ग़म की फितरत मुझे सताने की
मेरी भी जिद उसे हराने की
छुपा न पाओगे आँखों की नमी
छोड़ो कोशिश ये मुस्कुराने की
दिल तुम्हारा है सच्चे मोती सा
क्या ज़रूरत तुम्हे खजाने की
टूट कर चाहना फिर मर जाना
यही तकदीर है परवाने की
सीने की कब्र में मुर्दा दिल है
न करो जिद मुझे जिलाने की
खेत छूटे, न रोज़गार मिला
ये सजा है शहर में आने की
मुफलिसी में तुझे पुकारा है
ठानी है तुझको आजमाने की
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
1 comments:
अच्छी कवितायें हैं।
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