Monday, February 25, 2008

दीवार ...

दीवार कहाँ बोलती है कुछ

बस सहती रहती है ....

कीलों और हथौडों के वार से

होती रहती है ज़ख्मी बार बार,लगातार



वो अपने ज़ख्म दिखाए भी तो किसे

ज़ख्म देने वाले उसके अपने ही तो हैं

वो ही,जिन्होंने बनाया है उस दीवार को

बदलते है लोग और

बदलता जाता है दीवार का रंग भी

सजती और रंगती रहती है उसके खरीदार की पसंद से



काश कोई हो जो झाँक सके

उसकी दरारों के परे..

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