Thursday, April 3, 2008

तुम्हारा दामन

देखो ,तुम्हारी साडी कैसे टिमटिमा रही है
याद नहीं...?
कल रात की चादर को झाडा था तुमने
कुछ सितारे टूटकर गिर गए थे नीचे
तुम्हारे पल्लू से जो उलझ गए थे
अब शायद ही इन्हें कोई हटा पाए

मैं ही कहाँ निकल पाया
आज तक उलझा हुआ हूँ
सच ,बड़ा पुरकशिश दामन है तुम्हारा .....

10 comments:

ललितमोहन त्रिवेदी said...

Bahut nazuk khayalon ko itne sadhe
andaz men likhana gagar men sagar
bharane jaisa hai.Uninde khwabon ko
pankha sa jhala ja raha ho jaise.
itni achchhi rachana ke liye badhayi.


Lalit Mohan Trivedi

डॉ.ब्रजेश शर्मा said...

sachmuch kamaaaaaaaal hi kar rahi hain, Pallavi ji !
hriday sparshi rachnaayen jaise nisrat ho rahi hain, sahaj aur anayaas .
allah kare zore kalam aur ziyada,

Unknown said...

bahut badhiya pallavi ji .............

AVNISH SHARMA said...

कहाँ से चुराकर ले आती हो इन शब्दों को तुम गुडिया और सजा देती हो एक डलिया मैं बस फूलों की तरह , सोचता हू की एक माला बना दू पर कहीं तुम नाराज़ न हो जाओ !



fANASTIC

डॉ .अनुराग said...

aakhiri line bahut khoob hai....

गुस्ताखी माफ said...

पल्लवी जी, आप अपनी पोस्ट को एक शीर्षक अवश्य दीजिये. बिना शीर्षक ये एग्रीगेटर्स/सर्च में नहीं आ पायेगी.

..मस्तो... said...

अरे वाह....खूबसूरत ख़याल को...सही शब्द मिल जाये....
बस...हो गयी एक खूबसूरत...

गुलज़ार साहिब वाली खुशबू है... :)
ऐसा मुझे लगता है.
..Love...Masto...

rasheed said...

what lovely lines..sweet n wonderful..amazing talent hai aapka

कुश said...

bahut hi gulzarish hai.. badhaai

सुजाता said...

बहुत सुन्दर ,कोमल कविता !