आज खाली बैठे बैठे कोई पुस्तक पढ़ रहे थे उसमे लेखक ने कई जगह बार बार लिखा कि कुछ ऐसा करो कि दूसरों का दर्द कम कर सको तब ही जीवन सार्थक है...दिमाग पर पूरा जोर पेल दिया लेकिन पिछले कई बरसों में ऐसा कोई काम ध्यान नहीं आया जब हमने किसी का दर्द कम किया हो!कम करना तो दूर हमें तो किसी का दर्द सुनते भी बोरियत होती थी! लेकिन इस लेख ने सोयी आत्मा को जगाया और हमने सोचा हम भी किसी का दर्द बाँट कर अपना जीवन सार्थक कर लें... दर्द के बारे में सोचते ही कविवर दुखी मन "विरही" याद आ गए...नाम में ही इतना दर्द है इनसे ज्यादा दुखी कौन मिलेगा..चलो दिमाग पर ज्यादा जोर नहीं देना पड़ा..हम चल दिए उनके घर उनका ग़म बांटने!
दुखी मन "विरही" एक कविवर हैं जो न जाने कब से सिर्फ दर्द में सनी कवितायें ही लिखते आ रहे हैं...हम भी वक्त के मारे उनके जबरन के श्रोताओं में से हैं! उनकी कवितायें जब भी सुनो जाने कैसा कैसा लगने लगता है...ऐसा लगता है जैसे संसार की हर चल अचल वस्तु सिर्फ आंसू बहाने के लिए ही पैदा हुई है...बताते हैं की पहले कविवर ऐसे नहीं थे..एक बार प्यार में दिल विल टूट गया तब से कलम दर्द उगल रही है...
रात के दस बजे थे...हम चल दिए कड़ा मन करके कवि के घर! पता था कुछ कविताओं का डोज़ तो लेना ही पड़ेगा! रास्ते में उनके अक जिगरी दोस्त मिल गए ..जिनसे हमें पता चला कि कविवर इस समय पब में गए हुए हैं...कवि,दुखी,पब....कुछ तालमेल समझ नहीं आया पर घर से पक्का इरादा करके निकले थे कि आज तो दर्द बांटकर ही लौटेंगे...पहुँच गए पब में..
देखा तो कविवर जाम के घूंटों के साथ नृत्य देखने में मग्न थे...एक पल को तो हमें लगा कि शायद हमें आने में देर हो गयी हमसे पहले कोई और इनका दर्द बांटकर चला गया...
खैर..हम पहुंचे कवि के पास और पास ही खाली कुर्सी पर बैठ गए...कविराज ने जैसे ही हमें देखा एक पल को तो चौंक गए फिर उनके चेहरे पर वही ट्रेजेडी किंग वाले चिर परिचित भाव गहरा गए...हमें तसल्ली हुई..चलो अभी ग़म मरा नहीं हम नाहक ही परेशान हो रहे थे ये सोचकर कि दर्द बांटने का मौका हाथ से चला गया!
तुम यहाँ?" कवि आह सी भरकर बोले
बस..यूं ही आपका ग़म बांटने चला आया!
क्या बांटोगे तुम मेरा ग़म..मैं तो खुद ही टुकडों टुकडों में बँटा हुआ हूँ
मन की प्रसन्नता को छुपाते हुए हमने कहा "नहीं..आज हम आपका दर्द सुने बिना नहीं जायेंगे
बस..जिंदा हूँ, जीने की सज़ा भुगत रहा हूँ...
यहाँ पब में सजा भुगत रहे हैं...?हमसे पूछे बिना रहे नहीं गया!
तुम नहीं समझोगे..तुमने कभी प्रेम किया है"
नहीं...हमने न में अपने मुंडी हिलाई!
जब से ये दिल चाक हुआ है...
क्या हुआ है...?हमने बीच में टोका!
अरे...तुम नॉन शायर लोगों के साथ यही प्रोब्लम है..सारे मूड का कचरा कर देते हो..!" कविवर सुरूर में तो थे ही,भड़क गए!
अच्छा ,अच्छा ठीक है...समझ गए ..आगे बोलिए" हमने बिना समझे ही कहा!
