बचपन हमारे बराबर कद के थे दोस्त
आज तुम इतने ऊंचे हो गए हो
कि मेरे हाथ नहीं पहुँचते तुम तक
हम दोनों ने विस्तार किया
मैंने समंदर की तरह
तुमने आसमान की तरह...
मैंने अपनी मौजों को बहुत उछाला पर
खाली हाथ वापस आ गयीं
तुम्हे छू भी नहीं पायी
तुम्ही झुक कर मुझे गले लगा लो दोस्त
जैसे उफक पर आकर
आसमान समंदर के गले लगता है...
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
1 comments:
कविता स्वयं में वह उफक ही है.. पल्लवी जी। अच्छा लगा आपको पढ़ कर।
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