Friday, April 18, 2008

कुछ और ख्वाब

आज कुछ और ख्वाब आँखों में छलकने लगे
दिल की दहलीज पे हसरत के दीप जलने लगे

ठहरो कुछ देर मेरी नज्मों में ढूंढो खुद को
ये क्या, आये अभी और अभी अभी चलने लगे

कर के बैठा था मोहब्बत की राह से तौबा
जो मिले आप कदम खुद ब खुद फिसलने लगे

मेरे भी चर्चे हर चौराहे पर आम हुए
मेरी गलियों से होके आप जो गुजरने लगे

मैंने पूछा जो सबब आपके तबस्सुम का
आप क्यों बेवजह ही बात को बदलने लगे


9 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

aap ashaaar karate rahen. khushee kee bat hai ki aap bebahar hote=hote bacheen. ek sher kabile gaur hai-

Anonymous said...

bahut achchha likha hai, kamaal hai!

mehek said...

simply beautidul poetry,bahut bahut sundar

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया..बधाई.

कुश said...

ठहरो कुछ देर मेरी नज्मों में ढूंढो खुद को
ये क्या, आये अभी और अभी अभी चलने लगे

बहुत बढ़िया ख्याल.. बधाई

Neelima said...

पल्लवी जी , बहुत सुन्दर गीत रचा है आपने !

rasheed said...

har word se aapka talent shines through..magical..beautiful..shabd kam padh rahe hain ..in admiration

डॉ .अनुराग said...

ठहरो कुछ देर मेरी नज्मों में ढूंढो खुद को
ये क्या, आये अभी और अभी अभी चलने लगे

bahut khoob...

संत शर्मा said...

कर के बैठा था मोहब्बत की राह से तौबा
जो मिले आप कदम खुद ब खुद फिसलने लगे

मेरे भी चर्चे हर चौराहे पर आम हुए
मेरी गलियों से होके आप जो गुजरने लगे

Sundar likha hai aapne