Wednesday, April 16, 2008

एक सुखांत प्रेमकथा

एक था प्रेमी 'हितेन्द्र' ! एक थी प्रेमिका 'सुभद्रा' ! सुभद्रा हितेन्द्र का तीसरा और हितेन्द्र सुभद्रा का पहला प्यार था !क्योकी हितेन्द्र २० का और सुभद्रा १६ की थी!दोनों को अपने आप प्यार नहीं हुआ था बल्कि दोनों ने अपनी अपनी ज़रूरतों के हिसाब से प्यार करना ज़रूरी समझा सो कर लिया!
सुभद्रा ने अपनी क्लास में जूनियर लेकिन प्यार मे सीनियर सहेलियों से सुन रखा था कि प्यार करने से उपहार मिलते हैं,रेस्तौरेंट में जाने को मिलता है और पार्कों की सैर करने को मिलती है सो सुभद्रा प्यार करने को तड़प उठी!रेस्तौरेंट और पार्क तो दुसरे और तीसरे नंबर पर आते थे लेकिन उपहार मिलने की बात से वह खासी प्रफुल्लित थी ! 'पापा ने कभी कुछ नहीं दिलाया,एक बार प्यार हो जाये तो सारे शौक पूरे कर लूंगी' इन्ही विचारों ने सुभद्रा को हितेन्द्र से प्यार करवाया!
उधर हितेन्द्र दो प्रेमिकाओं द्वारा त्याग दिए जाने के बाद खाली खाली महसूस कर रहा था सो बगल में लड़की लेकर चलने की साध ने उसे सुभद्रा से प्रेम करवाया!
दोनों रोज़ मिलने लगे!तीसरे नंबर पर रखे गए पार्क की सैर तो सुभद्रा ने खूब की लेकिन एक महीना बीत जाने के बाद भी वह पहले और दूसरे नंबर के फायदे प्राप्त नहीं कर सकी थी! हितेन्द्र ने न तो उसे कोई उपहार दिया था और न ही किसी रेस्तौरेंट में चटाने ले गया था! हितेन्द्र सच्चा प्रेमी था,प्यार को पैसों से नहीं तोलता था!
इधर सुभद्रा रोज़ आस लेकर जाती की आज तो खाली हाथ नहीं लौटेगी किन्तु जैसे एक बेरोजगार व्यक्ति सुबह नौकरी की तलाश में निकलता है और शाम को चप्पल चट्काता निराश भाव से लौटता है इसी प्रकार सुभद्रा भी वापस लौट आती!इसी तरह दो महीने बीत गए!
ऐसा नहीं था की दोनों में प्यार नहीं था ,बहुत प्यार था दोनों में !क्योकि सुभद्रा का मन अब कोर्स की किताबों से ज्यादा फिल्मी पत्रिकाओं में रमता ,खोयी खोयी सी रहती! हितेन्द्र का एक पासपोर्ट साइज़ का खता खताया सा फोटो जिस पर हेड मास्टर की आधी सील लगी थी,रात में चुपचाप बस्ते में से निकालकर निहारती! और पुराने ज़माने से ही पढ़ते सुनते आये हैं की ये सब लक्षण प्रेम होने के हैं सो हम ये कह सकते हैं की सुभद्रा को प्यार हो गया था! उधर हितेन्द्र का भी कमोबेश यही हाल था!

एक दिन पार्क की बेंच पर बैठे बैठे हितेन्द्र ने प्रस्ताव रखा की अन्य प्रेमियों की तरह हमें भी एक दूसरे को प्यार के छोटे नामों से पुकारना चाहिए,सुभद्रा सहमत हुई और अगले दिन नाम छांटकर लाने के वायदे के साथ दोनों ने विदा ली!सुभद्रा ने सहेलियों से मशवरा कर पांच नाम बेटू,हित्तु,जानू,बब्बू और सोनू छांट लिए ,हितेन्द्र को मशवरा करने की ज़रूरत नहीं थी,पिछली प्रेमिकाओं को प्रदान किये गए नाम अब खाली थे सो उसने भी पांच नाम जान,बेबी,पिंकी,सुभी और रानी छाँट लिए! अगले दिन सभी नामों को ओपन किया गया,सुभद्रा को 'सुभी' जमा तो हितेन्द्र ने 'जानू'सिलेक्ट किया!

