Monday, June 23, 2008

दर्द बांटना बनमाला का ..

पिछली पोस्ट में हमने बताया की किस प्रकार हमने न सिर्फ कविवर "विरही" जी के दर्द को बांटा बल्कि दर्द के नए आयाम भी समझे...तो दर्द बांटने के इसी सिलसिले पर आगे बढ़ते हुए हम कल पहुंचे उनकी प्रेमिका बनमाला के घर...बनमाला को हम उसकी शादी होने के बाद से ही जानते हैं..वो ऐसे कि हम लच्छू कचौडी वाले के बगल वाली गली में रहते हैं और लच्छू के सामने रामा डोसे वाले के पीछे वाली गली में बनमाला की ससुराल है.. तो मोहल्ले पड़ोस के नाते सिर्फ नजरी पहचान है...बातचीत कभी हो न सकी! हाँ..अक्सर ठेले पर डोसा या कचौडी खाते हम कई बार टकराए..पर हम दोनों ही खाने में इतने लीन रहते थे कि मीठी चटनी मांगने या साम्भर में तेज़ नमक की शिकायत करने के अलावा कोई और बात होने की गुंजाइश ही नहीं रहती थी! बनमाला के पति कि साडियों की दुकान है इसलिए वह रोज़ नयी नयी साडियां पहनती है और उसकी हर साडी पर कहीं न कहीं चटनी या साम्भर के दाग भी मिल ही जायेंगे...मोहल्ले में तो चर्चा ये भी है की एक ग्राहक दूकान से साडी खरीद कर ले गयी तो गलती से साम्भर का दाग और खुशबू दोनों साडी में रह गए थे...बनमाला को उसके पति ने बहुत फटकारा था साडी बिना धोये दूकान पर भिजवाने के लिए..

तो साहब ,जैसे ही बनमाला का पति दुकान के लिए रवाना हुआ,हम पहुँच गए बनमाला के घर...पहले तो हमें देखकर वह थोडा चौंकी लेकिन अपने ठेला मित्र को देखकर उसके चेहरे पर एक परिचित मुस्कान भी उभरी! हमें बाकायदा बैठाया...हमने भी ज्यादा टाइम न बर्बाद करते हुए उसे आने का प्रयोजन बताया!
हम कोई बात शुरू करते ,इसके पहले बनमाला फुर्ती से गयी और कुछ चिप्स,मठरी वगेरह ले आई खाने को! कुछ मिनिट को तो चिप्स खाने की करकर ही कमरे में गूंजती रही! हमें गुस्सा आया,हम यहाँ दुःख बांटने आये हैं और ये तो खाने में भिड़ी है!

आप यहाँ खाने में लगी हैं ,उधेर बेचारे विरही जी आपके ग़म में चाँद तारों की ऐसी तैसी किये पड़े हैं !" हमसे अब रहा न गया!
अचानक बनमाला के चेहरे के भाव बदले और कुछ कुछ मीनाकुमारी से मिलते जुलते भाव उसके चेहरे पर छा गए...हमें अच्छा लगा कि चलो दर्द बांटने की गुंजाईश है वरना ठेले पर कचौडी पेलती बनमाला को देखकर दुनिया का बड़े से बड़ा विद्वान् भी यह नहीं कह सकता था कि इसे पिछले दस जन्मों में भी कोई दुःख हुआ होगा!
ये बताओ..तुमने विरही को क्यों छोडा?"
ये तुमसे किसने कहा...? रमेश ने? " बनमाला ने चिप्स का मसाला अपनी साडी के पल्लू से पोंछते हुए कहा!
ये रमेश कौन है?" हम थोडा चकराए!
अरे...तुम्हारे विरही जी का असली नाम रमेश ही तो है...
अच्छा...हमें तो पता ही नहीं था..चलो जानकारी में इजाफा हुआ..." नहीं नहीं..रमेश क्यों कहेंगे...वो तो आज भी आपके प्रेम में डूबे हुए हैं
मैं नहीं डूबी क्या?" बनमाला थोडा बिगड़ी!
नहीं नहीं..मैंने ऐसा नहीं कहा, एक्चुअली आपको इतना खाते देखकर मैं समझा आप बहुत खुश हैं" मैंने स्तिथि स्पष्ट की!
तो क्या मैं अपनी ख़ुशी से खाती हूँ?
तो किसकी ख़ुशी से खाती हैं आप?
वो तो ग़म भुलाने के लिए अपना आप को खाने में व्यस्त रखती हूँ...वरना एक कौर मुंह में डालने का मन नहीं होता!" बनमाला ने एक चिप्स और उठाया!
"धन्य हैं आप..बिना मन के चिप्स के दो पैकेट और पच्चीस तीस मठरी बीस मिनिट में आपने उदरस्थ कर लिए...एक हम हैं कभी बुखार आ जाये और कड़वा मुंह रहे तो कोई माई का लाल हमें एक ब्रेड तक नहीं खिला सकता... " हमने बनमाला की प्रशंसा की!
" अरे..ब्रेड व्रेड तो मैं भी नहीं खा पाती हूँ .वो तो थोडा चटपटा हो तो गले के नीचे चला भी जाता है!
ओह..अब समझे.. उधर कविवर खुद को व्यस्त रखने के लिए मदिरा से लेकर आमरस तक हर पेय पदार्थ पिए जा रहे हैं,इधर बनमाला खाद्य सामग्री से अपना ग़म गलत कर रही हैं...वाह कैमिस्ट्री हो तो ऐसी!
तभी बनमाला ने एक गहरी आह भरी...बिलकुल वैसी ही जैसी कविवर भरते हैं...डर के मारे एक चूहा सोफे के नीचे से निकल कर भागा! सचमुच दोनों का दुःख समान स्तर का था....हमें यकीन हो गया! लगता है ..ये ज्यादा दुखी हो गयी ! हमारा मन ग्लानि से भर उठा!
लगता है...मैंने आपको और दुखी कर दिया!" हमने कहा
" आपने मेरे ज़ख्म उधेड़ दिए....अब चिप्स से काम नहीं चलेगा..चॉकलेट खानी पड़ेगी..मैंने किसी किताब में पढ़ा था कि ज्यादा डिप्रेशन हो तो चॉकलेट खानी चाहिए!" बनमाला ने फिर एक आह भरी!

