Thursday, June 5, 2008

कुछ कच्चे पक्के से लम्हे



कुछ कच्चे पक्के से लम्हे
आज फिर वक्त की डाल से तोड़े
धोकर पोंछकर रख दिए हैं एक डलिया में
तुम्हारी नज़र कर रही हूँ....

चख के देख लेना
मीठे लम्हे तुम रख लेना
कड़वे मुझे वापस कर देना ,और
हो सके तो किसी एक को
अपने दांतों से आधा काट लेना
आधा मुझे दे देना
मिल बाँट कर खा लेंगे

जैसे पहले सेब खाया करते थे....

17 comments:

nadeem said...

सुबहान अल्लाह

कुश said...

भावनाओ से भारी प्यारी सी रचना..

रंजू भाटिया said...

हो सके तो किसी एक को
अपने दांतों से आधा काट लेना
आधा मुझे दे देना
मिल बाँट कर खा लेंगे

सुंदर भाव पूर्ण कविता है :)

Rajesh Roshan said...

सुंदर भाव

बालकिशन said...

सुंदर!
अति सुंदर!
खूब लिखा आपने.
बहुत बहुत बधाई.

Abhishek Ojha said...

वाह क्या बात है !

अमिताभ मीत said...

अच्छा लिखा है. बधाई.

डॉ .अनुराग said...

वो एक लम्हा .....जिसे काट कर दिया था तुमने ...
मैंने अभी तक संभाल कर रखा है .
कभी कभी उसमे से भीनी भीनी सी खुशबू
सारे घर मे फ़ैल जाती है.......

देखा हम भी शायर हो गये.......


पल्लवी....
बहुत खूबसूरत.....

Udan Tashtari said...

एक भी कड़वा नहीं निकला इसलिए सब रख लिए.

-बहुत ही उम्दा और गहरी रचना है.

mehek said...

bahed khubsurat un kachhe pakke khubsurat lamhon ki tarah

अजय कुमार झा said...

kyaa baat hai ,ye sebon kee laalee kaa ehsaas to itnaa sukhad laga ki kya kahein. haan mil baant kar khaayenge aur iskaa to hum sabko intzaar rahegaa.

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

मीठे लम्हे तुम रख लेना
कड़वे मुझे वापस कर देना ...

kuchh kahne ko baaqii nahiin hai...

समयचक्र said...

बहुत सुंदर बधाई

Alpana Verma said...

bahut sundar pallavi--guljaar sahab ka asar deeekh raha hai..

Anonymous said...

bahut khoob....

रश्मि प्रभा... said...

बहुत अच्छा लिखा है,गुजरा बचपन ,मोहक यादें कौंध गयीं..

अंशुमान सिंह said...

बहुत सुन्दर कविता लिखी है आपने. आगे इससे भी अच्छी कविता पढ़ने का मौका मिलेगा, ऐसी उम्मीद के साथ सुभकामनाये.