देखो ,तुम्हारी साडी कैसे टिमटिमा रही है
याद नहीं...?
कल रात की चादर को झाडा था तुमने
कुछ सितारे टूटकर गिर गए थे नीचे
तुम्हारे पल्लू से जो उलझ गए थे
अब शायद ही इन्हें कोई हटा पाए
मैं ही कहाँ निकल पाया
आज तक उलझा हुआ हूँ
सच ,बड़ा पुरकशिश दामन है तुम्हारा .....
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
10 comments:
Bahut nazuk khayalon ko itne sadhe
andaz men likhana gagar men sagar
bharane jaisa hai.Uninde khwabon ko
pankha sa jhala ja raha ho jaise.
itni achchhi rachana ke liye badhayi.
Lalit Mohan Trivedi
sachmuch kamaaaaaaaal hi kar rahi hain, Pallavi ji !
hriday sparshi rachnaayen jaise nisrat ho rahi hain, sahaj aur anayaas .
allah kare zore kalam aur ziyada,
bahut badhiya pallavi ji .............
कहाँ से चुराकर ले आती हो इन शब्दों को तुम गुडिया और सजा देती हो एक डलिया मैं बस फूलों की तरह , सोचता हू की एक माला बना दू पर कहीं तुम नाराज़ न हो जाओ !
fANASTIC
aakhiri line bahut khoob hai....
पल्लवी जी, आप अपनी पोस्ट को एक शीर्षक अवश्य दीजिये. बिना शीर्षक ये एग्रीगेटर्स/सर्च में नहीं आ पायेगी.
अरे वाह....खूबसूरत ख़याल को...सही शब्द मिल जाये....
बस...हो गयी एक खूबसूरत...
गुलज़ार साहिब वाली खुशबू है... :)
ऐसा मुझे लगता है.
..Love...Masto...
what lovely lines..sweet n wonderful..amazing talent hai aapka
bahut hi gulzarish hai.. badhaai
बहुत सुन्दर ,कोमल कविता !
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