कल रात मेरे और चाँद के बीच
गुफ्तगू हुई...
देर तक मारते रहे गप्पें हम
मैंने कहा चाँद से,
बड़ा परेशान हूँ मैं
नहीं पाता इस दुनिया में खुद को फिट
दुनिया का कद ज्यादा बढ़ गया है
और मैं रह गया हूँ
एकदम बौना और तन्हा सा....
चाँद जोर से हंसने लगा
और बोला....भाई मेरे
तेरी मेरी मुश्किल तो साझी है
तारे भी नहीं करते मुझे अपने खेल में शामिल
मेरे इत्ते बड़े कद के कारण
मैं भी हूँ अनफिट
इस तारों भरे आसमान में....
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
5 comments:
अच्छी कविता और कल्पना दोनों. जब देखा कि आप पुलिस में सेवारत हैं तो आश्चर्य भी हुआ. वैसे और भी प्रशासनिक विषयों को भी लिखने का हिस्सा बनाया जा सकता है. हम सबको अंदरखाने की कार्यप्रणाली के बारे में बहुत कुछ जानने को मिलेगा. जैसे किरण बेदी ने किया.
ha ha ha, sahi hai , kambkhat yahi to pareshani hai ki har koi pareshan hai
आपने जब चांद से बातें की तो क्या चांदनियों ने आपको कुछ नही कहा ? कहा तो वह भी बताईए.
खयाल अच्छा है..
Pallavi ji aapki kavita ka designer look dekhiye yaha... maafi chahti hu bina puche le li thi per aap ko kaafhi dundha nahi mili aap, aaj naseeb se surfing kar rahe they blogs ki to aap mil gai...
http://ant-rang.blogspot.com/2008/12/blog-post.html
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