Sunday, February 10, 2008

मुझे आपसे प्रेम है.....

जिस दिन से वो आई मेरी जिंदगी में
उजाला बन कर छा गयी
सुबह की चाय में घुला उसका प्यार
मिठास से भर देता मेरे मन को
जब निकलने लगता ऑफिस को
तो दौड़कर आती और
कानों में बुदबुदा जाती
आपसे प्रेम करती हूं
मैं हौले से मुस्कुरा देता

कपकपाती सर्दी में उसके हाथ का स्वेटर
बदन को ही नहीं मन को भी
प्रेम की ऊष्मा से भर देता
हर शाम हलके हाथों से मेरे माथे को सहलाती और
धीरे से बुदबुदाती
मुझे आपसे बहुत प्रेम है
मैं हौले से उसका गाल थपथपा देता

लेकिन हमेशा उसकी आँखों में नज़र आती
अनजानी सी बेचैनी,अनजानी सी प्यास

पचपन साल वो साए की तरह
मेरे साथ चली
कल वो चली गयी इस दुनिया से
मेरे सामने था उसका बेजान शरीर
ठंडे बर्फ से सर्द हाथ और अधखुली आँखें
जिनमे वोही प्यास,वो ही बेचैनी थी
मैं रो पड़ा फूट फूट कर
थाम कर उसके सर्द हाथ
मैं बुदबुदाया उसके कानों में
मुझे तुमसे बेहद मोहब्बत है
अगले ही पल मैंने देखा
बंद हो गयी उसकी अधखुली आँखें

लगता है उसकी बरसों की प्यास बुझी
उसके जाने के बाद........

3 comments:

दिपाली "आब" said...

simply amazing

Ravi Rajbhar said...

wah-2 aap suru se hi itna achchha likhatin hain..badhai.

shayad aapko yahin na ho par...aapne aaj mera pura din ne liye aapke blog ne mera important work bhi mujhe nahi karne diya.

Par usase bhi adhik khusi is baat ki hai ki maine aapki 50 % rachnaye padhi dali.....sach itana pyara blog kuchh gine chune log hi likhaten hain.

Aur mai hairan is baat par hun ki aap wardi ka rutba aur....lekhakika ke open dil dono ek sath kaise rakh patin hongi.

Main to anjan hun par fir bhi aap par mujhe garv si anubhuti ho rahi hai.

Iswar aapko aur bhi bal de.

Ravi Rajbhar said...

comment me koi galti ho to chhama karen.