Tuesday, April 22, 2008

'अपना घर'

बिना घरवालों का एक घर
कोई 'अपना घर',कोई 'वृद्धाश्रम'
कहकर बुलाता है
नाम अलग लेकिन
तस्वीरें सारी हूबहू एक जैसी

अपने अपने अतीत में जीते
कुछ झुर्रीदार चेहरे
सुबह लाफ्टर क्लब में
ठहाके लगाते हैं
फिर अपने कमरों में जाकर
चुपके से रो आते हैं

सबकी खुशियाँ साझी
ग़म भी साझे हैं
आज सबके चहरे खिले खिले हैं
शर्मा जी के पोते ने भेजी हैं
एक लिफाफा भर के मुस्कराहट

चलो ये हफ्ता अच्छा कट जायेगा
अगले हफ्ते शायद
कोई और लिफाफा आ जायेगा...


13 comments:

mehek said...

its very touching poem,agar hamare ankhon mein ansoon lane ki kshamata hai in panktiyon mein,jo kihua hai,phir kalam apna kaam kar gayi,its very true fact making the reader so emotional.very nice.specialy agale lifafe ka intaazar wali panktiyan.

Anonymous said...

bhavanao se ot-prot kavita kam shabdo me sashakt abhiyakti

Prabhakar Pandey said...

गागर में सागर। सुंदरतम।

डॉ .अनुराग said...

अदभुत कविता पल्लवी ,आज सचमुच साडी संवेदनाये समेट दी तुमने ...तुम्हारी कई कविता अच्छी लगी पर इतनी कोई नही....hatts off to you .......

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर संवेदनशील हृदय के भावों के बहाव. बधाई.

Abhishek Ojha said...

"अपने अपने अतीत में जीते
कुछ झुर्रीदार चेहरे
सुबह लाफ्टर क्लब में
ठहाके लगाते हैं
फिर अपने कमरों में जाकर
चुपके से रो आते हैं"

बिल्कुल दिल को छू लेने वाली पंक्तियाँ.. !

Manas Path said...

आपका फ़ांट नही दिख रहा है.

डॉ.ब्रजेश शर्मा said...

भई वाह ! पल्लवी जी ....क्या बात है !

बेहद टची कविता !

बड़ी दूर और देर तक साथ रहेगी इसकी महकती

हुई अनुगूंज ! बस ऐसे ही लिखती रहिये ........

Anonymous said...

Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Massagem, I hope you enjoy. The address is http://massagem-brasil.blogspot.com. A hug.

कुमार मुकुल said...

आपकी कविताओं के मुकाबिले आपकी कहानियां बहुत अच्‍छी लगीं।

Neelima said...

पल्लवी जी '
आपको पढती रहती हूं ! बहुत प्रेक्टिकल एप्रोच के साथ लिखती हैं आप ! अपने लेख पर आपकी टिप्पणी भी देखी ! मृणाल पांडे के लेख- मित्र से संलाप - में फेमेनिज़्म पर पुरुषों के द्वारा लगाए गए इल्ज़ामों का ज़िक्र मैंने किया है ! यहाँ व्यंग्य है जिसमें कुछ लिंकों को अगर आप क्लिक करेंगी तो संदर्भ खुल जाएगा !दरअसल फेमेनिज़्म को उन्हीं पुराने तर्कों से पुरुष द्वारा खारिज किया जाता रहा है ! मैंने उन तर्कों को व्यंग्यात्मक रूप में दोहराया भर है !

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi sajiv chitran hota hai.....
lagta hai pratyaksh dekh rahe hain.

Unknown said...

oh pallvi kitna aacha lkhti ho tum,really so beautyfull,main to fan ho gaya tumhara