कल नसैनी लेकर गयी
और सोते हुए चाँद के गालों पर
गुलाल मल आई
आज सुबह देखा
सारी छत रंगी थी गुलाबी रंग से
बदमाश कहीं का..
छत के ऊपर आकर मुंह धो गया
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
2 comments:
hi dear !
pls see this
http://sandoftheeye.blogspot.com/2008/04/quid-pro-quo.html
एक खूबसूरत और नटखट कविता !
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