Thursday, April 24, 2008

उफ़,ये शिनचैन


कल एक परिचित के घर जाना हुआ! घंटी बजाई,दरवाजा खुलते ही हमारा स्वागत हुआ एक पतली सी गरजती आवाज़ से" वहीं रुक जाओ...पास आई तो अच्छा नहीं होगा" मैंने घबराकर हाथ भी ऊपर कर लिए इस प्रत्याशा में अब हैंड्स अप की आवाज़ आती ही होगी लेकिन शुक्र है इतने पर ही बस हुआ! देखा तो परिचित का ५ साल का बच्चा खिलोने वाली बंदूक हम पर ताने खडा था! चेहरे पर भी ऐसे भाव थे मानो अभी अटैक ही करने वाला है!इतने में उसकी माँ निकल कर आई...हमारी जान में जान आई!"क्या कर रहे हो बिट्टू,नमस्ते करो" माँ की प्रेम पगी आवाज़ आई!
"चुप रहो,अभी तुमको भी मारुंगा" बिट्टू ने माँ को भी हड़काया!

थोडी शांति मिली हमें ,साथ ही खिसियाहट भी कम हुई कि चलो मेहमान ही नहीं घरवाले भी लतियाये जा रहे हैं! माँ ने बड़े शान से बताया" अरे क्या करें...ये बच्चे भी शिनचैन और पॉवर रेंजर देख देख कर बिगड़ रहे हैं' कहने में 'बिगड़ना' शब्द आया लेकिन भाव था कि बहुत स्मार्ट बच्चा है हमारा! बच्चे के लिए चॉकलेट भी लेकर गए थे..पर देने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी! उसे छुड़ाना आता था! आहा ,सचमुच स्मार्ट बच्चा था! उसकी माँ चाय लेने चली गयी और हम भी अपने बचपन में खो गए...क्या सडियल बचपन था दुनिया भर के नियम कायदे सिखा दिए गए थे मुझ मासूम को! कोई आये तो नमस्ते करो, कवितायें सुनाओ,पानी पूछो...टी.वी. में भी बड़े प्यारे कार्टून आते थे...मिकी डोनाल्ड टाइप के...चाह के भी मासूमियत छूट ही नहीं पाती थी! चंपक,नंदन,चन्दा मामा पढ़ के बचपन बीता! बदतमीजी की शिक्षा से वंचित ही रह गए!

इन्ही विचारों में खोये थे इतने में बिट्टू फिर से आ गए इस बार उन्होने हमारे मोबाइल पर निशाना साधा! उसकी माँ सामने नहीं थी सो हमने हिम्मत करके आँख दिखा दी, थोडा डरा पर जाते जाते हमें नोंच कर चला गया! हम डरे सहमे से उसकी माँ का इंतज़ार करने लगे! चलो माँ आई चाय नाश्ते के साथ...बिट्टू नहीं आया, हम खुश हुए शायद हमसे डर के चुपचाप जाकर सो गया! मन ही मन अपनी जीत पर प्रसन्न होते हुए चाय का कप थामा,पहली चुस्की ली ही थी कि बिट्टू अपने क्रिकेट के बल्ले के साथ प्रकट हुए...जलती निगाहों से हमें देखा और धाड़ धाड़ हमारी कुटाई शुरू कर दी! २-३ वार तो हम सहन कर गए उसके बाद बर्दाश्त नहीं हुआ.! हमने बिट्टू की माँ की तरफ आस भरी निगाहों से देखा...पर वो मार खा खा के पक्की हो चुकी थी शायद, मुस्कुराती हुई यशोदा मैया सी बैठी रही!

जब आस की आखिरी डोर भी टूट गयी तो हमी ने चेहरे पर नकली मुस्कान लाते हुए कहा "नहीं बेटे, मारते नहीं हैं" " मैं तो मारुंगा,तुमने मोबाइल क्यों नहीं दिया मुझे? बिट्टू ने कारण स्पष्ट किया!
अब तक हमारी पीठ दुखने लगी थी...रहा नहीं गया तो जोर से डांट बैठे और बल्ला छुडा कर अलग रख दिया! हमारी ये गुस्ताखी माँ को नागवार गुजरी, बिट्टू को धमका कर बोली" बेटा, आंटी को बुरा लग रहा है तो उन्हें मत मारो,जितना मारना है हमें मार लो" !इसके बाद माँ ने इस आशा से हमारी ओर देखा कि शायद हम अपना विचार बदल दें और मार खाने को तैयार हो जाएं...पर नहीं साहब हम भी बेशरम बने बैठे रहे ! सही में हमारी पीठ दुःख रही थी!