हमने अपनी जेब टटोली...आज ही दूकान से सौदा लेते वक्त दूकानदार ने एक रूपया खुल्ला न होने के कारण एक पारले की चॉकलेट दे दी थी! हमने तत्काल निकालकर पेश की......चलो , आज किसी की उदासी कम करने में हम काम आये!
बनमाला ने चॉकलेट हाथ में लेते हुए पूछा " कोई किटकैट वगेरह नहीं है क्या?"
आज तो नहीं है...अगली बार आते वक्त ध्यान रखेंगे.." हमने माफ़ी माँगी!
ये बताओ..तुम्हारी और विरही जी की शादी क्यों न हो सकी? किसने अड़ंगा डाला? " हमने थोड़े आवेश में बनमाला से पूछा!
"किसी ने नहीं..." बनमाला चॉकलेट चूसती हुई बोली
मतलब...? फिर आप दोनों ने शादी क्यों नहीं की?
प्यार की खातिर...आपको नहीं पता विरह ही प्रेम की पराकाष्ठा है! बिना दर्द पाए कोई प्रेम पूजा में नहीं बदलता! घरवाले तो तैयार थे...पर हमने त्याग की राह चुनी!" बनमाला भाव विह्वल होते हुए बोली!

क्या...? " हमारा मुंह खुला का खुला रह गया!
हाँ...और इसके अलावा हमारा प्रेम व्यवहारिक भी था...रमेश बेरोजगार थे तब , कैसे शादी कर लेती मैं उनसे और रमेश की भी इच्छा थी की ससुराल से जो दहेज़ मिले उससे कोई धंधा जमाया जाए...मेरे पिता ने तो दहेज़ देने से साफ़ मना कर दिया था....तो हमने प्रेम को विरह में बदल दिया और हमेशा के लिए अमर कर दिया" बनमाला का गला भर आया कहते कहते!
आप ही बताइए...अगर मैंने उनसे शादी कर ली होती तो क्या आज वे इतने बड़े कवि बन पाते?
नहीं बन पाते...!" हमने बेखयाली में जवाब दिया!
अब आप जाइए.. मुझे एक फ़ूड फेस्टिवल में जाना है....मेरी सहेली आती ही होगी!
आपसे बात करके मुझे हल्का महसूस हुआ! आते रहिये" बनमाला ने हमें दरवाज़ा दिखाते हुए कहा!
अभी भी हम थोड़े अवाक से ही थे...
" आपका ग़म तो प्रोपरली बँटा न?" हमें अपनी पड़ी थी!
हाँ ,हाँ...बँटा! अब आप जाओ" बनमाला हमें फुटाने को बेताब दिखी!
हमने नमस्ते बोला और चल दिए.....
वाकई कितना महान काम होता है किसी का दर्द हल्का करना...और फिर ऐसा दर्द जहां जीवन जीने की नयी कला सीखने को मिल जाए...प्रणाम करते हैं हम विरही जी और बनमाला को! अब कम से कम ये फ़िक्र नहीं है...अगर भूल चूक से कभी दिल टूटने के आसार दिखे तो सही फार्मूला मिल गया है..."खाओ पियो,ऐश करो...उदासी भगाओ,सेहत बनाओ" अगर आप में से कभी किसी का दिल चोट खा बैठे तो हमसे संपर्क करे...विरही जी और बनमाला का पता हम बता देंगे...
अच्छा तो अब चलते हैं...अब हमें दर्द बांटने में आनंद आने लगा है...फिर किसी का दर्द बांटा तो आपको अवश्य बताएँगे ...

