Saturday, February 23, 2008

शायर ही था...........

शायर ही था महफिल को देखकर मचल
गया दर्द दिल से उठा और नज्मों में ढल गया

देखा था कल रकीब को मयखाने में रोते
अच्छा हुआ जो गिरने के पहले संभल गया

सलाम न दुआ न वो महफिल न ठहाके
ग़म-ए-फुरकत मेरे उस यार को कितना बदल गया

दोस्त के सीने में था एक दोस्त का खंजर
मंज़र ये देखकर मेरा दिल भी दहल गया

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