तुमने सुना तो होगा ही कि ग़म का मारा आदमी कितना अकेला होता है
हाँ हाँ...सुना है ...तभी तो ये सोचकर कि आप अकेले सुनसान जगह पर बैठे आंसू बहा रहे होंगे ,हम चले आये आपके पास पर आप तो भीड़ भड़क्के मैं बैठे हैं...कहा हैं अकेले?
अरे...पहले के प्रेमी मूर्ख और अनपढ़ हुआ करते थे..नहीं जानते थे कि इस उदासी से कैसे निकला जाए पर हम मॉडर्न लवर हैं...पढ़े लिखे भी हैं सो जानते हैं कि डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को खाली नहीं बैठना चाहिए...इसलिए बस किसी तरह मन लगा रहे हैं ताकि उसकी यादें कुछ पल को दिल से दूर जा सकें वरना तो जरा सा खाली बैठे नहीं कि उसकी यादें दिल में मकां कर लेती हैं...
कविवर...आप तो सरकारी बाबू हैं...काम में भी तो खुद को दिन भर व्यस्त रख सकते हैं...?
सरकारी हैं तभी तो....काम ही नहीं है कुछ! ऑफिस में हाजिरी रजिस्टर पर साइन करके चले आते हैं..बड़े बाबू से ठीकठाक सैटिंग है! तुम प्राइवेट लोग मज़े में हो...सुबह १० से रात ८ बजे तक काम में जुते रहते हो...लकी मैन!"
हमें समझ नहीं आया की कवी ने अपनी व्यथा सुनाई या हमारा मज़ाक उड़ाया! लेकिन अभी ये सब सोचने का वक्त नहीं था!हमारे मन में एक उत्सुकता और पैदा हुई....रहा न गया तो पूछ बैठे!
"कविवर...बुरा न माने तो एक बात बताएं....आपके पास इतना पैसा कहाँ से आता है की आप रोज़ पब जाकर ग़म गलत कर सके!
अरे अभी बताया न...सरकारी कर्मचारी हैं! फिर भी फालतू बात पूछते हो" कवि ने थोडा सा झिड़का !
यहाँ हम कोई ख़ुशी से थोड़े ही आते हैं...मजबूरी है.!.".कवि ने फिर निराशा का दामन थामा!
फिर तो ठीक है....खुद पर हमें शर्म आई ..कविवर तो यहाँ ग़म गलत करने आये हैं और हम जाने क्या सोच बैठे थे!
तुमने दिल के दुखते तार छेड़ दिए....थोडा नृत्य कर लूं तो शायद हलका महसूस करूं .." यह कहते हुए कविराज डांस फ्लोर पर उतर आये..दुखी मन से उन्होंने आधा घंटा झूम कर नृत्य किया!इसके बाद एक पैग और लगाकर बोले "चलो घर...!आज तुम्हे दास्ताने दिल सुनाता हूँ!"
चलिए...हम तो पूरी कथा सुनने को बेताब थे ही...दिन में चार घंटे सो लिए थे सो जागने की कोई टेंशन नहीं थी!
रास्ते में कविवर को जूस की दूकान खुली दिखी सो बोले चलो आमरस ही पीते चलें...हमें क्या आपत्ति भला! दो दो गिलास रस गटका और पहुंचे कविवर के घर...पहुंचते ही कवि ने ऐसी गहरी आह भरी कि डर के मारे छिपकली ,मछर ,कोकरोच सब भाग गए!आज हमें राज़ पता चला कि कवि के घर में ये कीडे मकोडे क्यों नहीं पाए जाते....हमने निश्चय किया कि किसी दिन कवि का अच्छा मूड देखकर ऐसी आह भरना सीखेंगे!
कवि न कहना शुरू किया.."मैं क्या उदास हुआ, चाँद की ऑंखें भी भर आयीं, तारों का मुंह उतर गया और आसमान कराह उठा...
कविवर...आप अपना दुःख बांटने वाले थे!" मैंने हिम्मत करके बीच में टोका
वही तो बता रहा हूँ ,तू क्या समझता है मैं बरात के गीत गा रहा हूँ? कवि फिर से भड़क गए
नहीं नहीं..कहिये प्लीज़
अब तो ये दीवार भी मेरी दशा पर आंसू बहाने लगी है...कवि ने दीवार की तरफ इशारा करते हुए कहा!
