पंडित रामेश्वर शर्मा- शहर के एक स्कूल में शिक्षाकर्मी वर्ग -२ के पद पर कार्यरत मास्टर! स्कूल में सिलेबस कम और रामायण,महाभारत ज्यादा पढाते हैं,चूंकि उन्होने भी छुटपन से ही सिलेबस कम और रामायण ,नहाभारत ज्यादा पढा! जुगाड़ बैठ गयी सो नौकरी मिल गयी! घोर आस्तिक,कर्मकांडी,पूजन कीर्तन में मन रमाने वाले और संतान को ईश्वर का उपहार मानने वाले
(ईश्वर के दिए ६ उपहार इनके घर में धमाचौकडी करते देखे जा सकते हैं!) ऐसे हैं पं. रामेश्वर शर्मा जी...
श्री द्वारिकाप्रसाद गुप्ता- शहर में कामचलाऊ प्रेक्टिस करने वाले एक वकील! साधारण सा मकान,साधारण सी पत्नी,साधारण से दो बच्चे,कुल मिलाकर सब कुछ साधारण! लेकिन एक बात बड़ी असाधारण, और वो है उनकी घोर नास्तिकता !
अगर कोई कहे कि मंदिर में हाथ जोड़ोगे या पांच जूते खाओगे तो तुरंत पूछेंगे 'कहाँ खाना है सिर पर या पीठ पर' ! ऐसे हैं श्री द्वारिकाप्रसाद जी !
तो हुआ यूं कि एक रोज़ पं. रामेश्वर को कहीं से द्वारिका प्रसाद जी कि घोर नास्तिकता की भनक लगी तो विचार बनाया कि चलकर वकील साहब की बुद्धि को शुद्ध किया जाए सो अपनी साइकल खड़खडाते पहुँच गए वकील साहब के घर! चुटिया पर हाथ फेरते घंटी बजाई,वकील साहब ने दरवाजा खोला! पंडित जी ने नमस्कार की मुद्रा बनाई! वकील साहब ने ऊपर से नीचे तक आँख फाड़ फाड़ कर देखा पर परिचय का कोई निशान न पा सके! पंडित जी ने अपना
परिचय दिया,आने का प्रयोजन बताया! वकील साहब अन्दर से ऐसे प्रसन्न हुए कि होंठ तो होंठ ,मूंछें तक मुस्कुरा उठीं ! उन्होने तरस खाते हुए आगाह कर दिया कि हमारे विचार नहीं बदलेंगे पर आशय था कि तुम्हारे जैसे छतीस आये छत्तीस गए पर हमारे विचारों को खरोंच तक नहीं आई!पर पंडित जी भी अपनी बात पर अड़े थे
सो भैया शास्त्रार्थ शुरू होता है -
पं.-इससे तो आप सहमत होंगे कि भगवान् राम जैसा कोई आदर्श पुरुष नहीं?
वकील सा.-भगवान्,फगवान तो मैं कहता नहीं,हाँ राम जैसे दुनिया में बहुत मिलते हैं!
पं.-राम का जीवन एक आदर्श जीवन है!
वकील सा.-अब मुंह न खुलवाओ हमारा,एक ही उदाहरण दिए देते हैं! सीता को जो बिना बात के घर से निकाला है न,अगर आज का ज़माना होता तो धरा ४९८(अ) में कब के अन्दर हो गए होते!' काहे का आदर्श, हुंह ' वकील साहब ने मुंह बिचकाया!
पंडित जी मुंह की खाकर थोडा तिलमिलाए,पर हिम्मत नहीं हारी!
पं.-चलो ठीक है,मत मानिए भगवान् राम को.हमारे तो करोडों देवता है अभी तो बहुत बचे हैं! सीता माता को तो पूजोगे?
वकील सा.- इससे अच्छा अपनी पत्नी को न पूजें जो हमारी गलतियों पर हमें खाने को दौड़ती है! सीता नासमझ थी,घर से आंसू बहाकर निकलने की बजाय पति की बुद्धि ठीक की होती,बच्चों को उनका अधिकार दिलाया होता,भरण पोषण भत्ता लिया होता तो कुछ सोचा भी जा सकता था!