ये सब तो ठीक था पर अब सुभद्रा का धैर्य जवाब दे चला था तीन महीने हो गए थे पर अभी तक फूलों के अलावा एक चवन्नी का उपहार नसीब नहीं हुआ था! हितेन्द्र....हाँ,वह उपहार देता था न,रोज़ पार्क की बेंच पर बैठकर सुभद्रा की चुटिया में एक फूल लगाता था,जिसे सुभद्रा नकली मुस्कान के साथ स्वीकार करती और पार्क से बाहर निकलते ही नोंच कर फेंक देती! एक दिन उसने निश्चय किया की उपहार पाना उसका जन्मसिध्ध अधिकार है और वो इसे पाकर ही रहेगी!

अगले दिन दृढ निश्चय के साथ सुभद्रा पार्क में पहुंची, बोली 'जानू ,तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो?' हितेन्द्र का माथा ठनका,अनुभवी था,समझते देर नहीं लगी कि अभी जेब पर हमला होने वाला है !बात को बदलते हुए बोला 'सुभी.एक बात बताऊँ मुझे तुम कब ज्यादा अच्छी लगती हो?'
'हाँ हाँ ,बताओ" सुभद्रा तारीफ सुनने को बेचैन हुई!
'जब तुम बिना श्रृंगार,बिना गहनों के होती हो एकदम सिम्पल!तुम्हारी सादगी ही तुम्हारी सुन्दरता है बिंदी लिपस्टिक,चूड़ियाँ हार पहनकर लडकियां पूरी चुडैल लगती हैं'हितेन्द्र ने सुभद्रा को निहारते हुए कहा!
सुभद्रा डर गयी! उसे तो सजने संवरने का भारी शौक था पर 'चुडैल' शब्द ने गज़ब का असर किया!हर लड़की कि चाहत होती है कि प्रेमी कि नज़रों में सबसे सुन्दर लगे !सो अगले दिन मन मसोस कर सुभद्रा ने बिंदी,लिपस्टिक सिंगार पेटी में बंद करके रख दिए ,कान के झुमके निकाल दिए!माँ ने कारण पूछा तो बोली 'माँ,मेरे कान पक रहे हैं इन झुमकों से' !माँ ने झट से सूखी लकडी कि डंडियाँ लाकर दी और कहा 'सूना कान अच्छा नहीं लगता,कुछ नहीं पहनेगी तो कान के छेद बंद हो जायेंगे ' माँ का आदेश मान सुभद्रा ने कानमें डंडियाँ धारण कर लीं !

इधर हितेन्द्र अपनी विजय पर प्रसन्ना था!उपहार मांगे जाने के सारे रास्ते उसने बंद कर दिए थे!अगले दिन सुभद्रा बिना मेकअप के कानों में डंडियाँ फसाए मिलने आई,हितेन्द्र को अच्छी नहीं लगी पर प्रत्यक्ष में बोला 'बहुत प्यारी लग रही हो.एकदम मेरी सुभी लग रही हो,अरे ये कान में क्या पहन रखा है बहुत सुन्दर,एकदम वन्कन्या लग रही हो....मेरी शकुंतला' !हितेन्द्र ने हौसला बढाते हुए उसे एक नाम और प्रदान किया ! सुभद्रा को बिलकुल ख़ुशी नहीं हुई !उस दिन आधे घंटे में ही उठकर आ गयी!
अगले दिन फिर बेमन से पार्क में पहुंची! अब रोज़ रोज़ पद यात्रा करने का कोई कारण भी नहीं था!लेकिन हितेन्द्र आया और बोला 'सुभी ,मैंने आज तक तुम्हे कोई उपहार नहीं दिया ,अपनी आँखें बंद करो,मैं आज तुम्हे कुछ देना चाहता हूँ'
सुभद्रा लहक उठी ,सूने मन में आशा का संचार हुआ ,तुरंत आँखें बंद करके हथेली आगे कर दी!हितेन्द्र ने सूखी लकडी की डंडियों के पांच सेट सुभद्रा कि हथेलियों पर रख दिए!सुभद्रा ने आँखें खोलीं ,उपहार देखते ही आत्मा से गालियों का गुबार उठा जो संकोच वश मुंह तक नहीं आ सका! अन्दर ही अन्दर गुरगुराती घर वापस आ गयी!