अरे कविवर....छत सुधरवा लो..सीलन बैठ रही है दीवार में!" हमने बमुश्किल हसी रोकते हुए कहा
तुम दुनियादार लोग क्या जानो दिल की बातों को? इस वार्तालाप के बाद कवि एक एक प्याली चाय बना लाये!चाय पीने के बाद कवि ने पेड़,पत्ते ,तितली,पहाड़,समंदर आदि लोगों को भी आंसू बहवाये! हमने हिम्मत करके पूछा "कविवर, कौन है वो बेवफा जिसने आपको ऐसी कवितायें लिखने पर मजबूर कर दिया!
बेवफा न कहो मेरी बनमाला को
हमारा माथा ठनका "वही बनमाला तो नहीं जो रामा डोसे वाले के पीछे वाली गली में रहती है!
हाँ हाँ..वही तुम कैसे जानते हो?कवि व्याकुल हुए!
अरे आप भी किसके चक्कर में पड़े हो..उसकी तो शादी हो गयी एक साड़ी की दुकान वाले से!रोज़ नयी नयी साडियां पहन कर घूमती है और मोटी भी हो गयी है शादी के बाद से..उसे देखकर तो कहीं से नहीं लगता कि आपसे बिछुड़ने पर उसकी काया में एक मिली मीटर की भी कमी आई होगी! हमेशा दांत दिखाती रहती है!
अरे नहीं...तुम भी उसकी हसी पर ही गए..अपने अन्दर सैकडों सागरों का दुःख समाये मुस्कुराती रहती है.." कवि ने फिर से गहरी सांस छोड़ी!
आपसे कभी कहा उसने ऐसा ?
कहना क्या...निगाहों से सब समझ आता है!हम उसके दिल की दशा जानते हैं!उसके पास तो कोई नहीं जिससे वो अपना दर्द बाँट सके!
ओह..तो ये बात है .बेचारी ग़म की मारी है ,कैसे अपना ग़म छुपा कर नयी साडियां पहनती होगी? कैसे आंसू भरी आँखों से रामा के यहाँ जाकर डोसा खाती होगी? हमारा मन दया से भर उठा!
हमने निश्चय किया कि कल जाकर बनमाला का भी दर्द बाँटेंगे!हम उठने लगे तो कवि ने केसर वाला दूध पिलाया! अभी तक हमने सुना था कि ग़म में लोग शराब पीने लगते हैं पर पहली बार देखा कि शराब के साथ जूस,चाय,दूध सब पीने लगे हैं कविराज! शायद ग़म ज्यादा होता हो तो ज्यादा सामग्री की आवश्यकता पड़ती हो!
चलिए आज हमने कविवर का दर्द बांटा....कल बनमाला का हाल भी सुनेंगे और अगली पोस्ट में आपके साथ बाँटेंगे!तब तक के लिए विदा.....
दुखी मन "विरही" एक कविवर हैं जो न जाने कब से सिर्फ दर्द में सनी कवितायें ही लिखते आ रहे हैं...हम भी वक्त के मारे उनके जबरन के श्रोताओं में से हैं! उनकी कवितायें जब भी सुनो जाने कैसा कैसा लगने लगता है...ऐसा लगता है जैसे संसार की हर चल अचल वस्तु सिर्फ आंसू बहाने के लिए ही पैदा हुई है...बताते हैं की पहले कविवर ऐसे नहीं थे..एक बार प्यार में दिल विल टूट गया तब से कलम दर्द उगल रही है...
रात के दस बजे थे...हम चल दिए कड़ा मन करके कवि के घर! पता था कुछ कविताओं का डोज़ तो लेना ही पड़ेगा! रास्ते में उनके अक जिगरी दोस्त मिल गए ..जिनसे हमें पता चला कि कविवर इस समय पब में गए हुए हैं...कवि,दुखी,पब....कुछ तालमेल समझ नहीं आया पर घर से पक्का इरादा करके निकले थे कि आज तो दर्द बांटकर ही लौटेंगे...पहुँच गए पब में..
