगा!जाने कितनी बार फोटो देख चुकी हूँ!मम्मी ,दोनों छोटी बहने गड्डू और मिन्नी, साथ में गड्डू की दोस्त अस्मिता और उसकी मम्मी हम छै लोगों का गैंग निकल पड़ा था राजस्थान घूमने! हमारे डेस्टिनेशन थे जोधपुर,जैसलमेर,माउन्ट आबू और उदयपुर ! यात्रा इतनी मजेदार और रोचक थी की लिखे बिना रह ही नहीं सकती! खासकर यात्रा की शुरुआत ही बड़ी जबरदस्त थी! हम लोग भोपाल से जोधपुर ट्रेन से गए !उसके बाद से हर जगह बाय रोड जाना था!ट्रेन में बैठते ही मम्मियों समेत हम सब मौज मस्ती के मूड में आ गए!बैठते ही जो ठहाके लगने शुरू हुए डब्बे में हर कोई एक एक बार हमें देखकर गया!और कोई मौका होता तो शायद हम असहज महसूस करते मगर यहाँ तो किसी की कोई परवाह नहीं थी!हमारे साथ जयपुर के एक अंकल आंटी बैठे थे!उन्होंने कहा की आप लोगों के आने से अच्छा लगा वरना कब से बैठे बैठे बोर हो रहे थे!तब हमने गौर किया की वाकई अगर हम लोग दो मिनिट को भी चुप हो जाएँ तो डब्बे में ऐसी घोर शान्ति थी मानो कोई अपहरण करके ले जा रहा हो!खैर उनकी इस बात से हमारी मस्ती को और बल प्राप्त हुआ!मगर हर किसी को कहाँ किसी की ख़ुशी सहन होती है!हमारे अगले केबिन में बैठे एक सज्जन को हमारे ठहाकों से तकलीफ थे! वे अचानक हमारी तरफ मुडे और बोले " अगर आपकी आज्ञा हो तो हम सो जाएँ?" छोटी बहन ने तपाक से उत्तर दिया " अवश्य सो जाइए" ! उस वक्त रात के मात्र नौ बजे थे! हम सब का दिमाग खराब...ये आदमी अभी से ही हम पर पाबंदी लगा रहा है!हमारे सपोर्ट में सामने बैठी जयपुर वाली आंटी आई और बोलीं " हम तो ग्यारह बजे खाना खाते हैं उसके बाद ही सोयेंगे!" हम खुश...जागने की एक वजह मिल गयी थी! जैसे तैसे वो सज्जन शांत हुए इतने में अगली साइड लोअर बर्थ पर लेटी एक आंटी बिफर गयीं " अब सब लोग बत्ती बंद करो और सो जाओ, मुझे सोना है!" अस्मिता बोली.." आप सो जाओ, हम लोग अभी से नहीं सोयेंगे!" आंटी ने इतनी भयंकर नफरत से हमें देखा की एक पल को तो हम सब सहम कर चुप हो गए!इतने में किसी के मोबाइल पर गाना बजा " अल्ला के बन्दे हंस दे.." इतने सुनना था की सब के सब फुल वोल्यूम में हंस दिए!आंटी क्रोध से उठ बैठीं!हमने इग्नोर मार दिया!इस यात्रा में हमने तीन चीज़ें नयी ईजाद की...इग्नोर मारना,अवोइड मारना और नेगलेक्ट मारना!सभी में चेहरे के एक्सप्रेशन अलग होते हैं!