बिट्टू गुस्से में अभी भी फनफ़ना रहे थे...माँ का मोबाइल उठाया और जोर से दीवार पर दे मारा! मोबाइल की बैटरी ,स्क्रीन सब अलग हो गयी! हमें उस पल बिट्टू को अपना मोबाइल न देने के फैसले पर गर्व महसूस हुआ! खैर...अगले दस मिनिट में हमने चलने की भूमिका बनाईं....माँ ने भी कोई ऐतराज़ नहीं किया! शायद हम बिट्टू से पिट लेते तो वो हमें थोडी देर रुकने का आग्रह करती!

हम उठकर अपने घर चले आये....आकर टी.वी. चलाया! हंगामा चैनल पर शिनचैन ही चल रहा था! एक ८-१० साल का लड़का अपनी माँ से कह रहा था" ओ,बच्चा चुराने वाली बुढ़िया,चुप रहो"... तो ये था शिनचैन....थोडी देर और देखते रहे! उस निहायत बदतमीज बच्चे के सामने बिट्टू तो बहुत शरीफ था! हमें पहली बार बिट्टू पर थोडा प्यार आया! लगा कि बच्चे की गलती नहीं है...जो देखेगा,वही तो सीखेगा!

खैर उन परिचित के यहाँ तो आगे भी जाना पड़ेगा लेकिन अब ध्यान रखेंगे कि पहले फोन कर लेंगे कि बिट्टू तो घर में नहीं हैं.. क्या करें ,बच्चा हमें भी प्यारा है पर उससे मार न खा पायेंगे! सबसे हमारा करबद्ध निवेदन है कोई आओ और इस शिनचैन को वापस उसके देश छोड़ आओ! हमारे तो बिल्लू,पिंकी ही भले हैं!

8 comments:

Anonymous said...

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डॉ .अनुराग said...

aap bhi sataye huo me shamil ho gayi..ha ..ha..ha....
badhai.

विनीत कुमार said...

अजी हमें तो डिसीप्लीन्ड बच्चे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते जो जाते ही पोयम और काउंटिंग सुनाने लग जाते हैं। आगे जाकर वो झेल इंसान में बदल जाते हैं और आप भी नहीं चाहेंगे कि आप झेल के साथ हों, इसलिए बिट्टू ही बेहतर है।

rasheed said...

ha ha ha..bechare aap..Shinchan aur Power ranger ka zamaana hai..bittu se sabko door bhaagna chahiye !!..;- )

रश्मि प्रभा... said...

पल्लवी शिन्चैन पढ़कर मज़ा आ गया,
अपने बच्चों को भी सुनाया,हँसते-हँसते बुरा हाल था.......
ऐसे कार्नामेवाले बचे से हम भी मिले हैं,बहुत रोचक लिखा है.

कुश said...

ठीक कहा आपने बिल्लू पिंकी ही भले है.. ये मुआ शिन चेन तो सारे चैन ही ले उड़ेगा.. पर बच्चो को भी देखना ज़रूरी है स्कूल में सहपाठियो से कंधे से कंधा जो मिलना है.. एक भी एपिसोड मिस हुआ नही की बेचारे का मज़ाक बन जाएगा..

Unknown said...

sahi kaha aapne.. galti poore mahaul ki hai aur is mahaul mein rehne wale sab is galti ki saza kahin na kahin bhugat rahe hain.. Sawal yeh hain ki aaj kitne log apne bachcho ko 'na' keh pate hain..aage aage dekhiye hota hai kya..

Ravi Rajbhar said...

satya kaha ji.......kuchh bachcho ko battamij bana kar maa bap sekhi bagherate hain.