आज देखा...
रात का माथा तप रहा था और
आसमान रात के माथे पर
चाँद की ठंडी पट्टी रख रहा था
मैंने पूछा रात से....
आज तुम्हे बुखार क्यों आया
रात कराहते हुए बोली
आज फिर कुछ लोगों ने
एक जंगल काटकर मॉल बनाया...
रात का माथा तप रहा था और
आसमान रात के माथे पर
चाँद की ठंडी पट्टी रख रहा था
मैंने पूछा रात से....
आज तुम्हे बुखार क्यों आया
रात कराहते हुए बोली
आज फिर कुछ लोगों ने
एक जंगल काटकर मॉल बनाया...
14 comments:
सशक्त अभिव्यक्ति
kabhi is par triveni likhi thi..kal dhundhkar padvayunga....vaise pallavi..tusi great ho....
बेहद गंभीर कथ्य का सशक्त प्रस्तुतिकरण..बधाई स्वीकारें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत सही है.
बहुत ही सही लिखा है आपने कविता के माध्यम से एक अच्छा संदेश
चाँद के माथे पर ठंठी पट्टी .. अच्छी बात है ...
बहुत उम्दा एवं सशक्त. बधाई इस रचना के लिये.
बहुत प्रभावी लेखन !
चंद पंक्तियों में ही आपने प्रभावी ढंग से अपनी बात कह दी। बधाई।
वाह एक बेहद सशक्त रचना.. काफ़ी कम शब्दो में गहरी बात..
Kitni powerful statement, kitni acchi tarah se aapne pesh kiya....Wow wow
wow so cute...
HI, I like the way u presented the toughest subject in the simplest way. keep it up...
very nice.........
n a good punch.....
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