खैर थोडी देर और हमने बातें कीं लेकिन आंटी जी की फटकार से थोडा डरे डरे भी थे! अब बातचीत खुसुर फुसुर में हो रही थी! आंटी जी ने अपनी बत्ती बुझाई और सो गयीं! हम दबे दबे हँसते रहे! इतने में धडाम की आवाज़ आई....ये क्या? देखा तो आंटी जी ने करवट बदली थी और नीचे गिर गयीं थीं!अब देखिये...हम बेचारों पर एक जुल्म और ढाया गया! खराबी करवट लेने की तकनीक में थी लेकिन इसका दोष आंटी ने हमारी बातों पर मढ़ दिया!" तुम लोगों की वजह से मैं गिर गयी...मार ही डालोगे क्या?" हम समझ ही न पाए की किसी की दबी दबी बातों की आवाज़ से कोई कैसे गिर सकता है! अंत में बहुत विचार विमर्श के बाद हमने खुद को क्लीन चिट दी की बातों से कोई नहीं गिरता है इसलिए फालतू का गिल्ट लादने की कोई ज़रुरत नहीं है! पर आंटी के गिरने के बाद हम सब खामोश हो गए और सो गए!

सुबह उठे तो जयपुर निकल चुका था!और अच्छी खासी ट्रेन पैसेंजर का रूप धारण कर चुकी थी!जयपुर से जोधपुर तक का सफ़र बार बार रुकते रुकाते करीब ७ घंटे में तय किया जबकि ४ घंटे में आराम से पहुंचा जा सकता है! जयपुर के बाद महसूस होने लगा था की अब राजस्थान में आ गए हैं!कोई खेत नहीं...कोई बड़े पेड़ नहीं!दूर दूर तक उजाड़ मैदान और कंटीले पौधे!पता चला की राजस्थान में लोग इतने कलरफुल कपडे इसलिए पहनते हैं ताकि हरियाली और वनस्पति न होने कि नीरसता से बचा जा सके! खैर दस बजे आंटी जी भी उठ गयीं...बाकी का सारा टाइम उन्होंने अपने झोले में लाये गए खाद्य पदार्थों का सेवन करने में खर्च किया! जोधपुर आते आते डब्बे में केवल ३-४ पैसेंजर ही रह गए थे!सो खाली डब्बे का फायदा उठाकर लगे हाथों ट्रेन में एक फोटो सेशन भी कर लिया!फोटो अपलोड करने में कुछ समस्या आरही है वरना ट्रेन का नज़ारा यहाँ ज़रूर दिखाती! दोपहर डेढ़ बजे हम लोग जोधपुर पहुँच गए!

इस बार ट्रेन यात्रा का विवरण....नेक्स्ट पोस्ट में आगे कि यात्रा के हाल लिखूंगी! जब तक आप हमसे या आंटी जी कि व्यथा से खुद को रिलेट कर सकते हैं!कई लोगों ने ऐसी यात्रा की होगी जो या तो हमारी तरह डांट खाए होंगे या आंटी की तरह दूसरों की मस्ती से परेशान हुए होंगे!अगली पोस्ट तक के लिए विदा....

Monday, January 5, 2009

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें.....


मैं न्यू मार्केट जाती हूँ..गाडी से उतरने लगती हूँ इतने में मेरा मोबाइल बजता है! मैं नहीं उठाती, दो बार पूरी रिंग बज जाती है! तीसरी बार मैं उठाकर बात करती हूँ....अभी तक पार्किंग में ही खड़ी हूँ!बात करने के बाद आगे बढ़ने लगती हूँ इतने में देखती हूँ की एक छोटा बच्चा चेहरे पर मुस्कराहट लिए मेरी ओर देख रहा है! शायद यहीं कुछ काम करता होगा....उसके मैले फटे कपडे देखकर मैं अंदाजा लगाती हूँ! मैं आँखें उचका कर पूछती हूँ " क्या चाहिए? आइसक्रीम खायेगा?" बच्चा थोडा बेतकल्लुफ होकर झिझकते हुए कहता है " एक बार मोबाइल में गाना सुनाओगी?" " कौन सा गाना?" बच्चा करीब आकर कहता है " अभी जो बज रहा था, पल पल पल हर पल, मुझे बहुत पसंद है!" ओह ये मेरे मोबाइल की रिंग टोन के बारे में बात कर रहा है! मैं दो बार उसे गाना सुनाती हूँ.....वो बहुत खुश है! गाना सुनकर मुझे बाय
करके वो निकल जाता है!

