याद है मुझे आज भी वो
तुमसे पहली बार मिलना
कुछ कहना चाहा था तुमसे
पर होंठ काम्पकर रह गए
लफ्ज़ जुबां तक आये और
होंठों से फिसल गए....
आज भी वो लफ्ज़
कॉलेज की सीढियों के पास पड़े हैं..
हम बार बार मिले और
हर बार होठों का काम्पना,
लफ्जों का जुबां तक आना और
फिसल कर गिर जाना चलता रहा.....
गंगा के तट पर ,घर में सोफे के पीछे,
library में ,बरिस्ता में
और तुम्हे अपनी bike पर ले जाते हुए
शहर के सभी रास्तों पर
आज भी वो लफ्ज़ बिखरे पड़े हैं...
पर कल जब तुम्हे देखा
कई बरसों के बाद तो
पहली बार झाँककर देखा
तुम्हारी आँखों की गहराई में
तुम्हारी आँखों ने मेरी आँखों से कहा...
न समझ सके तुम मेरी जुबां
जरा ध्यान से देखो
अपने फिसले हुए लफ्जों को
हर लफ्ज़ तुम्हे जोड़ी में मिलेगा
एक तुम्हारा...एक मेरा....
2 comments:
bahut khaas, bahut khoob, simply touching words... aap kamal ho pallavi
bahut khoobsoorat hai
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