Tuesday, April 15, 2008

कल नसैनी लेकर गयी
और सोते हुए चाँद के गालों पर
गुलाल मल आई

आज सुबह देखा
सारी छत रंगी थी गुलाबी रंग से
बदमाश कहीं का..
छत के ऊपर आकर मुंह धो गया




2 comments:

सुजाता said...

hi dear !
pls see this

http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/04/quid-pro-quo.html

सुजाता said...

एक खूबसूरत और नटखट कविता !