इससे अच्छी तो हमारी क्लाइंट्स हैं जो पति के खिलाफ मुकदमा लड़ने हमारे पास आती है.कम से कम अन्याय के खिलाफ आवाज़ तो उठाती है!
पंडित जी का चेहरा जो पहले से ही बदरंगा था,और बदरंग होने लगा, पर डटे रहे !
पं.-अच्छा छोडो रामायण को,महाभारत के पात्र ज्यादा वैरायटी लिए हुए है! उनमे से आपके कई आदर्श मिल जायेंगे!
वकील सा.-कोशिश कर देखो!
पं.-कृष्ण भगवान् को तो मानोगे,जिन्होंने हमेशा परिस्थिति देखकर काम किया और सफल रहे! वे सच्चे मायनों में आदर्श है!
वकील सा.-इस गुण को विद्वान् कूटनीति कहते है ! अगर कृष्ण को पूजें तो बिस्मार्क और नेहरू जी को क्यों न पूजें? इनकी कूटनीति भी मशहूर है!
पं. (जोर से)- गुरु द्रोणाचार्य समस्त गुरुओं में उत्तम है!
वकील सा.-काहे के उत्तम जी, इनसे अच्छे तो हमारे घासीराम मास्साब है ,बच्चों से फीस लेते है तो बदले में कम से कम एक घंटा पढाते तो है! तुम्हारे द्रोणाचार्य ने तो गरीब एकलव्य का अंगूठा दक्षिणा में ले लिया ,वो भी बिना कुछ सिखाये,पढाये! और दूसरी बात,वहाँ भी अगर अकाल से काम लिया होता और एकलव्य को पटाकर टीम में शामिल कर लिया होता तो टीम मजबूत हो जाती! आये बड़े द्रोणाचार्य को उत्तम कहने वाले !
पं.-और गुरु परशुराम...
वकील सा. (बीच से ही बात को लपकते हुए) - अरे,जातिवाद का श्रेय तो तुम्हारे परशुराम को ही जाता है! अपने विद्यालय की सारी सीट ब्राह्मणों के लिए आरक्षित कर दीं ! तुम्हारे ही होते होंगे ऐसे आदर्श,हमारे नहीं होते!
पंडित जी खिसिया खिसिया कर ढेर हो रहे थे,वकील साहब के तर्कों के आगे उनके सारे वार खाली जा रहे थे! पूरी एकाग्रता से सारे देवताओं का स्मरण कर उन्होने एक बार फिर जोर मारा ..
पं.- अच्छा,दानवीर कर्ण तो प्रत्येक गुणों से परिपूर्ण थे! अब कहो,क्या कहना है?
वकील सा.- हा हा,इमोशनल फ़ूल था कर्ण !ऐसी सीधाई भी क्या काम की कि अकल का भट्टा ही बिठा दे! जो लोग दिमाग को ताक पर रखकर केवल दिल से काम लेते है,वो मूर्खों के ही आदर्श हो सकते है!कर्ण से अच्छा आदर्श तो हमारे मोहल्ले का मनसा लुहार है ,जिसे बेवकूफ बनाकर उसी के घरवालों ने सारी ज़मीन अपने नाम करा ली और उसने ख़ुशी ख़ुशी कर भी दी! अब बाहर सड़क पर भीख मांगता मिल जायेगा,घर ले जाकर पूजा कर लेना उसकी!
पंडित जी पूर्ण रूप से परास्त हो चुके थे,वकील साहब के नथुने फ़ूल फूलकर विजय का एलान कर रहे थे! पंडित जी बेचारे क्या कहते, और कोई देवता उन्हें याद ही नहीं आये!आते भी कैसे ,बचपन से केवल रामायण,महाभारत ही पढी थी,वो भी १००-१०० पेज की कहानी की शकल में!अगर वही ढंग से पढी होती तो शायद वकील सा. के तर्कों के कुछ सटीक जवाब दे पाते ! पंडित जी धोती संभालते उठ खडे हुए!
इससे पहले कि उनके खुद के विचार बदलते,उन्होने कृष्ण मुख करना उचित समझा! वो चले पंडित जी साइकल खड़खडाते ,अपनी चुटिया संभालते!