Monday, April 28, 2008

ग्लोबल वार्मिंग पर चन्द पंक्तियाँ...


आज देखा...
रात का माथा तप रहा था और
आसमान रात के माथे पर
चाँद की ठंडी पट्टी रख रहा था

मैंने पूछा रात से....
आज तुम्हे बुखार क्यों आया
रात कराहते हुए बोली
आज फिर कुछ लोगों ने
एक जंगल काटकर मॉल बनाया...

14 comments:

Anonymous said...

सशक्त अभिव्यक्ति

डॉ .अनुराग said...

kabhi is par triveni likhi thi..kal dhundhkar padvayunga....vaise pallavi..tusi great ho....

राजीव रंजन प्रसाद said...

बेहद गंभीर कथ्य का सशक्त प्रस्तुतिकरण..बधाई स्वीकारें।

*** राजीव रंजन प्रसाद

अमिताभ मीत said...

बहुत सही है.

रंजू भाटिया said...

बहुत ही सही लिखा है आपने कविता के माध्यम से एक अच्छा संदेश

आभा said...

चाँद के माथे पर ठंठी पट्टी .. अच्छी बात है ...

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा एवं सशक्त. बधाई इस रचना के लिये.

सुजाता said...

बहुत प्रभावी लेखन !

Manish Kumar said...

चंद पंक्तियों में ही आपने प्रभावी ढंग से अपनी बात कह दी। बधाई।

कुश said...

वाह एक बेहद सशक्त रचना.. काफ़ी कम शब्दो में गहरी बात..

rush said...

Kitni powerful statement, kitni acchi tarah se aapne pesh kiya....Wow wow

neelima garg said...

wow so cute...

Unknown said...

HI, I like the way u presented the toughest subject in the simplest way. keep it up...

स्वप्निल तिवारी said...

very nice.........
n a good punch.....