Thursday, April 3, 2008

मेरा महबूब

मेरा महबूब ज़माने से जुदा लगता है
नज़रों से कातिल और दिल से खुदा लगता है

उन्स का नूर झिलमिलाता है चेहरे पर
आज सूरज भी मुझे बुझा बुझा लगता है

यारो पूछो न मुझसे अब तो खैरियत मेरी
दिल तो पहले गया अब होश गुमा लगता है

महकी महकी सी चांदनी है,रात महकी है
चश्मे शब को तूने हाथों से छुआ लगता है

मेरे जीने का सबब है तेरे होंठों की हंसी
तेरा हर लफ्ज़ मुझे शहद घुला लगता है





1 comments:

सुजाता said...

pallavi ji ,
kya ap apna e mail I d de sakengee ?

chokherbali78@gmail.com