जब जब हिज्र का सावन आता है
तन्हाई के बादल घिर आते हैं
और दिल की गीली ज़मीन पर
सोया हुआ तेरी यादों का बीज
अंकुरित हो उठता है...
आँखों के मानसून से
भीग उठती है मेरे दिल की कायनात
वक्त की गर्द से ढकी
मेरी मोहब्बत का ज़र्रा ज़र्रा
चमक उठता है धुलकर
और तब
तेरे और मेरे बीच
नहीं रहता वक्त का फासला
रूहें मिलती हैं पूरी शिद्दत से
और मोहब्बत को मिलते हैं
नए मायने....
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
2 comments:
भाव अच्छे हैं, लिखते रहें, शुभकामनाऐं.
bahut khubsurat
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