मेरा महबूब ज़माने से जुदा लगता है
नज़रों से कातिल और दिल से खुदा लगता है
उन्स का नूर झिलमिलाता है चेहरे पर
आज सूरज भी मुझे बुझा बुझा लगता है
यारो पूछो न मुझसे अब तो खैरियत मेरी
दिल तो पहले गया अब होश गुमा लगता है
महकी महकी सी चांदनी है,रात महकी है
चश्मे शब को तूने हाथों से छुआ लगता है
मेरे जीने का सबब है तेरे होंठों की हंसी
तेरा हर लफ्ज़ मुझे शहद घुला लगता है
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
1 comments:
pallavi ji ,
kya ap apna e mail I d de sakengee ?
chokherbali78@gmail.com
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