एक गरीब नन्हा सा बच्चा
टूटा हुआ,उदास,सहमा सा
बैठा है सर झुकाए
हथेलियों से अपना मुंह छिपाए
पिता ने बचपन में ही साथ छोड़ दिया
माँ ने भी कल जिंदगी से मुंह मोड़ लिया
कहाँ जाए ,क्या करे,
कुछ समझ नहीं आता है
जिंदगी की कड़ी धूप.कोई साया नहीं पाता है
खोया इन्ही विचारों में, आंसू पोंछता वो
चल दिया रोटी की तलाश में
चिलचिलाती धूप में एक बादल का टुकडा
लगातार चल रहा था उसके ऊपर
उसके मन से आवाज़ आई
ओह माँ, इसे तुमने भेजा है ना
आंसू भरी आँखों से ऊपर देखा उसने
बादल से भी एक बूँद गिरी और
आंसू से मिलकर गाल पर लुढ़क गयी....
टूटा हुआ,उदास,सहमा सा
बैठा है सर झुकाए
हथेलियों से अपना मुंह छिपाए
पिता ने बचपन में ही साथ छोड़ दिया
माँ ने भी कल जिंदगी से मुंह मोड़ लिया
कहाँ जाए ,क्या करे,
कुछ समझ नहीं आता है
जिंदगी की कड़ी धूप.कोई साया नहीं पाता है
खोया इन्ही विचारों में, आंसू पोंछता वो
चल दिया रोटी की तलाश में
चिलचिलाती धूप में एक बादल का टुकडा
लगातार चल रहा था उसके ऊपर
उसके मन से आवाज़ आई
ओह माँ, इसे तुमने भेजा है ना
आंसू भरी आँखों से ऊपर देखा उसने
बादल से भी एक बूँद गिरी और
आंसू से मिलकर गाल पर लुढ़क गयी....
18 comments:
bahut bhavuk....
yakin nahi hota ki usi pallavi ne likhi hai jisne "besgram ki santi" ya "mohalle ki prem kathayen" jaise lekh likhe hain...
u have vareity.... i m happy...
aise hi achha achha likhti raho... shubhkamnayez...
वाह पल्लवी जी क्या लिखा है आपने बहुत खुब यदि थोडी देर और पढता तो अपने देश में गरीबों की दशा का जो वृतांत आपने पेश किया है उसे पढकर महसूस करके अभी आंखे छलछला जातीं बहुत खुब आप बहुत अच्छा लिखते हैं आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं अब तो लगता है है आपका ब्लाग अपने पास सेव करना पडेगा ताकि बार बार बोले तो हर बार आपको पढूं बहुत खूब
BAHUT BADIYA LIKHA HAI.
बेहद मार्मिक. बहुत सुन्दर लिखा है. बधाई.
सुन्दर। यह तो है कि बाप ने छोड़ दिया, मां ऊपर चली गयी। पर मणियवां जैसे का क्या जिनके बाप ही एक्प्लॉइट करते हैं।
बहुत ही मार्मिक.. समाज का एक और पहलू दिखाया है आपने
bahut hi sawedanashil kavita,kahi sachhai bhi bayan karti,ankhen kaise num na hongi bahut sundar rachana badhai
bahut hi bhavpurna rachana pallavi ji..!
bahut hi sunder.dil ko chune waali kavita
यथार्थ मासूमियत !
निशब्द हूँ पल्लवी.....
समाज का एक मार्मिक रूप आपके इन लफ्जों में झलक गया है
बहुत सुन्दर लिखा है बधाई शुभकामनाएं.
चिलचिलाती धूप में एक बादल का टुकडा
लगातार चल रहा था उसके ऊपर
उसके मन से आवाज़ आई
ओह माँ, इसे तुमने भेजा है ना
कर्दिनाल ने कहा है जो प्रेम की कविता नहीं लिख सकता वो क्रांति की भी नहीं लिख सकता , निसंदेह आप इस दिशा में आपका यत्न सार्थक है .उक्त पंक्तियाँ बहुत बहुत ...आप लफ्जों में ब्यान नहीं कर सकते .
sach ko ek paribhashh mil gayi hai!
wah kya baat hai, man ko choo gayi ye rachna..
Moving..deeply emotional..n made me feel like doing sometthing abt this...u hv magic in ur words
Ye bebas Jindagi hi aisi hoti hai.
Post a Comment