कल देखा....
एक दादाजी को
पार्क वीरान होने के बाद
शाम के धुंधलके में
झूला झूलते...
एक आंटी को
बस में खिड़की वाली सीट के लिए
पडोसन से झगड़ते...
एक पिता को
बेटे के सोने के बाद
उसकी ड्राइंग बुक से देखकर
ड्राइंग बनाने की कोशिश करते...
एक पत्नी को
मेले में अपने पति से
गुब्बारे लेने की जिद करते....
एक कंपनी के मैनेजर को
सेमिनार में
लेक्चरर का कार्टून बनाते...
अपनी माँ को
सर्दी जुकाम में
आइस क्रीम न देने पर
मुंह फुलाते...
सच ही तो है
बचपन भले ही चला जाये
बचपना कहाँ जाता है
और शायद यही तो है
जो इंसान की मासूमियत
खोने से बचाता है
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
1 comments:
ek ek baat sau feesadi sacchi..
Bahut Badhiya..
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