19 comments:

डॉ .अनुराग said...

ek aor kalidaas.......to ye raj hai kavi banne ka...

mehek said...

:);)bahut hi achhi post,virah ji ki vanmala bha gayi hame bhi:)

रंजू भाटिया said...

:) आप यूँ ही दर्द बांटती रहे और हम यूँ आपका लिखा पढ़ते रहे यही दुआ है

पी के शर्मा said...

वाह बड़ी स्‍वादिष्‍ट रचना
प्रसन्‍न हुई रसना
कचौड़ी, डोसा साथ में सांभर रसदार
हर चीज मसालेदार
गजब खींचा चित्र
मित्रों की एक और श्रेणी
ठेला मित्र।
सच में काफी रोचक है।

Gyan Dutt Pandey said...

बनमाला जी का चित्र तो सुन्दर होगा - टुनटुन जी जैसा।
इतना खा कर अपने बॉडी-मास-इण्डेक्स को तो उन्होने अपने विरह जैसा विशाल बना ही डाला होगा!:)

Abhishek Ojha said...

ग़म ग़लत करने का एक नया तरीका पता चला... लेकिन यहाँ तो कोशिश है की बचे रहे कहीं वजन न बढ़ जाय... पर तरीका अच्छा है... बनमाला जी का अनूठा चरित्र अच्छा लगा.

Ashok Pandey said...

प्रेम और त्‍याग के इस इस व्‍यावहारिक रूप का क्‍या कहना। वैसे यदि कविवर विरही और बनमाला बचपन में दुबले-पतले रहे होंगे, तो उनके माता-पिता को उनके प्रेमी और फिर वियोगी बनने से बड़ी खुशी हुई होगी।

Unknown said...

aapka dard bantne ak andaz vakai special hai. Naya shabd suna jo shayad hi kisi shabdkosh main mile '' THELA MITRA '' wah - wah....
JAY HO.....

Abhijit said...

waah waah...ye to Ram milayi jodi lagte hain. Prem ki parakashtha tak pahunchne ka aisa swadisht tareeka aur nahi dikha hame.

Aur bhi dukh baantiye aur bataiye. ab to hame bhi dukh wali kahani sunkar maza aa raha hai

Udan Tashtari said...

दिल पे चोट खाये चिप्स खाते जा रहे हैं, विरही जी की बोतल भी झटक लाये हैं और रोते भी जा रहे हैं....आ जाओ..थोड़ा दर्द बंटाने. उसमें तो अब डॉक्टरेट ले ही चुकी हो. आपका नया नामकरण: डॉक्टर दर्द बट्टुअल!!

मस्त रहा बनमाला एपिसोड भी, बहुत खूब.

Pragya said...

banmala ka dard sun kar sach mein dil bhar aaya :))
ab kisi ka dard baantane se pahle hame zaroor ek choclate (parle wali hi sahi!!) de dena jisase hum dipression mein jaane se bach jaaye :))

अनूप शुक्ल said...

मजेदार रही यह पोस्ट भी। बनमाला का दर्द भी बंट गया।

कुश said...

मुझे तो लगता है की मुझे आपका दर्द बाँटने आना पड़ेगा.. आते हुए क्या लाउ ? कीट केट या पार्ले टॉफी

समय चक्र said...

किसी के दुःख दर्द में सहयोगी/सहभागी बनने पर स्वयम को आत्म शान्ति का अनुभव होता है . बहुत अच्च्चा लगा पढ़कर. धन्यवाद

AVNISH SHARMA said...

धन्य हैं आप..बिना मन के चिप्स के दो पैकेट और पच्चीस तीस मठरी बीस मिनिट में आपने उदरस्थ कर लिए.
Gazab Shabdon ka chayan karti ho aap. kahan se dund dund kar shabdon kon fit karti ho. jais eki उदरस्थ कर लिए ko fit kiya.

श्रद्धा जैन said...

Gazab likhti hai aap padh kar maja aa gaya
kavi banne ka raj bhi bata diya aur dard bhi baant diya

ललितमोहन त्रिवेदी said...

ठेले पर कचौडी "पेलती " बनमाला ......! आपका गम तो प्रोपरली बटा न" हमें अपनी पड़ी थी " ....शब्दों का सटीक चयन और उनका इतनी महारत से प्रयोग आश्चर्यचकित कर देता है ! बहुत खूब पल्लवी जी जितनी तारीफ़ करूँ उतनी कम है !

Doobe ji said...

please see my new blog RANGPARSAI and give your valuable comments

admin said...

इस रोचक प्रसंग को पढवाने का शुक्रिया।