अब सुभद्रा बुरी तरह उकता चुकी थी !प्रेम से निजात पाना चाहती थी! उधर हितेन्द्र भी सुभद्रा का मेकअप विहीन चेहरा देख देखकर बोर हो गया था!उसने निश्चय किया कि अगली बार किसी अमीर लड़की से प्रेम करेगा !
एक महीने बाद दोनों उसी पार्क में बैठे थे! सुभद्रा सजी,संवरी महेश के साथ बैठी थी ,हाथ में गिफ्ट पैक किया हुआ कोई उपहार था !उधर दूसरी बेंच पर हितेन्द्र प्रेमलता को फूल भेंट कर रहा था! दोनों ने एक दूसरे को देखा और मुस्कुरा दिए!

11 comments:

Ankit Mathur said...

कमाल का प्रस्तुती करण है।
अंकित माथुर...

Ghost Buster said...

इस मॉडर्न लव में प्रेमियों का हित भी है और सुभीता भी. तो हितेन्द्र और सुभद्रा के अनुभव से सभी प्रेमीगण प्रेरणा लेंगे, ऐसी आशा करनी चाहिए.

मजा आया पढ़कर. अच्छा लिखा है. बधाई.

आनंद said...

वाह! बहुत मज़ेदार किस्‍सा है। जारी रखें। - आनंद

सुजाता said...

बहुत खूब ! इतनी सुविधा और ज़रूरत के मुताबिक प्यार किया जाए तो शायद विवाह मे सालों साल कभी कोई दिक्कत न आये ;-)

Udan Tashtari said...

वाह जी, यह भी प्रेम का एक आयाम है. :)

बढ़िया लिखा है.

Abhishek Ojha said...

वाह क्या लव स्टोरी है ! बिल्कुल एकोनोमिकाली ऑपटीमल स्ट्रैटजी है.
बस एक बात बता दीजिये की ये पार्क कहाँ पर है ?

डॉ .अनुराग said...

चलिए पल्लवी जी इससे ये भी जाना कि आप कहानिया भी लिखती है.....

Sootradhaar said...

gkअगर मैने केवल आपकी कहानी पढी होती तो नयी कथा-वस्तु की तारीफ़ कर इति श्री कर लेता लेकिन आप की कुछ कविताए पढने के बाद यह कहने को बाध्य होना पड रहा है कि आप की कविताओ का अन्दाज लाजबाब है..आगे कभी फ़ुर्सत मे आपकी रचनाए पढूगा
..मैने यहा तो नही लिखा है लेकिन आगर आप मुझे पढना चाहे तो..नीचे लिखे लिन्क पर पढ सकती है
www.sootradhaar.sulekha.com

Faceless Maverick said...

I didn't know that matters of heart are resolved in such a manner. A new dimension of modern day love.

Sach mein ek bilkul naya ehsaas hai.

Nice composition of the blog. Keep writing.

ललितमोहन त्रिवेदी said...

मैं आपकी हरेक रचना बड़े मनोयोग से पढता हूँ .किशोर प्यार की गहराई पर तो काफी पढ़ा है परन्तु लहरों की मौज वाले नई पीढ़ी के इस तथाकथित "प्यार" की अवधारणा को आपने बहुत अनूठे ढंग से व्यंग की अत्यन्त सुलझी और "लच्छेदार " भाषा मैं व्यक्त किया है .ऐसी कुशलता बहुत लंबे लेखन के बाद प्राप्त होती है .गद्य और पद्य दोनों में कलम चलाने की योग्यता भगवान विरलों को ही देता है . बधाई स्वीकार करें इस कमाल पर .

ललित मोहन त्रिवेदी

pallavi trivedi said...

शुक्रिया आप सभी का इस हौसला अफजाई के लिए....