जाने किधर से आती हैं
किधर को जाती हैं यादें
लेकिन जब छूकर गुज़रती हैं
तो आँखें नम कर जाती हैं यादें...
कभी ज़ख्म देती हैं
कभी मरहम बनती हैं
राम जाने कहाँ से सीखा है
ये जो जादू कर जाती हैं यादें...
आँखों को बरसना सिखाती हैं
और होठों को मुस्कुराना
लौटने को गुज़रे वक़्त में
मजबूर कर जाती हैं यादें...
कभी सूखे हुए फूल में
कभी किसी रूमाल में
ऐसे ही यूं ही बेसबब
बैठी मिल जाती हैं यादें....
किसी को भूलना चाहो
अगर मुंह फेरना चाहो
जेहन पर होके तब सवार
दुश्मन बन जाती हैं यादें...
ऑफिस में बैठे बैठे
या रसोई में पकाते
कभी इजाज़त लेती नहीं
बेवक्त आ जाती हैं यादें...
किधर को जाती हैं यादें
लेकिन जब छूकर गुज़रती हैं
तो आँखें नम कर जाती हैं यादें...
कभी ज़ख्म देती हैं
कभी मरहम बनती हैं
राम जाने कहाँ से सीखा है
ये जो जादू कर जाती हैं यादें...
आँखों को बरसना सिखाती हैं
और होठों को मुस्कुराना
लौटने को गुज़रे वक़्त में
मजबूर कर जाती हैं यादें...
कभी सूखे हुए फूल में
कभी किसी रूमाल में
ऐसे ही यूं ही बेसबब
बैठी मिल जाती हैं यादें....
किसी को भूलना चाहो
अगर मुंह फेरना चाहो
जेहन पर होके तब सवार
दुश्मन बन जाती हैं यादें...
ऑफिस में बैठे बैठे
या रसोई में पकाते
कभी इजाज़त लेती नहीं
बेवक्त आ जाती हैं यादें...
1 comments:
your every poem is story of my heart, I just wanna add you as my friend on my blog... if you permit me... I am waiting for answer... just e-mail me...
thanks!
Post a Comment