देखा तो कविवर जाम के घूंटों के साथ नृत्य देखने में मग्न थे...एक पल को तो हमें लगा कि शायद हमें आने में देर हो गयी हमसे पहले कोई और इनका दर्द बांटकर चला गया...
खैर..हम पहुंचे कवि के पास और पास ही खाली कुर्सी पर बैठ गए...कविराज ने जैसे ही हमें देखा एक पल को तो चौंक गए फिर उनके चेहरे पर वही ट्रेजेडी किंग वाले चिर परिचित भाव गहरा गए...हमें तसल्ली हुई..चलो अभी ग़म मरा नहीं हम नाहक ही परेशान हो रहे थे ये सोचकर कि दर्द बांटने का मौका हाथ से चला गया!
तुम यहाँ?" कवि आह सी भरकर बोले
बस..यूं ही आपका ग़म बांटने चला आया!
क्या बांटोगे तुम मेरा ग़म..मैं तो खुद ही टुकडों टुकडों में बँटा हुआ हूँ
मन की प्रसन्नता को छुपाते हुए हमने कहा "नहीं..आज हम आपका दर्द सुने बिना नहीं जायेंगे
बस..जिंदा हूँ, जीने की सज़ा भुगत रहा हूँ...
यहाँ पब में सजा भुगत रहे हैं...?हमसे पूछे बिना रहे नहीं गया!
तुम नहीं समझोगे..तुमने कभी प्रेम किया है"
नहीं...हमने न में अपने मुंडी हिलाई!
जब से ये दिल चाक हुआ है...
क्या हुआ है...?हमने बीच में टोका!
अरे...तुम नॉन शायर लोगों के साथ यही प्रोब्लम है..सारे मूड का कचरा कर देते हो..!" कविवर सुरूर में तो थे ही,भड़क गए!
अच्छा ,अच्छा ठीक है...समझ गए ..आगे बोलिए" हमने बिना समझे ही कहा!
तुमने सुना तो होगा ही कि ग़म का मारा आदमी कितना अकेला होता है
हाँ हाँ...सुना है ...तभी तो ये सोचकर कि आप अकेले सुनसान जगह पर बैठे आंसू बहा रहे होंगे ,हम चले आये आपके पास पर आप तो भीड़ भड़क्के मैं बैठे हैं...कहा हैं अकेले?
अरे...पहले के प्रेमी मूर्ख और अनपढ़ हुआ करते थे..नहीं जानते थे कि इस उदासी से कैसे निकला जाए पर हम मॉडर्न लवर हैं...पढ़े लिखे भी हैं सो जानते हैं कि डिप्रेशन के शिकार व्यक्ति को खाली नहीं बैठना चाहिए...इसलिए बस किसी तरह मन लगा रहे हैं ताकि उसकी यादें कुछ पल को दिल से दूर जा सकें वरना तो जरा सा खाली बैठे नहीं कि उसकी यादें दिल में मकां कर लेती हैं...
कविवर...आप तो सरकारी बाबू हैं...काम में भी तो खुद को दिन भर व्यस्त रख सकते हैं...?
सरकारी हैं तभी तो....काम ही नहीं है कुछ! ऑफिस में हाजिरी रजिस्टर पर साइन करके चले आते हैं..बड़े बाबू से ठीकठाक सैटिंग है! तुम प्राइवेट लोग मज़े में हो...सुबह १० से रात ८ बजे तक काम में जुते रहते हो...लकी मैन!"
हमें समझ नहीं आया की कवी ने अपनी व्यथा सुनाई या हमारा मज़ाक उड़ाया! लेकिन अभी ये सब सोचने का वक्त नहीं था!हमारे मन में एक उत्सुकता और पैदा हुई....रहा न गया तो पूछ बैठे!
"कविवर...बुरा न माने तो एक बात बताएं....आपके पास इतना पैसा कहाँ से आता है की आप रोज़ पब जाकर ग़म गलत कर सके!
अरे अभी बताया न...सरकारी कर्मचारी हैं! फिर भी फालतू बात पूछते हो" कवि ने थोडा सा झिड़का !
