Friday, February 29, 2008

बिखरे ख़्वाबों को सीने से लगा रखा है
हमने वीरानों में आशियाना बना रखा है

ठोकरें देकर जिसने संभलना सिखाया
हमने उस शख्स का नाम खुदा रखा है

मिठास मोहब्बत की उसके नाम करके
आँखों के खारेपन को बचा रखा है

धड़कनें जाने क्यों बेताब हुई जाती हैं
उफ़,दिल ने क्या शोर मचा रखा है

रूठ के बैठे हैं आज हमसे वो
दरबार रकीबों का लगा रखा है

होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है

लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है

संग हो न जाए बदगुमान कहीं
हमने मंदिर में आइना लगा रखा है

नंगे पाँव चुभ जाए न खार कहीं
तेरे लिए ही चिराग-ए-चाँद जला रखा है

1 comments:

Ravi Rajbhar said...

होके रुसवा भी सहेजते हैं दर्दे इश्क
किसने इस अदा का नाम वफ़ा रखा है

लगता है कोई काफिर मुलाक़ात कर गया
खुदा ने बेवक्त ही मयखाना सजा रखा है

bap re.....itna dard hai isame.