बचपन का साथी चाँद मेरा
देखना चाहूँ तो छुप जाता है
रूठ जाऊं तो मुस्कुराता है
सोच कर मुस्कुराती हूँ अक्सर
यहाँ से मुझे नज़र आता है
वहाँ से तुझे नज़र आता है
याद है वो छत पर पहली मुलाकात
आज भी वो किस्सा सुनाकर
चाँद जब तब मुझे छेड़ जाता है
जब ज़िक्र करती हूँ तेरे चेहरे का
तब तब अपना हुस्न दिखाकर
मेरी हर बात को झुठ्लाता है
अक्सर चाँद गीला सा लगा है मुझे
जाने कौन सा दर्द है दिल में
अकेले अकेले आंसू बहाता है
फलक खामोश होता है
तारे भी सो जाते हैं
रोज़ रात चाँद उन्हें लोरी सुनाता है
कितने रिश्ते मिले हैं मुझे
कभी दोस्त,कभी हमदर्द
कभी मेरा मामा बन जाता है
ये तो बस चाँद का ही असर है
शाम को जब सूरज से मिलता है
सूरज भी चाँद नज़र आता है
बड़ा नाज़ करता है अपने हुस्न पर
नज़र न लगे शायद ये सोचकर
मुखड़े पर काला टीका लगाता है
देखना चाहूँ तो छुप जाता है
रूठ जाऊं तो मुस्कुराता है
सोच कर मुस्कुराती हूँ अक्सर
यहाँ से मुझे नज़र आता है
वहाँ से तुझे नज़र आता है
याद है वो छत पर पहली मुलाकात
आज भी वो किस्सा सुनाकर
चाँद जब तब मुझे छेड़ जाता है
जब ज़िक्र करती हूँ तेरे चेहरे का
तब तब अपना हुस्न दिखाकर
मेरी हर बात को झुठ्लाता है
अक्सर चाँद गीला सा लगा है मुझे
जाने कौन सा दर्द है दिल में
अकेले अकेले आंसू बहाता है
फलक खामोश होता है
तारे भी सो जाते हैं
रोज़ रात चाँद उन्हें लोरी सुनाता है
कितने रिश्ते मिले हैं मुझे
कभी दोस्त,कभी हमदर्द
कभी मेरा मामा बन जाता है
ये तो बस चाँद का ही असर है
शाम को जब सूरज से मिलता है
सूरज भी चाँद नज़र आता है
बड़ा नाज़ करता है अपने हुस्न पर
नज़र न लगे शायद ये सोचकर
मुखड़े पर काला टीका लगाता है
1 comments:
wah kya bat hii
aj fir apke blogg ko padhne me lag gaya hunn...
purani post me bahut achchi achchi nazma chhupi hui hi.
Post a Comment