यहाँ हम कोई ख़ुशी से थोड़े ही आते हैं...मजबूरी है.!.".कवि ने फिर निराशा का दामन थामा!
फिर तो ठीक है....खुद पर हमें शर्म आई ..कविवर तो यहाँ ग़म गलत करने आये हैं और हम जाने क्या सोच बैठे थे!
तुमने दिल के दुखते तार छेड़ दिए....थोडा नृत्य कर लूं तो शायद हलका महसूस करूं .." यह कहते हुए कविराज डांस फ्लोर पर उतर आये..दुखी मन से उन्होंने आधा घंटा झूम कर नृत्य किया!इसके बाद एक पैग और लगाकर बोले "चलो घर...!आज तुम्हे दास्ताने दिल सुनाता हूँ!"
चलिए...हम तो पूरी कथा सुनने को बेताब थे ही...दिन में चार घंटे सो लिए थे सो जागने की कोई टेंशन नहीं थी!
रास्ते में कविवर को जूस की दूकान खुली दिखी सो बोले चलो आमरस ही पीते चलें...हमें क्या आपत्ति भला! दो दो गिलास रस गटका और पहुंचे कविवर के घर...पहुंचते ही कवि ने ऐसी गहरी आह भरी कि डर के मारे छिपकली ,मछर ,कोकरोच सब भाग गए!आज हमें राज़ पता चला कि कवि के घर में ये कीडे मकोडे क्यों नहीं पाए जाते....हमने निश्चय किया कि किसी दिन कवि का अच्छा मूड देखकर ऐसी आह भरना सीखेंगे!
कवि न कहना शुरू किया.."मैं क्या उदास हुआ, चाँद की ऑंखें भी भर आयीं, तारों का मुंह उतर गया और आसमान कराह उठा...
कविवर...आप अपना दुःख बांटने वाले थे!" मैंने हिम्मत करके बीच में टोका
वही तो बता रहा हूँ ,तू क्या समझता है मैं बरात के गीत गा रहा हूँ? कवि फिर से भड़क गए
नहीं नहीं..कहिये प्लीज़
अब तो ये दीवार भी मेरी दशा पर आंसू बहाने लगी है...कवि ने दीवार की तरफ इशारा करते हुए कहा!
अरे कविवर....छत सुधरवा लो..सीलन बैठ रही है दीवार में!" हमने बमुश्किल हसी रोकते हुए कहा
तुम दुनियादार लोग क्या जानो दिल की बातों को? इस वार्तालाप के बाद कवि एक एक प्याली चाय बना लाये!चाय पीने के बाद कवि ने पेड़,पत्ते ,तितली,पहाड़,समंदर आदि लोगों को भी आंसू बहवाये! हमने हिम्मत करके पूछा "कविवर, कौन है वो बेवफा जिसने आपको ऐसी कवितायें लिखने पर मजबूर कर दिया!
बेवफा न कहो मेरी बनमाला को
हमारा माथा ठनका "वही बनमाला तो नहीं जो रामा डोसे वाले के पीछे वाली गली में रहती है!
हाँ हाँ..वही तुम कैसे जानते हो?कवि व्याकुल हुए!
अरे आप भी किसके चक्कर में पड़े हो..उसकी तो शादी हो गयी एक साड़ी की दुकान वाले से!रोज़ नयी नयी साडियां पहन कर घूमती है और मोटी भी हो गयी है शादी के बाद से..उसे देखकर तो कहीं से नहीं लगता कि आपसे बिछुड़ने पर उसकी काया में एक मिली मीटर की भी कमी आई होगी! हमेशा दांत दिखाती रहती है!
अरे नहीं...तुम भी उसकी हसी पर ही गए..अपने अन्दर सैकडों सागरों का दुःख समाये मुस्कुराती रहती है.." कवि ने फिर से गहरी सांस छोड़ी!
आपसे कभी कहा उसने ऐसा ?
कहना क्या...निगाहों से सब समझ आता है!हम उसके दिल की दशा जानते हैं!उसके पास तो कोई नहीं जिससे वो अपना दर्द बाँट सके!
