शायर ही था महफिल को देखकर मचल
गया दर्द दिल से उठा और नज्मों में ढल गया
देखा था कल रकीब को मयखाने में रोते
अच्छा हुआ जो गिरने के पहले संभल गया
सलाम न दुआ न वो महफिल न ठहाके
ग़म-ए-फुरकत मेरे उस यार को कितना बदल गया
दोस्त के सीने में था एक दोस्त का खंजर
मंज़र ये देखकर मेरा दिल भी दहल गया
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
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