मैं मार्केट में खरीदारी करते हुए भी सोच रही हूँ कि ख़ुशी बड़ी बड़ी चीज़ों कि मोहताज नहीं! एक गाना सुनकर वो बच्चा इतना खुश हो गया! शायद जिंदगी से हमें बहुत ज्यादा नहीं चाहिए होता है...वो तो हर कदम पर हमें गले लगाना चाहती है! हम ही उससे संतुष्ट नहीं होते जो वो हमें देती है!

दूसरी बात जो साथ साथ साथ मेरे दिमाग में चल रही है वो ये कि जिंदगी खुशियाँ बांटने का दूसरा नाम है! दूसरों को थोडी सी ख़ुशी देकर हम उस पर कोई एहसान नहीं करते बल्कि अपने दिल को सुकून से भरते हैं! किसी के चेहरे पर मुस्कान लाना खुदा की बंदगी का सबसे पाकीजा रूप है! और जहां तक हो सके ये मौका हमें कभी नहीं छोड़ना चाहिए!

अभी कुछ दिन पहले ही मैं पुलिस कर्मचारियों को स्ट्रेस मैनेजमेंट पढ़ा रही थी! मैंने उनसे पूछा की वे बताएं की उन्होंने कोई नेक काम पिछली बार कब किया था? १० मिनिट तक सोचने के बाद केवल दो हाथ उठे जिनमे से एक ने पच्चीस साल पहले भोपाल गैस काण्ड के वक्त किसी बूढे आदमी की मदद की थी और दुसरे ने सन २००० में एक विधायक की जान बचाई थी!
कितने हैरत की बात है न हमें कोई अच्छा काम किये हुए इतना वक्त बीत जाता है की हमें याद ही नहीं आता!

और दर असल हम सोचकर कोई अच्छा काम नहीं करते वो तो बस हमसे हो जाता है! मैंने शायद ही कभी किसी सुबह उठकर अपनी टू-डू लिस्ट में कोई नेक काम करना शामिल किया होगा! कई बार देखती हूँ बड़े बड़े अधिकारियों के छोटे छोटे बच्चे अपने से दोगुनी तिगुनी उम्र के अर्दलियों और ड्रायवरों को उनके नाम से बुलाते हैं....कितने कचोटता होगा उन्हें? उनके पढ़े लिखे माँ बाप जो सामाजिक कामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं और अखबारों में शान से फोटो छपवाते हैं, क्यों कभी नहीं सोचते कि उनके बच्चे अगर उनके मातहत कर्मचारियों को अगर भैया, दादा कहकर पुकारेंगे तो अपने पढ़े लिखे होने का ही सबूत देंगे और सबसे बड़ी बात किसी के आत्म सम्मान को बरकरार भी रखेंगे! बिना एक भी पैसा खर्च किये सिर्फ अपने व्यवहार से भी किसी को ख़ुशी दी जा सकती है!
जो माँ बाप दुनिया के भूगोल, इतिहास, विज्ञान के बारे में बच्चों को बड़ी बड़ी बातें सिखाना चाहते हैं...वे इंसानियत का पाठ पढाना क्यों भूल जाते हैं! कई बार लगता है जैसे अमीरी के साइड इफेक्ट के रूप में गुरूर और अहम् अपने आप चला आता है!

हर साल नए साल पर सोचती थी ...इस साल कुछ नया करुँगी, कोई नयी जगह देखूंगी या कोई अच्छी आदत डालूंगी पर इस साल सोचा है अगर पिछले साल की तुलना में जरा सा भी बेहतर इंसान बन पायी तो खुद को खुश किस्मत समझूंगी! निदा फाजली की ये लाइनें लगातार जेहन में चल रही है...
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
बाग़ में जाने के आदाब हुआ करते हैं, किसी तितली को न फूलों से उडाया जाए.....