ओह..तो ये बात है .बेचारी ग़म की मारी है ,कैसे अपना ग़म छुपा कर नयी साडियां पहनती होगी? कैसे आंसू भरी आँखों से रामा के यहाँ जाकर डोसा खाती होगी? हमारा मन दया से भर उठा!
हमने निश्चय किया कि कल जाकर बनमाला का भी दर्द बाँटेंगे!हम उठने लगे तो कवि ने केसर वाला दूध पिलाया! अभी तक हमने सुना था कि ग़म में लोग शराब पीने लगते हैं पर पहली बार देखा कि शराब के साथ जूस,चाय,दूध सब पीने लगे हैं कविराज! शायद ग़म ज्यादा होता हो तो ज्यादा सामग्री की आवश्यकता पड़ती हो!
चलिए आज हमने कविवर का दर्द बांटा....कल बनमाला का हाल भी सुनेंगे और अगली पोस्ट में आपके साथ बाँटेंगे!तब तक के लिए विदा.....
27 comments:
अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा...बहुत बढिया.
खुशकिस्मत है आप जो आपने दर्द बाँट तो लिया कविवर के साथ.. सोच रहा हू शाम को किसी पब में हो आऊ क्या पता कोई गम का मारा मिल जाए तो दर्द बाँट ले
शायद ग़म ज्यादा होता हो तो ज्यादा सामग्री की आवश्यकता पड़ती हो!
हँसे या आंसू बहाए.... आपने कविवर का दर्द बात तो लिया
आह रस से पहले आम रस के दो गिलास वैद्यकों ने भी गुणकारी बताए हैं ... कविवर बहुत स्मार्ट हैं. मज़ा आया.
अच्छा है जूस, दूध,चाय और दर्द का कॉकटेल। बनमाला देखो क्या खिलाती-पिलाती है!
बनमाला का हाल जानने की उत्सुकता है। :)
अच्छा है...कवि जी तो मजेदार निकले... बनमाला जी से भी मिला ही दीजिये !
:) वनमाला के साथ अगली पोस्ट का इन्तेज़ार रहेगा :)तब तक हम गम बाँट के आते हैं कुछ खा पी कर
वाकई आपने बड़ा काम किया है। किसी विरही कवि का दर्द बांटना हंसी-खेल नहीं। ईश्वर आपको वनमाला का दर्द बांटने की ताकत भी दे।
good job,,,,to visit that poet and to write this blog both hahaha
रहने दीजिये आज हमारे एक दोस्त ने वैसे ही हमें हड़का दिया की साले ये लिखना विखना बंद करो हमारी बीवी कह रही है तुम क्यों नही लिखते ?मैंने कहा इतना टाइम किसके पास है ?तुम शायरों को काम ही क्या है जहाँ देखा एक शेर बना दिया जैसे साला मुश्यारा चल रहा हो......आइंदा से लिखना मत .....सरकारी बाबू में अभी तक कवियों वाले गुन बचे हुए है ऐसे बाबू को तो मालायो से तौल देना चाहिए.....आप किस्मत वाली है आपके इन महुनुभाव के दर्शन हुए
पल्लवी जी
आपका यह व्यंग्य मुझे बहुुत अच्छा लगा। मैं बहुत हंसा। फिर मुझे यह कविता लिखने का मन में आया। इसे मैं अपने ब्लाग@पत्रिका पर लिखूंगा। आप लिखती रहें ताकि हमारे अंतर्मन में भी लिखने की प्रेरणा मिलती रहे।
दीपक भारतदीप
......................................
यूं तो शराब के कई जाम हमने पिये
दर्द कम था पर लेते थे हाथ में ग्लास
उसका ही नाम लिये
कभी इसका हिसाब नहीं रखा कि
दर्द कितना था और कितने जाम पिये
कई बार खुश होकर भी हमने
पी थी शराब
शाम होते ही सिर पर
चढ़ आती
हमारी अक्ल साथ ले जाती
पीने के लिये तो चाहिए बहाना
आदमी हो या नवाब
जब हो जाती है आदत पीने की
आदमी हो जाता है बेलगाम घोड़ा
झगड़े से बचती घरवाली खामोश हो जाती
सहमी लड़की दूर हो जाती
कौन मांगता जवाब
आदमी धीरे धीरे शैतान हो जाता
बोतल अपने हाथ में लिये
शराब की धारा में बह दर्द बह जाता है
लिख जाते है जो शराब पीकर कविता
हमारी नजर में भाग्यशाली समझे जाते हैं
हम तो कभी नहीं पीकर लिख पाते हैं
जब पीते थे तो कई बार ख्याल आता लिखने का
मगर शब्द साथ छोड़ जाते थे
कभी लिखने का करते थे जबरन प्रयास
तो हाथ कांप जाते थे
जाम पर जाम पीते रहे
दर्द को दर्द से सिलते रहे
इतने बेदर्द हो गये थे
कि अपने मन और तन पर ढेर सारे घाव ओढ़ लिये
जो ध्यान लगाना शूरू किया
छोड़ चली शराब साथ हमारा
दर्द को भी साथ रहना नहीं रहा गवारा
पल पल हंसता हूं
हास्य रस के जाम लेता हूं
घाव मन पर जितना गहरा होता है
फिर भी नहीं होता असल दिल पर
क्योंकि हास्य रस का पहरा होता है
दर्द पर लिखकर क्यों बढ़ाते किसी का दर्द
कौन पौंछता है किसके आंसू
दर्द का इलाज हंसी है सब जानते हैं
फिर भी नहीं मानते हैं
दिल खोलकर हंसो
मत ढूंढो बहाने जीने के लिये
...........................
आह. दिल भर आया कविवर के दुःख से. बनमाला का भी सच्चा हाल जानने की इच्छा है.
दुखी मन "विरही" के दुखी मन को देख आँख भर आई...मन में इतने गमों की लहरें उठी है कि उसी में तैर कर सीधे पब जा रहा हूँ.शायद मन हल्का हो. तब तक आप बनमाला की कथा लाओ..उस समय सांभर पी लेंगे. :)
मजा आ गया जी.गजब का लिख रही हो-ऐसे ही जमाये रहो कलम की कलाबाजी. बहुत खूब.
इर्ष्या होने लगी है अब आप से इतना लिखने का समय कैसे मिल पाटा है आपको और इतना अच्छा कैसे लिख लेती हैं .
kya khoob dard baanta hai, banmala ka bhi dard aise hi bantiye
bhagwan aapko lambi umar de... kisi ka dukh baant ke bahut sukun milta hai na :))
banmala ka number kab aayega??
सुन्दर है। अब बनमाला का इंतजार है।
http://hindini.com/fursatiya
कवियों से पाला पड़ा कहां है आपका। घातकजी, चातकजी, घायलजी, पायलजी, मारुजी, हारुजी, घंटाजी, टंटाजी, इन सबसे मुलाकात बाकी है।
बहुत सुंदर..अद्भुत बहाव है आपके लेखन में. बहुत सहज भी.
कविवर की दुख गाथा जानने के बाद बनवाला का हाल-हवाल जानने की जिज्ञासा हो रही है।
bahut dardnaak kavivar nikle ye to...badhiya lekh..padhkar bahut maza aaya. Ab Banmala ke dard ki daastaan ka intezaar rahega
shandar...hamare blog par aane ke liye shukriya..
भाषा की पकड़ लाज़बाब है !व्यंग लेखन उच्चकोटि का हास्यबोध मांगता है जो आपकी रचनाओं में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है !इस रचना में व्यंग ,हास्य की गलबहियां डाले चलता है !बहुत खूब पल्लवी जी !
Aapne to likha tha kal banmala ki kahani sunaoge. Aj 4 din ho gaye madam akhir aur kitni pratiksha karni padegi. lagta apke fans ko apke ghar aakar dharna dena padega.
APKI RACHNAO KA EK FAN
AVI.
:-)
:-)
पल्लवी जी
आपका यह व्यंग्य मुझे बहुुत अच्छा लगा। मैं बहुत हंसा। फिर मुझे यह कविता लिखने का मन में आया। इसे मैं अपने ब्लाग@पत्रिका पर लिखूंगा। आप लिखती रहें ताकि हमारे अंतर्मन में भी लिखने की प्रेरणा मिलती रहे।
Post a Comment